MED2 Previous Year Question Answer Answer (Sustainable development issues and Challenges)

 


प्रश्न 1: पर्यावरणीय संरक्षण के लिए क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए सार्क की प्रमुख पहलों की चर्चा कीजिए।



दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 1985 में हुई थी। इसके सदस्य देश – भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान और मालदीव – कई साझा पर्यावरणीय समस्याओं जैसे वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता ह्रास से जूझ रहे हैं। इन समस्याओं से निपटने हेतु सार्क ने समय-समय पर अनेक पहलों की शुरुआत की है।


प्रमुख पर्यावरणीय पहलें:


  1. सार्क पर्यावरणीय कार्य योजना (SAEP): 1997 में लागू हुई यह योजना पर्यावरणीय जागरूकता, जैवविविधता संरक्षण, और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को प्रोत्साहित करती है।
  2. सार्क जलवायु परिवर्तन पहल: 2008 के बाद से जलवायु परिवर्तन को प्राथमिकता देते हुए, इस पहल के तहत सदस्य देशों में जलवायु अनुकूलन और आपदा प्रबंधन सहयोग को बढ़ावा दिया गया।
  3. सार्क मौसम विज्ञान अनुसंधान केंद्र (SMRC), बांग्लादेश: यह केंद्र जलवायु पूर्वानुमान, बाढ़ चेतावनी और मौसम विश्लेषण में सहयोग करता है।
  4. सार्क फॉरेस्ट सेंटर (भूटान): वनों के सतत प्रबंधन और क्षेत्रीय प्रशिक्षण के लिए कार्यरत यह केंद्र पर्यावरणीय शिक्षा को बढ़ावा देता है।
  5. सार्क जैवविविधता नेटवर्क: क्षेत्रीय जैव विविधता संरक्षण हेतु सदस्य देशों के बीच तकनीकी सहयोग एवं ज्ञान साझा करने का मंच।



निष्कर्ष: SAARC पर्यावरणीय मुद्दों पर सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, किन्तु राजनीतिक मतभेदों और संसाधनों की कमी के कारण इसकी प्रभावशीलता सीमित रही है। सहयोग और समन्वय बढ़ाकर इस मंच को अधिक सक्रिय बनाया जा सकता है।



प्रश्न 2: सततशीलता (संधारणीयता) की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? सतत (संधारणीय) विकास के उद्देश्यों की चर्चा कीजिए। सततशील और गैर सततशील क्रियाओं में अंतर स्पष्ट कीजिए।



सततशीलता (Sustainability) का अर्थ है ऐसे विकास की प्रक्रिया जो वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के संसाधनों की क्षमता को क्षति न पहुँचाए। इसमें प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, सामाजिक न्याय, और आर्थिक विकास का संतुलन शामिल है।


सतत विकास के उद्देश्य (SDGs):

संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में घोषित 17 सतत विकास लक्ष्य विश्वभर के देशों को एक समावेशी, न्यायसंगत और पर्यावरण-अनुकूल भविष्य की ओर ले जाने का प्रयास हैं। इनमें प्रमुख लक्ष्य हैं – गरीबी उन्मूलन, गुणवत्ता युक्त शिक्षा, जलवायु परिवर्तन से लड़ना, स्वच्छ जल, लिंग समानता, और जिम्मेदार उपभोग।


सततशील और गैर-सततशील क्रियाओं का अंतर:


पक्ष सततशील क्रियाएं गैर-सततशील क्रियाएं
संसाधनों का उपयोग पुनः प्रयोग व नवीकरणीय उपयोग अत्यधिक दोहन एवं अपशिष्ट उत्पादन
ऊर्जा स्रोत सौर, पवन, जल शक्ति कोयला, पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन
कृषि जैविक, मिश्रित फसल प्रणाली रासायनिक आधारित खेती
समाज पर प्रभाव सामाजिक समावेशन और समानता सामाजिक असमानता और विस्थापन


निष्कर्ष: सततशीलता की अवधारणा भविष्य की सुरक्षा की दिशा में एक उत्तरदायी सोच है। इसके लिए आवश्यक है कि हम सततशील व्यवहार अपनाएं और गैर-सततशील गतिविधियों से बचें।





प्रश्न 3: निम्नलिखित की व्याख्या कीजिए



क) जैव ग्राम अथवा पारिस्थितिक ग्राम

जैव ग्राम ऐसे गाँव होते हैं जहाँ पारंपरिक ज्ञान, सतत कृषि, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक भागीदारी से एक पर्यावरण-अनुकूल जीवन शैली अपनाई जाती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है।


ख) सतत जीवन-शैली

सतत जीवन शैली का अर्थ है ऐसे उपभोग और व्यवहार जो पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव डालें। इसमें ऊर्जा और जल का संरक्षण, प्लास्टिक का कम उपयोग, साइकिल चलाना, स्थानीय उत्पादों का उपयोग आदि शामिल हैं।


ग) सतत विकास के अध्ययन हेतु जीविका प्राप्ति उपागम (Sustainable Livelihood Approach)

यह दृष्टिकोण लोगों की आजीविका को उन संसाधनों के साथ जोड़ता है जो उन्हें सतत रूप से आजीविका के साधन प्रदान कर सकें। इसमें पाँच पूँजियाँ (प्राकृतिक, मानव, सामाजिक, भौतिक और वित्तीय) प्रमुख हैं। यह दृष्टिकोण भागीदारी, सशक्तिकरण, और बहु-क्षेत्रीय नीतियों पर आधारित है।





प्रश्न 4: सतत आर्थिक विकास के संबंध में विकासशील देशों के प्रमुख विभिन्न मुद्दों और चुनौतियों की विवेचना कीजिए। सतत विकास और व्यापार संबंधों में उत्तर-दक्षिण विभाजन की चर्चा कीजिए।



विकासशील देश सतत आर्थिक विकास की दिशा में कई जटिल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जैसे:


  • गरीबी और बेरोजगारी: बड़ी जनसंख्या और सीमित संसाधनों के कारण आर्थिक असमानता गहराती है।
  • अत्यधिक संसाधन दोहन: आर्थिक विकास के लिए पर्यावरणीय संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग होता है।
  • तकनीकी अभाव: नवीन और स्वच्छ तकनीकों तक सीमित पहुंच के कारण पारंपरिक प्रदूषक तकनीकों का प्रयोग।
  • शहरीकरण: अनियोजित शहरीकरण से पर्यावरणीय क्षति बढ़ती है।



