गांधी का राजनीतिक चिंतन MGP4 Question Answer

 


1. गांधी की पश्चिमी सभ्यता की आलोचना का परीक्षण कीजिए:



महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में पश्चिमी सभ्यता की तीव्र आलोचना की थी। वे इसे “शरीर की, न कि आत्मा की सभ्यता” कहते हैं।



मुख्य आलोचनाएँ:



  • भौतिकतावाद: गांधी के अनुसार पश्चिमी सभ्यता भौतिक सुखों पर आधारित है, जिससे नैतिकता और आत्मिक विकास की उपेक्षा होती है।
  • उद्योगवाद: उन्होंने मशीनों और बड़े उद्योगों को श्रमिकों के शोषण का माध्यम बताया।
  • राजनीतिक सत्ता की होड़: उन्होंने कहा कि पश्चिम में शक्ति का केंद्रीकरण लोकतंत्र को खोखला बनाता है।
  • उपभोगवाद: यह सभ्यता अनियंत्रित उपभोग को बढ़ावा देती है, जो प्रकृति और समाज दोनों को नष्ट करती है।



निष्कर्षतः, गांधी पश्चिमी सभ्यता को विनाशकारी मानते थे और उसकी जगह नैतिक, आत्मिक और विकेन्द्रित भारतीय सभ्यता का समर्थन करते थे।





2. गांधी की नागरिकता की संकल्पना की व्याख्या कीजिए:



गांधी की नागरिकता की अवधारणा केवल कानूनी पहचान तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक नैतिक और जिम्मेदार भूमिका पर आधारित थी।



मुख्य तत्व:



  • कर्तव्य आधारित नागरिकता: गांधी के अनुसार नागरिकों को अधिकारों से अधिक कर्तव्यों की चिंता करनी चाहिए।
  • सक्रिय भागीदारी: एक नागरिक को समाज और राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
  • सत्य और अहिंसा का पालन: गांधीजी मानते थे कि एक सच्चा नागरिक वही है जो सत्य, नैतिकता और अहिंसा का अनुसरण करे।



गांधी की नागरिकता की संकल्पना में ‘स्वयं शासन करने में सक्षम और उत्तरदायी व्यक्ति’ की छवि स्पष्ट होती है।





3. संक्षिप्त लेख:




(क) नकल और जातीय समानता पर गांधी के विचार:



गांधीजी जाति व्यवस्था के घोर आलोचक थे, विशेष रूप से अस्पृश्यता को उन्होंने “पाप” कहा। वे वर्ण व्यवस्था के सिद्धांत को धार्मिक या नैतिक रूप से मान्य नहीं मानते थे।


  • उनका उद्देश्य जातीय समरसता और समानता स्थापित करना था।
  • उन्होंने हरिजन आंदोलन चलाया और मंदिरों के द्वार सबके लिए खुलवाए।
  • वे मानते थे कि हर व्यक्ति में ईश्वर है, और जातिगत भेदभाव ईश्वर का अपमान है।




(ख) गांधी का आदर्श राज्य:



गांधी का आदर्श राज्य एक अनारक्षित, विकेन्द्रीकृत, नैतिक और जनकल्याणकारी शासन है।


  • वहां हिंसा नहीं, बल्कि सत्य और अहिंसा शासन का आधार होंगे।
  • ग्राम स्वराज उसकी इकाई होगी — आत्मनिर्भर गांव, जिसमें शासन स्थानीय जनता द्वारा किया जाएगा।
  • राज्य का कार्य समाज की सेवा तक सीमित होगा, न कि शक्ति प्रदर्शन तक।






4. गांधीवादी राजनीतिक चिंतन में स्वतंत्रता और समानता के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए:



गांधीजी मानते थे कि स्वतंत्रता और समानता अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।


  • स्वतंत्रता का अर्थ केवल शासन की मुक्ति नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन और आत्मबल है।
  • समानता का अर्थ है सभी को अवसर और सम्मान का अधिकार।
  • उन्होंने कहा – “जहां समानता नहीं, वहां स्वतंत्रता भी अधूरी है।”



गांधी का राजनीतिक चिंतन यह दिखाता है कि स्वराज तभी सार्थक है जब समाज में समानता हो, और समानता तभी टिकाऊ है जब वह आत्मनिर्भर और नैतिक हो।





5. किस आधार पर गांधी ने मार्क्सवाद को अस्वीकार किया?



