MGPE8 Previous Year Question with Answer (Gandhi Approach to peace and conflict Resolution)

 


1. नोआखली में गांधी का क्या मिशन था?



1946 में जब भारत स्वतंत्रता के अंतिम चरण में था, उस समय बंगाल के नोआखली जिले में भीषण सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच भयंकर हिंसा, हत्या, बलात्कार और लूट की घटनाओं ने गांधी को अंदर तक झकझोर दिया। ऐसे में गांधीजी ने नोआखली जाकर अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया—शांति स्थापना और अहिंसा के जरिए साम्प्रदायिक सद्भाव की पुनःस्थापना।


गांधी का नोआखली मिशन मूलतः एक नैतिक और आध्यात्मिक अभियान था। उनका उद्देश्य केवल शांति स्थापित करना नहीं था, बल्कि लोगों के दिलों से डर, नफरत और हिंसा की भावना को जड़ से समाप्त करना था। उन्होंने हथियारों या पुलिस बल की सहायता से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत उदाहरण, नैतिक साहस और सत्य-अहिंसा के जरिए काम करने का निश्चय किया।


गांधी गांव-गांव पैदल चलकर हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे, स्थानीय लोगों से बातचीत की, महिलाओं को साहस दिलाया और शांति सभाएं आयोजित कीं। वे दिन में एक समय भोजन करते और आध्यात्मिक साधना में लीन रहते। उन्होंने ‘रिलीजन ऑफ सर्विस’ की भावना को अपनाकर सेवा के माध्यम से विश्वास बहाल करने का प्रयास किया।


नोआखली में गांधी का यह प्रयोग महत्त्वपूर्ण इसलिए भी था क्योंकि यह स्वतंत्र भारत की अंतरात्मा के निर्माण का प्रयास था। उन्होंने यह दिखाया कि राष्ट्र निर्माण केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से नहीं होता, बल्कि सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द से होता है।


हालांकि गांधी के प्रयासों से पूरी तरह हिंसा समाप्त नहीं हो सकी, लेकिन यह स्पष्ट था कि उनकी नैतिक शक्ति और जनसमर्थन ने वहां एक नया विश्वास और आशा उत्पन्न की। नोआखली ने गांधी को यह अवसर दिया कि वे अपने सिद्धांतों को चरम पर ले जाकर प्रयोग करें और भारतीय समाज को शांति की नई दिशा दें।


निष्कर्ष: नोआखली में गांधी का मिशन केवल सांप्रदायिक हिंसा को रोकना नहीं था, बल्कि एक ऐसी जीवनशैली और विचारधारा को प्रतिष्ठित करना था जो सत्य, करुणा और सह-अस्तित्व पर आधारित हो।



2. मध्यस्थता के लक्षणों का परीक्षण करें गांधी द्वारा इसके प्रयोग का उदाहरण देते हुए



मध्यस्थता एक ऐसा उपाय है जिसके माध्यम से दो या अधिक पक्षों के बीच उत्पन्न संघर्षों को शांतिपूर्वक सुलझाया जाता है। यह प्रक्रिया गैर-हिंसक होती है और इसमें एक निष्पक्ष व्यक्ति (मध्यस्थ) दोनों पक्षों की बात सुनकर समाधान निकालने का प्रयास करता है। गांधीजी के संघर्ष समाधान दृष्टिकोण में मध्यस्थता का विशेष स्थान था।


मध्यस्थता के प्रमुख लक्षण:


  1. निष्पक्षता – मध्यस्थ दोनों पक्षों के बीच तटस्थ होता है।
  2. सहमति आधारित प्रक्रिया – दोनों पक्ष स्वेच्छा से मध्यस्थता को स्वीकार करते हैं।
  3. रचनात्मक संवाद – बातचीत के माध्यम से समझ और समाधान प्राप्त करना।
  4. विनम्रता और धैर्य – प्रक्रिया में भावनात्मक बुद्धिमत्ता और समय की आवश्यकता होती है।
  5. गोपनीयता – बातचीत की बातें सार्वजनिक न करके आपसी विश्वास बनाए रखना।



गांधीजी का प्रयोग:

चम्पारण सत्याग्रह (1917) गांधी के मध्यस्थता दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण उदाहरण है। नील की खेती करने वाले किसानों को जबरन अंग्रेजी जमींदारों द्वारा शोषण का सामना करना पड़ रहा था। गांधी ने किसानों और जमींदारों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य किया। उन्होंने दोनों पक्षों की बातें सुनीं, और अहिंसक आंदोलन, सत्याग्रह और संवाद के जरिए एक निष्पक्ष समाधान प्रस्तुत किया, जिससे किसानों को राहत मिली।


निष्कर्षतः, गांधी का मध्यस्थता दृष्टिकोण अहिंसा, सत्य और विश्वास पर आधारित था। उनके प्रयोग आज भी संघर्ष समाधान में प्रेरणास्रोत हैं।