उत्तर-दक्षिण विभाजन:

विकसित देश (उत्तर) और विकासशील देश (दक्षिण) के बीच संसाधनों, तकनीकी और पूँजी पर आधारित असमानता को उत्तर-दक्षिण विभाजन कहा जाता है। विकसित देशों के पास स्वच्छ प्रौद्योगिकियाँ हैं, जबकि विकासशील देशों को अधिक पर्यावरणीय शर्तें झेलनी पड़ती हैं। साथ ही, वैश्विक व्यापार में दक्षिण के देशों के प्राकृतिक संसाधनों का अधिक शोषण होता है, जबकि उन्हें पर्यावरणीय नियमों में ढील नहीं मिलती।


निष्कर्ष: इन असमानताओं को दूर किए बिना सतत आर्थिक विकास एक समावेशी प्रक्रिया नहीं बन सकती।





प्रश्न 5: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए



क) पर्यावरण पर औद्योगिकीकरण का प्रभाव:

औद्योगिकीकरण के कारण वायु, जल और मृदा प्रदूषण बढ़ा है। वनों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों का अति-उपयोग और कार्बन उत्सर्जन इसके दुष्परिणाम हैं। हालाँकि हरित तकनीकों के माध्यम से इसका प्रभाव कम किया जा सकता है।


ख) बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्व:

बौद्धिक संपदा अधिकार नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं और नवप्रवर्तन की रक्षा करते हैं। पारंपरिक ज्ञान और जैवविविधता को सुरक्षा देने में इनकी भूमिका अहम है।


ग) अंतर पीढ़ीय समता और न्याय:

सतत विकास का मूल आधार है कि वर्तमान पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के संसाधनों को नष्ट न करे। इससे अंतर पीढ़ीय न्याय सुनिश्चित होता है।


घ) सतत विकास में सहकारी संस्थाओं के प्रकार्य:

सहकारी संस्थाएं जैसे ग्रामीण सहकारी बैंक, महिला स्वयं सहायता समूह, पर्यावरणीय सहकारी समितियाँ सतत विकास में वित्तीय समावेशन, जागरूकता और संसाधन प्रबंधन के माध्यम से योगदान देती हैं।





प्रश्न 6: सतत विकास की अवधारणा को समझने के लिए किन्हीं चार परिमापों का नाम लिखिए तथा किन्हीं दो की विस्तृत व्याख्या कीजिए।



प्रमुख परिमाप:


  1. आर्थिक सततता
  2. पर्यावरणीय सततता
  3. सामाजिक सततता
  4. संस्थागत या प्रशासनिक सततता



(1) पर्यावरणीय सततता:

यह परिमाण यह सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का दोहन इस तरह से किया जाए जिससे पारिस्थितिक संतुलन बना रहे। जैसे – वन संरक्षण, जल स्रोतों का पुनर्भरण, और प्रदूषण नियंत्रण।


(2) सामाजिक सततता:

सामाजिक समानता, लैंगिक न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य और भागीदारी को सुनिश्चित करना इस परिमाण का हिस्सा है। यह समाज के सभी वर्गों को विकास की प्रक्रिया में जोड़ने का प्रयास करता है।





प्रश्न 7: किन्हीं दो वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं का विश्लेषण कीजिए तथा राष्ट्रों के सतत विकास पर उनके प्रभाव बताइए।



1. जलवायु परिवर्तन:

यह वैश्विक तापमान में वृद्धि, समुद्र स्तर में बढ़ोतरी, और चरम मौसम घटनाओं (सूखा, बाढ़) के रूप में प्रकट होता है। इससे कृषि उत्पादकता, मानव स्वास्थ्य और जल संसाधनों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।


2. जैव विविधता का क्षरण:

जंगलों की कटाई, शहरीकरण और प्रदूषण के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। इससे पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो जाता है, जिससे खाद्य श्रृंखला और मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


प्रभाव:

ये समस्याएँ सतत विकास के प्रयासों को कमजोर करती हैं, विशेषकर विकासशील देशों में जहाँ संसाधनों की कमी होती है। इनसे निपटने के लिए वैश्विक सहयोग, हरित प्रौद्योगिकी और नीति-निर्माण आवश्यक है।





प्रश्न 8: “स्थानीय समुदायों में पारम्परिक अभ्यासों एवं ज्ञान को वैज्ञानिक ज्ञान एवं विधियों के निवेश के साथ जोड़े जाने के प्रयास किए जा रहे हैं” उचित उदाहरणों की सहायता से इस कथन को सिद्ध कीजिए।



स्थानीय समुदायों का पारंपरिक ज्ञान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में सहायक होता है। जब इसे वैज्ञानिक विधियों से जोड़ा जाता है तो परिणाम अधिक प्रभावी और टिकाऊ होते हैं।


उदाहरण:


  1. उत्तराखंड का पारंपरिक जल संचयन:
    पारंपरिक चाल-खाल विधियाँ वैज्ञानिक रूप से बनाए गए चेक डैम्स के साथ जोड़ी गईं, जिससे जल स्तर में सुधार आया।
  2. आंध्र प्रदेश की प्राकृतिक खेती:
    कृषकों के अनुभव और वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों को जोड़कर शून्य रासायनिक खेती को बढ़ावा मिला।
  3. उत्तर-पूर्वी भारत में झूम खेती का पुनर्गठन:
    पारंपरिक झूम खेती में आधुनिक तकनीक और फसल चक्र प्रणाली मिलाकर भूमि की उत्पादकता बढ़ाई गई।



निष्कर्ष:

इस समेकन से न केवल पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है बल्कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी सुनिश्चित होती है।





प्रश्न 9: उत्तर-दक्षिण विभाजन को दूर करने के लिए किए गए प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।



उत्तर-दक्षिण विभाजन विकसित (उत्तर) और विकासशील (दक्षिण) देशों के बीच आर्थिक, तकनीकी और पर्यावरणीय असमानताओं को दर्शाता है। इस असमानता को दूर करने के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय प्रयास हुए हैं:


  1. ब्रुंटलैंड रिपोर्ट (1987): विकास को सतत और समावेशी बनाने का आह्वान।
  2. UNFCCC और पेरिस समझौता (2015): जलवायु परिवर्तन से लड़ने में उत्तर देशों की अधिक जिम्मेदारी को मान्यता दी गई।
  3. जलवायु वित्त: ग्रीन क्लाइमेट फंड के माध्यम से विकासशील देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता।
  4. ट्रेड-रिलेटेड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (TRIPS) में लचीलापन: दक्षिण देशों को दवा और कृषि में तकनीकी छूट।
  5. दक्षिण-दक्षिण सहयोग: विकासशील देशों के बीच संसाधनों और तकनीक का आदान-प्रदान बढ़ाने की पहल।