गांधीजी ने मार्क्सवाद की कुछ बातों से सहमति जताई, जैसे – वर्ग संघर्ष की पहचान और आर्थिक असमानता की आलोचना, लेकिन उन्होंने इसके कई मूलभूत सिद्धांतों को अस्वीकार किया:



अस्वीकृति के कारण:



  • वर्ग संघर्ष का समर्थन: गांधी अहिंसा में विश्वास करते थे, जबकि मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष को क्रांति का माध्यम मानता है।
  • भौतिकवादी दृष्टिकोण: गांधी आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता देते थे, जबकि मार्क्सवाद भौतिकता पर आधारित है।
  • तानाशाही की प्रवृत्ति: मार्क्सवादी क्रांति के बाद ‘प्रोलिटेरियट की तानाशाही’ की अवधारणा गांधी को स्वीकार नहीं थी।



इसलिए गांधी ने ‘सर्वहितकारी समाज’ का सुझाव दिया जिसमें शोषण रहित, अहिंसक और नैतिक आधारों पर आर्थिक समानता हो।





6. गांधीवादी शांतिवाद की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?



गांधीवादी शांतिवाद एक सक्रिय और नैतिक दृष्टिकोण है, जो केवल युद्ध विरोध तक सीमित नहीं है।



मुख्य विशेषताएं:



  • अहिंसा: संघर्ष का प्रमुख माध्यम है, केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक हिंसा का भी विरोध।
  • सत्य: सभी कार्यों का आधार सत्य की खोज और आचरण है।
  • क्षमा और करुणा: विरोधी से द्वेष नहीं, उसे सुधारने का प्रयास।
  • सक्रिय प्रतिरोध: अन्याय के विरुद्ध खामोशी नहीं, बल्कि नैतिक साहस से विरोध।



गांधी का शांतिवाद “शक्ति का उच्चतम रूप” है, जो आत्मबल और नैतिक साहस से संचालित होता है।





7. संघर्ष समाधान के लिए सत्याग्रह एक साधन के रूप में गांधी की विचारधारा की व्याख्या कीजिए:



गांधीजी के अनुसार, सत्याग्रह केवल विरोध का माध्यम नहीं, बल्कि संघर्ष समाधान की एक रचनात्मक पद्धति है।



कैसे समाधान का साधन:



  • संवाद का माध्यम: सत्याग्रही खुलकर विरोध करता है, लेकिन बिना घृणा के।
  • सत्य की खोज: यह दोनों पक्षों को आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है।
  • नैतिक जीत: विरोधी के मन में परिवर्तन लाना इसका अंतिम उद्देश्य है।



सत्याग्रह समाज में शांति और न्याय स्थापित करने का ऐसा उपाय है, जो अहिंसा और नैतिकता के मूल्यों पर आधारित है।





9. संक्षिप्त लेख:




(क) गांधी द्वारा गांव और शहर में भेद:



गांधीजी गांव को भारत की आत्मा मानते थे। उन्होंने कहा – “भारत गांवों में बसता है।”


  • गांव: आत्मनिर्भर, नैतिक और प्राकृतिक जीवन का प्रतीक।
  • शहर: भौतिकवादी, अपार सामाजिक असमानता और उपभोगवाद का केंद्र।



गांधी का दृष्टिकोण यह था कि विकास का मॉडल गांव-आधारित हो, न कि शहर केंद्रित।



(ख) सत्याग्रह, परमाणु हथियार के युग में:



गांधीजी का सत्याग्रह आज के परमाणु युग में और भी प्रासंगिक हो गया है, जहां युद्ध विनाश का माध्यम बन चुका है।


  • परमाणु शक्ति मनुष्य को नष्ट कर सकती है, जबकि सत्याग्रह मानवता को बचाता है।
  • सत्याग्रह व्यक्ति की आत्मा और विवेक को जागृत करता है, जो किसी भी हिंसक अस्त्र से श्रेष्ठ है।



इस प्रकार, सत्याग्रह आज की हिंसक राजनीति और सैन्य होड़ का एकमात्र नैतिक विकल्प है।


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