गांधी का राजनीतिक चिंतन MGP4 Question Answer

 


1. भारत के पुनर्निर्माण में ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ क्यों महत्वपूर्ण है?



महात्मा गांधी के लिए स्वतंत्रता केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं थी, बल्कि एक व्यापक सामाजिक, आर्थिक और नैतिक पुनर्जागरण का माध्यम थी। उनका ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ (Constructive Programme) भारत के पुनर्निर्माण की नींव था।



महत्त्व के कारण:



  • सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन: गांधीजी मानते थे कि असहयोग या सत्याग्रह के साथ-साथ समाज को अंदर से बदलना भी जरूरी है।
  • स्वराज की नींव: स्वराज केवल शासन का हस्तांतरण नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर, नैतिक और सशक्त नागरिकों से बने समाज की स्थापना है।
  • जाति प्रथा और अस्पृश्यता का उन्मूलन: रचनात्मक कार्यक्रमों में छुआछूत विरोध, ग्राम विकास और स्त्री शिक्षा जैसे कार्य शामिल थे।
  • ग्राम स्वराज का निर्माण: गांवों को स्वावलंबी और स्वशासी बनाना गांधीजी की प्राथमिकता थी।



निष्कर्षतः, गांधीजी का रचनात्मक कार्यक्रम भारत की आत्मा के पुनर्जीवन का प्रयास था, जिसमें समाज को जड़ से बदलने की शक्ति थी।





2. गांधीजी मशीनरी के पूर्ण उन्मूलन की जगह उसके सीमित उपयोग के पक्षधर क्यों थे?



गांधीजी आधुनिक मशीनों के विरोधी नहीं थे, बल्कि अंधाधुंध औद्योगीकरण और मशीनीकरण के दुष्प्रभावों के विरोधी थे।



उनकी चिंताएँ:



  • रोज़गार संकट: मशीनें श्रमिकों का स्थान लेती हैं, जिससे बेरोज़गारी बढ़ती है।
  • केन्द्रित पूंजी: मशीनी उत्पादन कुछ लोगों के पास धन और सत्ता केंद्रित करता है।
  • विनाशकारी उपभोगवाद: मशीनें उपभोग की संस्कृति को बढ़ावा देती हैं, जो नैतिक पतन लाती है।
  • स्वदेशी और हस्तशिल्प का ह्रास: मशीनरी भारतीय कारीगरों और पारंपरिक उद्योगों के लिए खतरा थी।



गांधी मानते थे कि मशीनें तब तक स्वीकार्य हैं जब तक वे मानव की सेवा करें, न कि उसे बदलें। इसलिए वे सीमित और नियंत्रित उपयोग के पक्षधर थे।





3. गांधीजी ने स्वराज का वास्तविक अर्थ क्या बताया है?



गांधीजी के लिए स्वराज (Swaraj) का अर्थ केवल विदेशी शासन से मुक्ति नहीं था, बल्कि एक आत्मनिर्भर, नैतिक और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना थी।



स्वराज के आयाम:



  • व्यक्तिगत स्वराज: आत्म-नियंत्रण, आत्म-शुद्धि और नैतिक बल।
  • सामाजिक स्वराज: अस्पृश्यता का अंत, स्त्री समानता और सामाजिक समरसता।
  • राजनीतिक स्वराज: विकेन्द्रीकरण, ग्राम स्वराज और जनसहभागिता।
  • आर्थिक स्वराज: खादी, कुटीर उद्योग और स्वदेशी को अपनाना।



गांधीजी ने स्पष्ट किया – “स्वराज का अर्थ है अपने ऊपर शासन करना।” यह स्वतंत्रता से कहीं अधिक आत्म-शासन है।





4. गांधीवादी शांतिवाद का मूल तत्व क्या है?



गांधीवादी शांतिवाद का मूल तत्व है अहिंसा (Non-violence) और सत्य (Truth) पर आधारित संघर्ष।



मुख्य तत्त्व:



  • अहिंसा: न केवल शारीरिक हिंसा से बचना, बल्कि मन, वचन और कर्म से भी किसी को हानि न पहुँचाना।
  • सत्याग्रह: न्याय के लिए अहिंसक विरोध।
  • करुणा और क्षमा: विरोधियों के प्रति भी सम्मान और प्रेम का भाव।
  • आत्मबल (Soul-force): नैतिक बल का प्रयोग हिंसक शक्ति के स्थान पर।