इन प्रयासों के बावजूद, व्यावहारिक अंतर अभी भी बना हुआ है, जिसे और अधिक साझेदारी व न्यायसंगत नीतियों से ही दूर किया जा सकता है।





प्रश्न 10: भारत में पर्यावरणीय संरक्षण के लिए नागरिक समाज संगठनों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।



भारत में नागरिक समाज संगठनों (CSOs) ने पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन संगठनों में गैर-सरकारी संगठन, स्वैच्छिक संस्थाएँ, छात्र समूह, और स्थानीय समुदाय शामिल हैं।


प्रमुख भूमिकाएँ:


  1. जागरूकता फैलाना:
    चिपको आंदोलन और नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे आंदोलनों ने आम जनता को पर्यावरणीय अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
  2. नीति-निर्माण में भागीदारी:
    सीएसओ पर्यावरणीय कानूनों की निगरानी और संशोधन में सक्रिय रहते हैं। जैसे CSE (Centre for Science and Environment) की रिपोर्टें सरकार को सुझाव देती हैं।
  3. स्थानीय परियोजनाएँ:
    ग्राम स्तर पर जल संरक्षण, वनीकरण और कचरा प्रबंधन जैसी परियोजनाएं चलाई जाती हैं।
  4. जन आंदोलन:
    पर्यावरणीय मुद्दों पर धरना, प्रदर्शन, जनसुनवाई के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाया जाता है।



निष्कर्ष:

भारत में नागरिक समाज संगठनों ने शासन के पूरक के रूप में पर्यावरणीय जागरूकता और कार्रवाई को मजबूती दी है। इनके प्रयासों को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

प्रश्न 11: D.F.I.D द्वारा दी गई सतत जीविका की परिभाषा लिखिए। पाँच प्रकार की पूँजी परिसम्पत्ति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए जिनसे व्यक्ति अपनी जीविका चाहता है। सतत जीविका परिणाम के लिए महत्वपूर्ण चार शासन प्रबंधन के मुद्दों की व्याख्या कीजिए।


उत्तर:

ब्रिटेन के “Department for International Development (DFID)” द्वारा दी गई सतत जीविका की परिभाषा के अनुसार, सतत जीविका वह है जो समय के साथ, झटकों एवं संकटों से निपटने, संसाधनों का संरक्षण करने और भावी पीढ़ियों के लिए आजीविका के अवसर बनाए रखने में सक्षम हो।


पाँच पूँजी परिसम्पत्तियाँ:


  1. प्राकृतिक पूँजी – भूमि, जल, वनों आदि जैसे प्राकृतिक संसाधन।
  2. मानव पूँजी – स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल आदि से जुड़ी क्षमताएँ।
  3. सामाजिक पूँजी – समुदाय, संस्थाओं, विश्वास और सामाजिक संबंधों का तंत्र।
  4. भौतिक पूँजी – बुनियादी ढाँचा जैसे मकान, परिवहन, उपकरण।
  5. वित्तीय पूँजी – धन, ऋण, बचत आदि वित्तीय संसाधन।



चार शासन/प्रबंधन के मुद्दे:


  1. भागीदारी और समावेशिता – निर्णयों में समुदाय की भागीदारी।
  2. जवाबदेही – संसाधनों के उपयोग में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व।
  3. संस्थागत समन्वय – विभिन्न विभागों और योजनाओं में तालमेल।
  4. नीति समर्थन – सतत जीविका को सहयोग देने वाली नीतियाँ और कार्यक्रम।



यह मॉडल आजीविका के बहुआयामी पहलुओं को समझने एवं नीतिगत सुधार हेतु उपयोगी है।




प्रश्न 12: सतत विकास के लिए दक्षिण एशिया में स्थित संस्थागत तंत्रों की चर्चा कीजिए।


उत्तर:

दक्षिण एशिया में सतत विकास को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न राष्ट्रीय व क्षेत्रीय संस्थागत तंत्र स्थापित किए गए हैं। ये तंत्र पर्यावरणीय संरक्षण, आर्थिक विकास और सामाजिक समानता के लिए कार्य करते हैं।


मुख्य संस्थागत तंत्र:


  1. सार्क पर्यावरण मंत्रालय – सार्क देशों के पर्यावरणीय मुद्दों पर समन्वय और नीतिगत सहयोग के लिए यह मंच कार्य करता है।
  2. South Asia Cooperative Environment Programme (SACEP) – पर्यावरणीय सहयोग को बढ़ावा देने वाला क्षेत्रीय निकाय।
  3. National Sustainable Development Strategies (NSDS) – प्रत्येक देश द्वारा अपनाई गई योजनाएँ जैसे भारत की ‘राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन पर’।
  4. ADB (Asian Development Bank) – सतत बुनियादी ढांचे, स्वच्छ ऊर्जा व गरीबी उन्मूलन परियोजनाओं में वित्तीय और तकनीकी सहायता।



अन्य पहलें:


  • UNDP के माध्यम से सतत विकास लक्ष्य (SDGs) के लिए परियोजनाएं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) कानूनों का विकास।



इन संस्थागत ढाँचों के माध्यम से दक्षिण एशियाई देश सतत विकास की दिशा में समन्वित प्रयास कर रहे हैं।




प्रश्न 13: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –


क) सतत् कृषि प्रथाओं से जुड़ी पर्यावरण समस्याएं

उत्तर: जैविक कृषि, मिश्रित खेती जैसी सतत कृषि पद्धतियाँ पर्यावरण हितैषी होती हैं, परंतु यदि संतुलन न रखा जाए, तो कुछ समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जैसे – जल की अधिक माँग, मिट्टी की उर्वरता पर दबाव, कीट नियंत्रण में कठिनाई, एवं उत्पादन में कमी जिससे भूमि पर और अधिक दोहन का दबाव बनता है।


ख) पर्यावरण रक्षा के अंतर्राष्ट्रीय उपक्रमों की चुनौतियां

उत्तर: अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल, आदि में अनेक देशों की भागीदारी होती है, परंतु विकसित और विकासशील देशों के बीच उत्तरदायित्व बाँटने में मतभेद, वित्तीय संसाधनों की कमी, और अनुपालन की बाध्यता की कमी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।


ग) सतत जीवन शैली

उत्तर: सतत जीवन शैली का आशय ऐसे जीवन व्यवहार से है जिसमें संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। जैसे – ऊर्जा की बचत, प्लास्टिक का परित्याग, स्थानीय उत्पादों का उपयोग आदि। यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी के साथ पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।




प्रश्न 14: लैंगिक विषमता क्या है? पर्यावरण बचाने तथा सतत विकास में लैंगिक विषमता किस प्रकार बाधा उत्पन्न कर सकती है, व्याख्या कीजिए।


उत्तर:

लैंगिक विषमता वह स्थिति है जिसमें पुरुष और महिलाएं सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवसरों में समान भागीदारी नहीं कर पातीं। यह असमानता सतत विकास की राह में बाधा उत्पन्न करती है।


प्रभाव:


  1. संसाधनों की पहुंच – ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं जल, ईंधन, भूमि जैसे संसाधनों के उपयोग में सीमित रहती हैं।
  2. नीति निर्धारण में भागीदारी की कमी – महिलाएं पर्यावरणीय नीतियों में सक्रिय भूमिका नहीं निभा पातीं।
  3. शिक्षा और स्वास्थ्य तक सीमित पहुंच – महिलाओं की शिक्षा व स्वास्थ्य पर असर उनके सतत जीवन विकल्पों को बाधित करता है।



यदि महिलाओं को संसाधनों पर अधिकार, तकनीकी प्रशिक्षण और नीति निर्माण में भागीदारी मिले, तो वे जलवायु परिवर्तन और सतत कृषि जैसे क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।




प्रश्न 15: “हम अपनी भूमिका अपनी जीवन शैली के अनुसार निभाते हैं जो सतत विकास के अनुरूप भी हो सकती है तथा नहीं भी” – उचित उदाहरण तथा तर्क के द्वारा कथन को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर:

यह कथन इस बात पर प्रकाश डालता है कि प्रत्येक व्यक्ति की जीवनशैली सतत विकास को प्रभावित करती है – सकारात्मक या नकारात्मक रूप में।


सतत जीवन शैली के उदाहरण:


  • सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग कर ईंधन की बचत करना।
  • वर्षा जल संचयन द्वारा जल संरक्षण।
  • स्थानीय एवं जैविक उत्पादों का उपयोग कर कार्बन फुटप्रिंट कम करना।



गैर-सतत जीवन शैली के उदाहरण:


  • अत्यधिक उपभोग और अपशिष्ट उत्पादन।
  • ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग जैसे ए.सी., वाहन आदि।
  • एकल उपयोग प्लास्टिक का प्रयोग।



निष्कर्ष:

सतत विकास कोई बाहरी एजेंडा नहीं बल्कि व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। हम जैसे विकल्प अपनाते हैं, वही भविष्य को गढ़ते हैं। इसलिए जागरूक जीवनशैली आवश्यक है।




प्रश्न 16: प्राकृतिक संसाधन के सतत प्रयोग के विभिन्न आयामों का विश्लेषण करें।


उत्तर:

प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रयोग उनकी उपलब्धता को बनाए रखते हुए वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को संतुलित करता है।


मुख्य आयाम:


  1. पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण – जल, ऊर्जा, धातु आदि संसाधनों का दोबारा उपयोग।
  2. वैकल्पिक संसाधनों का उपयोग – जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना।
  3. समुदाय आधारित प्रबंधन – स्थानीय लोगों को संसाधनों के संरक्षण में भागीदार बनाना।
  4. प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग – ड्रिप इरिगेशन, स्मार्ट ऊर्जा उपकरणों आदि का प्रयोग।
  5. नीतिगत ढाँचा – संसाधन प्रबंधन हेतु कठोर कानून व जागरूकता अभियान।



निष्कर्ष: प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखता है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।




प्रश्न 17: निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –


क) कृषि तथा वानिकी में नव्य प्रक्रियात्मक व्यवहार

उत्तर: जैसे- जैविक कृषि, ड्रिप सिंचाई, मिश्रित वनरोपण, कृषि-वृक्षारोपण मॉडल; ये व्यवहार कम संसाधनों में अधिक उत्पादन व पर्यावरण संरक्षण में सहायक हैं।


ख) पर्यावरण संरक्षण हेतु जनभागीदारी तथा आंदोलन

उत्तर: चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ जैसे प्रयासों ने जनता को पर्यावरण रक्षक बनाया है। जन जागरूकता और स्थानीय सहभागिता से नीति पर असर पड़ा।


ग) सतत विकास के लिए बहुआयामी उपागम

उत्तर: इसमें आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, तकनीकी और राजनीतिक पक्षों को मिलाकर विकास की योजना बनती है। यह समग्र दृष्टिकोण अपनाने की मांग करता है।


घ) संकटाच्छन्न वन्य जंतु एवं पादप प्रजाति अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते (CITES)

उत्तर: यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो संकटग्रस्त जीवों व पौधों के व्यापार को नियंत्रित करता है। यह जैव विविधता की रक्षा में एक महत्वपूर्ण क़दम है।




प्रश्न 18: एशियाई विकास बैंक के किन्हीं तीन उद्देश्यों की चर्चा कीजिए। एशियाई विकास बैंक के किन्हीं दो कार्यों की सूची बनाइए।


उत्तर:

उद्देश्य:


  1. क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ाना।
  2. गरीबी उन्मूलन हेतु सतत परियोजनाओं को समर्थन देना।
  3. बुनियादी ढांचे व ऊर्जा क्षेत्रों में वित्तीय सहायता।



मुख्य कार्य:


  1. परियोजनाओं के लिए ऋण और अनुदान प्रदान करना।
  2. तकनीकी सहायता और नीति सलाह देना।



ADB सतत विकास हेतु एशियाई देशों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।




प्रश्न 19: वायु तथा जल प्रदूषण से संबंधित भारतीय पर्यावरण कानूनों का वर्णन कीजिए।


उत्तर:


  1. जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 – जल स्रोतों के प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु स्थापित किया गया था। इसके अंतर्गत राज्य व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित किए गए।
  2. वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 – औद्योगिक व वाहनों द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने हेतु।
  3. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – पर्यावरणीय मामलों में एक समग्र अधिनियम, जिसमें वायु, जल, मृदा और जैवविविधता शामिल है।



ये कानून पर्यावरणीय क्षरण को रोकने में सहायक हैं, लेकिन प्रभावी क्रियान्वयन अभी भी एक चुनौती है।