इस दृष्टिकोण में शांति केवल युद्ध का अभाव नहीं, बल्कि सकारात्मक नैतिक जीवन है।





5. संक्षिप्त टिप्पणी:




(अ) शक्ति सत्ता का सिद्धांत (Theory of Power):



गांधीजी की शक्ति का सिद्धांत ‘आत्मबल’ और नैतिक बल पर आधारित था, न कि सैन्य या राजनीतिक शक्ति पर। उन्होंने कहा – “सच्ची शक्ति हिंसा में नहीं, बल्कि सहिष्णुता, संयम और सत्य में है।”



(ब) संघर्ष और हिंसा के बीच अंतर:



गांधीजी ने स्पष्ट किया कि संघर्ष आवश्यक है, लेकिन उसे हिंसक नहीं होना चाहिए। सत्याग्रह एक प्रकार का संघर्ष है, लेकिन उसमें विरोधी को नष्ट नहीं किया जाता, बल्कि नैतिक परिवर्तन लाने की कोशिश होती है।





6. फासीवाद की परिभाषा का परीक्षण कीजिए:



फासीवाद एक अधिनायकवादी विचारधारा है, जो राष्ट्रवाद, सैन्यवाद और केंद्रीकृत सत्ता को बढ़ावा देती है। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दमन, असहमति की आवाज़ को कुचलना और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न आम होता है।


गांधीजी फासीवाद के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने इसे “मानवता का शत्रु” कहा। उनके अनुसार, समाज की उन्नति केवल तब होती है जब उसमें अहिंसा, समावेशिता और सहिष्णुता हो। फासीवाद के विरुद्ध उन्होंने नैतिक प्रतिरोध और सत्याग्रह को प्रभावी हथियार माना।





7. सामाजिक परिवर्तन पर गांधी के विचार की खास विशेषताएँ क्या हैं?



गांधीजी सामाजिक परिवर्तन को शांतिपूर्ण, नैतिक और नैसर्गिक प्रक्रिया मानते थे।



मुख्य विशेषताएँ:



  • अहिंसक उपाय: समाज को बदलने के लिए हिंसा की नहीं, आत्मबल की आवश्यकता है।
  • नीचे से ऊपर परिवर्तन: समाज की जड़ – गांव, स्त्री, दलित – से सुधार।
  • संपूर्ण परिवर्तन: केवल राजनीतिक नहीं, नैतिक और आध्यात्मिक सुधार।
  • जनभागीदारी: आम नागरिक की सहभागिता से ही परिवर्तन संभव।



वे मानते थे कि “यदि हम समाज बदलना चाहते हैं, तो पहले खुद को बदलें।”





8. सत्याग्रह, संघर्ष समाधान में एक साधन के रूप में कार्य करता है – विश्लेषण कीजिए:



सत्याग्रह गांधीजी द्वारा प्रतिपादित अहिंसक संघर्ष की पद्धति है, जो न केवल विरोध है, बल्कि संघर्ष समाधान का नैतिक माध्यम भी है।



कैसे समाधान का साधन:



  • संवाद और सहमति पर बल: सत्याग्रही शत्रु को पराजित नहीं करता, बल्कि उसके अंतःकरण को बदलने का प्रयास करता है।
  • विरोध में सम्मान: विरोधी को अपमानित नहीं किया जाता, बल्कि उसकी मानवता को स्वीकार किया जाता है।
  • सत्य की खोज: सत्याग्रह का उद्देश्य केवल जीत नहीं, बल्कि न्याय और सत्य की स्थापना है।



इस प्रकार, सत्याग्रह संघर्ष का विकल्प नहीं, बल्कि एक उच्चतर समाधान प्रक्रिया है जो मानव गरिमा की रक्षा करता है।





9. शांतिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था और मानव अधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए:



गांधीजी के अनुसार, शांति और मानव अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां सामाजिक अन्याय है, वहां शांति नहीं हो सकती।



मुख्य बिंदु:



  • अहिंसा आधारित समाज: जहां हर व्यक्ति को सम्मान, सुरक्षा और अवसर मिले।
  • मानव अधिकारों की रक्षा: जाति, धर्म, लिंग या वर्ग के आधार पर भेदभाव न हो।
  • नैतिक अनुशासन: अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी पालन हो।



गांधीजी ने कहा – “जिस समाज में अंतिम व्यक्ति की गरिमा की रक्षा न हो, वह समाज शांतिपूर्ण नहीं हो सकता।”


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