प्रश्न 20: जैव-ग्राम की परिभाषा लिखिए। इसमें किस प्रकार गतिविधियों का पालन किया जाता है? जैव ग्राम के किन्हीं दो लाभों की सूची बनाइए।


उत्तर:

परिभाषा: जैव-ग्राम वह ग्राम होता है जहाँ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व सतत उपयोग पर आधारित जीवन शैली अपनाई जाती है।


गतिविधियाँ:


  • वर्षा जल संचयन
  • सौर ऊर्जा का प्रयोग
  • जैविक कृषि व पशुपालन
  • स्थानीय संसाधनों से स्वावलंबन
  • अपशिष्ट प्रबंधन



लाभ:


  1. पर्यावरणीय संरक्षण के साथ स्थानीय आजीविका का संवर्धन।
  2. ऊर्जा, खाद्य और जल की आत्मनिर्भरता।



जैव-ग्राम, सतत विकास के लिए ग्रामीण भारत में एक सफल मॉडल प्रस्तुत करता है।


प्रश्न 21: स्वास्थ्य एवं औषधि में पारंपरिक ज्ञान की भूमिका का वर्णन कीजिए। जैवपुवक्षण एक उभरता हुआ क्षेत्र क्यों है?



उत्तर:

पारंपरिक ज्ञान, जैसे आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी आदि चिकित्सा पद्धतियाँ, सदियों से स्वास्थ्य व औषधि के क्षेत्र में उपयोगी रही हैं। स्थानीय जड़ी-बूटियों का उपयोग, उपचार की प्राकृतिक विधियाँ और रोगों की रोकथाम में यह ज्ञान अत्यंत मूल्यवान है।


भूमिका:


  1. जड़ी-बूटियों पर आधारित औषधियाँ – जैसे हल्दी, नीम, तुलसी आदि।
  2. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली विधियाँ – जैसे पंचकर्म, योग, घरेलू नुस्खे।
  3. सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल – ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध।



जैवपुवक्षण (Bioprospecting):

यह वह प्रक्रिया है जिसमें जीवों (वनस्पतियों, सूक्ष्मजीवों आदि) से औषधीय या व्यावसायिक रूप से उपयोगी यौगिकों की खोज की जाती है।


यह उभरता हुआ क्षेत्र क्यों है?


  • नव औषधियों की खोज में सहायता
  • पारंपरिक ज्ञान का वैज्ञानिक दोहन
  • जैव विविधता की आर्थिक मान्यता
  • बायोपायरेसी को रोकने में सहायक



इस क्षेत्र के विकास से पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा, आर्थिक लाभ और पर्यावरण संरक्षण को बल मिलता है।





प्रश्न 22: उत्पादन प्रौद्योगिकी के पाँच M की व्याख्या कीजिए तथा विनिर्माण की वैकल्पिक प्रौद्योगिक व्यवस्था की सूची बनाइए।



उत्तर:

उत्पादन प्रौद्योगिकी के पाँच M निम्नलिखित हैं:


  1. Man (मानव): कुशल श्रमिकों और प्रबंधकों की भूमिका।
  2. Machine (मशीन): उत्पादन में प्रयुक्त उपकरण व यंत्र।
  3. Material (सामग्री): कच्चा माल एवं इनपुट संसाधन।
  4. Method (विधि): उत्पादन की प्रक्रिया व तकनीकी।
  5. Money (धन): पूँजी, निवेश और वित्तीय प्रबंधन।



वैकल्पिक प्रौद्योगिकी व्यवस्था:


  • हरित उत्पादन प्रणाली
  • 3D प्रिंटिंग तकनीक
  • सौर ऊर्जा आधारित विनिर्माण
  • स्मार्ट फैक्ट्रियाँ (Industry 4.0)
  • क्लीनर प्रोडक्शन तकनीक



ये प्रणाली पारंपरिक औद्योगिक ढाँचे की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल, ऊर्जा कुशल और टिकाऊ होती हैं।





प्रश्न 23: मरुस्थलीकरण क्या है? इसके क्या कारण हैं तथा इससे निपटने के क्या तरीके हैं?



उत्तर:

मरुस्थलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें उपजाऊ भूमि धीरे-धीरे बंजर और रेगिस्तान जैसी बन जाती है। यह मुख्यतः सूखा, वनों की कटाई और असंतुलित भूमि उपयोग से होता है।


मुख्य कारण:


  1. अत्यधिक चराई और कृषि।
  2. वनावरण में कमी।
  3. जलवायु परिवर्तन और वर्षा में कमी।
  4. असंतुलित सिंचाई एवं जल निकासी।



निपटने के उपाय:


  1. वनरोपण और हरित पट्टी निर्माण।
  2. वाटरशेड प्रबंधन।
  3. स्थानीय समुदायों की भागीदारी।
  4. सूखा-रोधी कृषि पद्धतियाँ।
  5. भूमि उपयोग नियोजन।



भारत का UNCCD (United Nations Convention to Combat Desertification) के अंतर्गत प्रयास सराहनीय हैं, जो सतत भूमि प्रबंधन को बढ़ावा देते हैं।





प्रश्न 24: सतत विकास प्राप्ति के लिए सरकार द्वारा प्राथमिकता वाले क्षेत्र की चर्चा कीजिए।



उत्तर:

भारत सरकार सतत विकास के लक्ष्य (SDGs) की प्राप्ति हेतु अनेक प्राथमिक क्षेत्र तय कर चुकी है, जिनमें पर्यावरणीय संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक व सामाजिक समावेशिता शामिल है।


प्रमुख प्राथमिक क्षेत्र:


  1. नवीकरणीय ऊर्जा: सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा देना (उदा. – अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन)।
  2. स्वच्छता और स्वच्छ जल: स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन।
  3. गरीबी उन्मूलन: राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन।
  4. शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा का अधिकार अधिनियम, आयुष्मान भारत योजना।
  5. जलवायु कार्रवाई: राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजना (NAPCC)।



संयुक्त दृष्टिकोण, नीति समर्थन, और जनभागीदारी के माध्यम से सरकार सतत विकास लक्ष्यों को समयबद्ध ढंग से प्राप्त करने हेतु प्रयासरत है।





प्रश्न 25: सीमा शुल्क और व्यापार संबंधी सामान्य समझौते क्या है? इसकी कमजोरी की चर्चा कीजिए।



उत्तर:

GATT (General Agreement on Tariffs and Trade), 1947 में स्थापित एक बहुपक्षीय समझौता था जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देना और सीमा शुल्क को घटाना था।


मुख्य उद्देश्य:


  • व्यापार बाधाओं को कम करना।
  • एक निष्पक्ष व्यापार प्रणाली स्थापित करना।



कमजोरियाँ:


  1. विकासशील देशों की उपेक्षा: GATT की शर्तें अधिकतर विकसित देशों के हित में थीं।
  2. सेवा क्षेत्र का अभाव: केवल वस्तुओं तक सीमित।
  3. विवाद समाधान प्रणाली कमजोर: कोई बाध्यकारी निर्णय प्रणाली नहीं थी।
  4. पर्यावरण और श्रमिक मानकों की उपेक्षा।



इन्हीं कमजोरियों के कारण 1995 में WTO की स्थापना हुई, जो GATT का विस्तृत और मजबूत संस्करण है।





प्रश्न 26: बहुआयामी उपागम के संदर्भ से “स्तर स्थानांतरण तंत्र” के किन्हीं पांच उपागमों की चर्चा कीजिए।



उत्तर:

“स्तर स्थानांतरण तंत्र” का तात्पर्य है – विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्तरों पर जानकारी, तकनीक, संसाधनों और नीतियों का समन्वय।


पाँच उपागम:


  1. ऊपर से नीचे का दृष्टिकोण: राष्ट्रीय नीति का स्थानीय क्रियान्वयन।
  2. नीचे से ऊपर दृष्टिकोण: समुदाय आधारित योजना और नवाचार।
  3. क्षेत्रीय समन्वय: स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के विभागों का सहयोग।
  4. जन-निजी भागीदारी: NGO, CSR और सरकार के साझा प्रयास।
  5. ज्ञान और तकनीक हस्तांतरण: अनुसंधान संस्थानों से किसानों/उद्यमों तक तकनीकी ज्ञान पहुँचाना।



यह बहुस्तरीय दृष्टिकोण सतत विकास को प्रभावी और समावेशी बनाता है।





प्रश्न 27: उपयुक्त प्रौद्योगिकी क्या है? प्रौद्योगिकी के उपयुक्त होने के लिए आवश्यक किन्हीं छः परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।



उत्तर:

उपयुक्त प्रौद्योगिकी (Appropriate Technology) ऐसी तकनीक होती है जो स्थानीय जरूरतों, संसाधनों और पर्यावरण के अनुकूल हो।


उपयुक्तता की छः परिस्थितियाँ:


  1. स्थानीय संसाधनों पर आधारित हो।
  2. कम लागत और उच्च दक्षता वाली हो।
  3. स्थानीय लोगों द्वारा संचालित और रखरखाव योग्य हो।
  4. पर्यावरण अनुकूल हो।
  5. स्थानीय संस्कृति और सामाजिक संरचना से मेल खाती हो।
  6. रोजगार सृजन में सहायक हो।



उदाहरण: सौर लालटेन, ड्रिप इरिगेशन, बायोगैस प्लांट आदि।





प्रश्न 28: सततशीलता से क्या तात्पर्य है? सततशीलता बनाए रखने के लिए हैरमैन डेली द्वारा दिए गए तीन विशेष नियमों का उल्लेख कीजिए।



उत्तर:

सततशीलता (Sustainability) का आशय है – प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करना कि भविष्य की आवश्यकताएँ बाधित न हों।


हैरमैन डेली के तीन नियम:


  1. नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग उनकी पुनःपूर्ति दर से अधिक नहीं होना चाहिए।
  2. अ-नवीकरणीय संसाधनों का प्रयोग वैकल्पिक विकल्प विकसित होने तक सीमित किया जाए।
  3. प्रदूषण और अपशिष्टों का उत्सर्जन, पारिस्थितिकीय अवशोषण क्षमता से अधिक नहीं होना चाहिए।



ये नियम संसाधनों की दीर्घकालिक उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं।





प्रश्न 29: समाज के सतत विकास पर औद्योगीकरण और शहरीकरण की भूमिका की व्याख्या कीजिए।



उत्तर:

औद्योगीकरण और शहरीकरण, आर्थिक विकास को गति प्रदान करते हैं, लेकिन यदि इन्हें संतुलित ढंग से न अपनाया जाए तो ये पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।


सकारात्मक पक्ष:


  • रोज़गार सृजन
  • आधारभूत संरचना का विकास
  • सेवाओं तक पहुँच में सुधार



नकारात्मक पक्ष:


  • जलवायु परिवर्तन, वायु/जल प्रदूषण
  • झुग्गियाँ और अव्यवस्थित शहरीकरण
  • प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव



समाधान:


  • स्मार्ट सिटी मिशन
  • ग्रीन बिल्डिंग तकनीक
  • सार्वजनिक परिवहन और कचरा प्रबंधन प्रणाली



यदि टिकाऊ योजना और नीति के तहत हो तो औद्योगीकरण और शहरीकरण सतत विकास के वाहक बन सकते हैं।





प्रश्न 30: ‘ग्रहण क्षमता’ को परिभाषित कीजिए। पृथ्वी की ग्रहण क्षमता किस प्रकार खतरे में है इसके बारे में उपयुक्त उदाहरण द्वारा विस्तार से लिखिए।



उत्तर:

ग्रहण क्षमता (Carrying Capacity) वह अधिकतम सीमा है, जितनी तक कोई पारिस्थितिक तंत्र बिना दीर्घकालिक क्षति के जीवों को संसाधन और जीवन समर्थन प्रदान कर सकता है।


पृथ्वी की ग्रहण क्षमता पर खतरे:


  1. जनसंख्या विस्फोट – संसाधनों की अधिक माँग।
  2. अत्यधिक उपभोग – ऊर्जा, जल, मृदा की अधिक खपत।
  3. प्रदूषण – कार्बन उत्सर्जन, प्लास्टिक अपशिष्ट।
  4. वनों की कटाई और जैव विविधता का ह्रास।



उदाहरण:


  • प्लास्टिक प्रदूषण के कारण समुद्री जीवों की मृत्यु।
  • अमेज़न वर्षावनों की कटाई।
  • शहरों में जल संकट (जैसे चेन्नई)।



निष्कर्ष:

यदि मनुष्य प्रकृति की सीमाओं का ध्यान नहीं रखेगा, तो पारिस्थितिक असंतुलन और संकट उत्पन्न होंगे। ग्रहण क्षमता की रक्षा हेतु सतत जीवन शैली और संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है।



प्रश्न 31: लैंगिक असमानता को कम करने से सतत विकास कैसे बढ़ सकता है अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।



उत्तर:

लैंगिक असमानता, सतत विकास में एक बड़ी बाधा है। जब समाज में स्त्री और पुरुषों को समान अवसर नहीं दिए जाते, तो आधी आबादी की क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता। सतत विकास के तीन प्रमुख आयाम — आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय — सभी पर इसका प्रभाव पड़ता है।


सतत विकास में लैंगिक समानता के लाभ:


  1. आर्थिक विकास: महिलाओं को शिक्षा और रोजगार का समान अवसर देने से देश की GDP में वृद्धि होती है।
  2. सामाजिक विकास: लैंगिक समानता से निर्णय प्रक्रिया अधिक समावेशी होती है, जिससे योजनाएँ अधिक प्रभावशाली होती हैं।
  3. पर्यावरण संरक्षण: अनुसंधानों से पता चलता है कि महिलाएं संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ जीवन शैली को अपनाने में पुरुषों से अधिक अग्रणी होती हैं।



उदाहरण:


  • स्वयं सहायता समूह (SHG) और महिला उद्यमिता ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ा रही है।
  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान महिलाओं की भागीदारी बढ़ा रहे हैं।



निष्कर्ष:

लैंगिक समानता सुनिश्चित करना सिर्फ एक नैतिक कर्तव्य नहीं, बल्कि सतत विकास के लिए एक रणनीतिक आवश्यकता है। यदि महिलाएं बराबरी से भाग लेंगी, तो सतत भविष्य की राह अधिक सशक्त होगी।





प्रश्न 32: गरीबी, पर्यावरण तथा सतत विकास के बीच एक निश्चित संबंध है, विस्तार से बताइए।



उत्तर:

गरीबी, पर्यावरणीय क्षरण और सतत विकास के बीच त्रिकोणीय संबंध है। यह परस्पर जुड़ा हुआ चक्र है, जिसमें एक घटक की कमजोरी, अन्य दो को भी प्रभावित करती है।


गरीबी और पर्यावरण का संबंध:


  • गरीब समुदाय अक्सर जीविका के लिए वनों, मृदा और जल संसाधनों पर निर्भर होते हैं।
  • सीमित विकल्प होने के कारण ये संसाधनों का अत्यधिक दोहन करते हैं, जिससे पर्यावरणीय ह्रास होता है।
  • पर्यावरणीय गिरावट जैसे सूखा, बाढ़, भूमि क्षरण – गरीबों को और गरीब बना देती है।



सतत विकास के लिए चुनौती:


  • यदि गरीबी को दूर नहीं किया गया, तो सतत विकास का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा।
  • गरीबों को स्वच्छ ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर देने होंगे ताकि वे टिकाऊ जीवनशैली अपना सकें।



उदाहरण:


  • मनरेगा और उज्ज्वला योजना जैसे कार्यक्रम गरीबी उन्मूलन और पर्यावरणीय लाभ दोनों के वाहक हैं।



निष्कर्ष:

गरीबी उन्मूलन के बिना सतत विकास असंभव है, और पर्यावरणीय संरक्षण के बिना गरीबी का उन्मूलन अस्थायी होगा। अतः तीनों को एक साथ संबोधित करने की आवश्यकता है।





प्रश्न 33: सतत विकास के अध्ययन के लिए बहुआयामी उपागम से क्या तात्पर्य है? पर्यावरणीय अच्छे तथा सतत विकास का अध्ययन करने के लिए किन्हीं पांच संबंध दृष्टिकोण को उदाहरण सहित समझाइए।



उत्तर:

बहुआयामी उपागम का तात्पर्य है — सतत विकास की योजना और क्रियान्वयन में सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, तकनीकी और राजनीतिक पक्षों को समन्वयपूर्वक सम्मिलित करना।


पाँच संबंध दृष्टिकोण:


  1. पर्यावरण-आर्थिक संबंध: पर्यावरणीय संसाधन जैसे जल, वनों का दोहन विकास के लिए जरूरी है, परंतु अत्यधिक दोहन से दीर्घकालिक हानि होती है।
    उदाहरण: नदी जोड़ों की परियोजना से सिंचाई तो बढ़ेगी, पर पारिस्थितिक असंतुलन भी होगा।
  2. सामाजिक-आर्थिक संबंध: विकास की योजनाएँ तभी कारगर होंगी जब वे समाज के सभी वर्गों को समावेशित करें।
    उदाहरण: DBT और जनधन योजना।
  3. पर्यावरण-प्रौद्योगिकी संबंध: हरित प्रौद्योगिकियाँ जैसे सौर ऊर्जा, प्रदूषण नियंत्रण उपकरण, पर्यावरण संरक्षण में सहायक हैं।
    उदाहरण: EV वाहनों को बढ़ावा देना।
  4. नीतिगत-प्रभाव संबंध: नीति निर्माण में पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य हो।
    उदाहरण: EIA अधिसूचना।
  5. स्थानीय-वैश्विक संबंध: स्थानीय क्रियाओं के वैश्विक प्रभाव होते हैं।
    उदाहरण: प्लास्टिक उपयोग का प्रभाव समुद्री पारिस्थितिकी पर।



निष्कर्ष:

एक बहुआयामी दृष्टिकोण के बिना सतत विकास के लक्ष्य अधूरे रहेंगे।





प्रश्न 34: सतत आर्थिक विकास की चुनौतियां क्या हैं? नवोन्मेषी तरीकों से इन चुनौतियों पर किस प्रकार से काबू पाया जा रहा है?



उत्तर:

सतत आर्थिक विकास का अर्थ है – ऐसा आर्थिक विकास जो पर्यावरण और सामाजिक मूल्यों से समझौता किए बिना हो।


प्रमुख चुनौतियाँ:


  1. प्राकृतिक संसाधनों की सीमा।
  2. जलवायु परिवर्तन और आपदाएँ।
  3. बढ़ता उपभोगवाद।
  4. प्रौद्योगिकीय असमानता और बेरोजगारी।
  5. नीतियों का समन्वय अभाव।



नवोन्मेषी समाधान:


  1. हरित ऊर्जा: जैसे – सौर, पवन, बायोमास।
  2. सर्कुलर इकोनॉमी: अपशिष्ट को पुनः उपयोग में लाना।
  3. फिनटेक और डिजिटल भुगतान: वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन।
  4. प्राकृतिक पूंजी लेखांकन: पर्यावरणीय मूल्य का गणना में समावेश।
  5. स्मार्ट कृषि: सटीक सिंचाई, जैविक खेती।



निष्कर्ष:

आर्थिक विकास को सतत बनाने के लिए नवाचार, तकनीकी सुधार और सामाजिक समावेशन अनिवार्य हैं।





प्रश्न 35: भूमंडल तपन के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कुछ सुधारात्मक कदम बताएं।



उत्तर:

भूमंडल तपन (Global Warming) पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही वृद्धि है, जो मुख्यतः ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हो रही है।


प्रमुख दुष्प्रभाव:


  • ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि।
  • चरम मौसमी घटनाएँ – बाढ़, सूखा।
  • जैव विविधता में गिरावट।



सुधारात्मक कदम:


  1. नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: सौर, पवन, जल विद्युत को बढ़ावा देना।
  2. ऊर्जा दक्षता: LED, ऊर्जा-प्रमाणित उपकरण।
  3. वनावरण वृद्धि: वनीकरण और वन संरक्षण।
  4. हरित परिवहन: EV वाहन, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा।
  5. वेस्ट मैनेजमेंट: अपशिष्ट को कम करना और पुनः उपयोग।



भारत की पहलें:


  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन।
  • राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजना (NAPCC)।
  • कार्बन क्रेडिट प्रणाली।



निष्कर्ष:

सामूहिक प्रयास और वैश्विक सहयोग से ही भूमंडलीय तपन के प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है।





प्रश्न 36: भारत में पर्यावरणीय कानून के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।



उत्तर:

भारत में कई मजबूत पर्यावरणीय कानून हैं जैसे – पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986), जल अधिनियम (1974), वायु अधिनियम (1981) आदि। परंतु इनका प्रभावी कार्यान्वयन अनेक कारणों से बाधित होता है।


मुख्य चुनौतियाँ:


  1. कमजोर निगरानी और प्रवर्तन प्रणाली।
  2. जनसंख्या दबाव और शहरीकरण।
  3. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।
  4. वित्तीय और मानव संसाधनों की कमी।
  5. लंबी न्यायिक प्रक्रिया और निष्क्रिय शिकायत प्रणाली।



उदाहरण:


  • यमुना और गंगा प्रदूषण नियंत्रण योजनाओं के बावजूद नदी प्रदूषण जारी है।
  • निर्माण स्थलों पर प्रदूषण नियंत्रण की लचर निगरानी।



निष्कर्ष:

प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राजनीतिक, प्रशासनिक और नागरिक भागीदारी आवश्यक है।





प्रश्न 37: कृषि में सतत उपज के तरीकों की व्याख्या कीजिए तथा इनका उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट कीजिए।



उत्तर:

सतत कृषि उपज का आशय है – प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग कर दीर्घकालीन कृषि उत्पादन को बनाए रखना।


मुख्य तरीके:


  1. जैविक खेती – रसायनों के बिना प्राकृतिक विधियों से खेती।
    उदा.: सिक्किम – जैविक राज्य।
  2. फसल चक्रीकरण – भूमि की उर्वरता बनाए रखना।
  3. एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM): रसायनों के बजाय जैविक विधियाँ।
  4. ड्रिप सिंचाई और माइक्रो सिंचाई।
  5. कंपोस्ट और ग्रीन मैन्योर का उपयोग।



निष्कर्ष:

सतत कृषि पद्धतियाँ पर्यावरण-संरक्षण के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने में सहायक हैं।





प्रश्न 38: जैव प्रौद्योगिकी के सततशील उपयोग क्या हैं?



उत्तर:

जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) का सततशील उपयोग मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाने पर आधारित होता है।


मुख्य उपयोग:


  1. जैव-उर्वरक और जैव-कीटनाशक: रासायनिक विकल्पों से अधिक सुरक्षित।
  2. कचरा प्रबंधन: बायो रिएक्टर और माइक्रोबियल अपघटन प्रणाली।
  3. पुनरुत्पादन में सुधार: उच्च उत्पादक बीज जैसे GM फसलें।
  4. ऊर्जा: जैव ईंधन (Biofuel) उत्पादन।
  5. स्वास्थ्य: वैक्सीन, दवा और जैव संवर्धन तकनीक।



निष्कर्ष:

जैव प्रौद्योगिकी यदि नियंत्रित और विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग हो तो यह सतत विकास का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।





प्रश्न 39: कारीगर शिल्प और कुटीर उद्योगों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। ग्रामीण कुटीर उद्योग किसी क्षेत्र के सतत् विकास में कैसे मदद करते हैं?



उत्तर:

कारीगर शिल्प और कुटीर उद्योग पारंपरिक ज्ञान पर आधारित लघु उद्योग हैं।

उदाहरण: चंदेरी सिल्क (म.प्र.), कांथा कढ़ाई (बंगाल), ब्लू पॉटरी (जयपुर), बनारसी साड़ी आदि।


सतत विकास में भूमिका:


  1. स्थानीय रोजगार सृजन।
  2. महिला सशक्तिकरण में सहायक।
  3. प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग।
  4. प्रवास को रोकने में सहायक।
  5. पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण।



उदाहरण:


  • कुटीर साबुन निर्माण – ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता।
  • हाथ करघा – कम ऊर्जा में उत्पादन।



निष्कर्ष:

कुटीर उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हुए सतत विकास की नींव रखते हैं।





प्रश्न 40: सरकारी पहलों के कुछ उदाहरण प्रदान करते हुए सतत विकास के संदर्भ में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम का वर्णन कीजिए।



उत्तर:

एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP) 1978 में शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य ग्रामीण गरीबों की आजीविका सुधारना और बहुआयामी विकास को सुनिश्चित करना था।


लक्ष्य:


  • गरीबी उन्मूलन
  • आत्मनिर्भरता
  • उत्पादक संपत्ति का निर्माण



सरकारी पहलें (IRDP से प्रेरित):


  1. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)।
  2. मनरेगा – रोजगार गारंटी।
  3. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना।
  4. स्वच्छ भारत अभियान।
  5. जल जीवन मिशन।



सतत विकास में योगदान:


  • समावेशी विकास
  • पर्यावरणीय सरंक्षण
  • सामाजिक समता
  • रोजगार और शिक्षा के अवसर



निष्कर्ष:

IRDP जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण भारत के सतत विकास की नींव रखी है, जिसे आधुनिक योजनाओं के माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है।


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