3. असम में Insurgency पर एक निबंध लिखिए



असम में उग्रवाद (insurgency) एक जटिल और बहुआयामी समस्या रही है, जिसकी जड़ें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक असंतोष में गहराई से जुड़ी हुई हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में यह समस्या मुख्यतः 1979 के बाद जोर पकड़ी, जब ‘असम आंदोलन’ शुरू हुआ।


उग्रवाद के कारण:


  1. अवैध प्रवासन – बांग्लादेश से भारी संख्या में अवैध प्रवासियों का आगमन स्थानीय असमिया पहचान के लिए खतरा माना गया।
  2. राजनीतिक उपेक्षा – दिल्ली और राज्य सरकारों द्वारा क्षेत्रीय समस्याओं की अनदेखी।
  3. आर्थिक पिछड़ापन – बेरोजगारी, शिक्षा और बुनियादी सेवाओं की कमी।
  4. संस्कृति और पहचान का संकट – स्थानीय लोगों को अपने अस्तित्व की रक्षा की चिंता।



मुख्य उग्रवादी संगठन:

ULFA (United Liberation Front of Assam) सबसे प्रमुख उग्रवादी संगठन रहा है, जिसने स्वतंत्र असम की मांग को लेकर कई हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया।


सरकार की प्रतिक्रिया:

केंद्र और राज्य सरकारों ने समय-समय पर सैन्य अभियान, शांति वार्ता और आत्मसमर्पण योजनाएं चलाईं। असम शांति समझौता (2020) ULFA के कुछ धड़ों के साथ बातचीत का नतीजा रहा।


गांधीवादी दृष्टिकोण से समाधान:

गांधीजी का विश्वास था कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। असम की समस्या का स्थायी समाधान संवाद, अहिंसा, आपसी समझ और समावेशी विकास के माध्यम से ही संभव है।





4. हड़ताल से आप क्या समझते हैं इसके मूल सिद्धांतों की चर्चा करें



हड़ताल (Strike) एक संगठित और अहिंसक कार्यवाही है जिसमें कर्मचारी या नागरिक किसी अन्याय या अधिकारों की अनदेखी के विरोध में कार्य स्थगित कर देते हैं। गांधीजी ने इसे एक नैतिक और आत्मबल-आधारित विधि के रूप में देखा।


हड़ताल के मूल सिद्धांत:


  1. अहिंसा – हड़ताल पूरी तरह शांतिपूर्ण होनी चाहिए।
  2. नैतिक आधार – इसका उद्देश्य अन्याय के विरुद्ध सत्य की स्थापना होना चाहिए।
  3. अनुशासन – हड़ताली कार्यकर्ता अनुशासित, संयमी और स्पष्ट मांगों वाले हों।
  4. प्रेम और सहानुभूति – शत्रुता नहीं, बल्कि प्रतिद्वंद्वी के अंतःकरण को झकझोरने का माध्यम हो।



गांधीजी का प्रयोग:

1920 के असहयोग आंदोलन और 1930 के दांडी यात्रा में उन्होंने असहयोग व हड़ताल का प्रयोग किया। वायसराय से अपील करते हुए जब उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तब गांधीजी ने सत्याग्रह और हड़ताल का सहारा लिया।


निष्कर्ष:

गांधीजी के लिए हड़ताल मात्र विरोध नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और समाज को जागृत करने का साधन था। वर्तमान समय में भी जब हड़ताल अहिंसा और नैतिकता पर आधारित हो, तब वह प्रभावी और न्यायपूर्ण रहती है।





5. संक्षिप्त लेख:



(क) चिपको आंदोलन:

चिपको आंदोलन 1973 में उत्तराखंड के मंडल गांव से शुरू हुआ एक पर्यावरणीय जनआंदोलन था। इसका उद्देश्य वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना था। ग्रामीण महिलाएं पेड़ों से चिपककर उनकी रक्षा करती थीं। यह आंदोलन गांधीवादी मूल्यों—अहिंसा, सत्याग्रह, स्वदेशी और ग्राम स्वराज—पर आधारित था। सुंदरलाल बहुगुणा और गौरा देवी इसके प्रमुख नेता रहे। इसने विश्वभर में पर्यावरण संरक्षण की चेतना को प्रेरित किया।


(ख) नागा द्वंद में शांति मिशन:

1950 और 60 के दशक में नागा आंदोलन को शांतिपूर्ण समाधान की ओर लाने हेतु भारत सरकार ने ‘शांति मिशन’ भेजा, जिसमें जयप्रकाश नारायण, बीजी वर्गीज़ और माओ-निंग शामिल थे। इस मिशन ने बिना सैन्य हस्तक्षेप के संवाद और विश्वास बहाली पर बल दिया। यद्यपि पूर्ण सफलता नहीं मिली, पर इसने गांधीवादी मार्गों—अहिंसा और संवाद—के महत्व को उजागर किया।





6. तिब्बत में सामाजिक-राजनीतिक जीवन के लक्षणों की चर्चा करें



तिब्बत का सामाजिक-राजनीतिक जीवन सदियों तक धार्मिक संस्थानों, विशेषकर बौद्ध लामाओं के नियंत्रण में रहा। दलाई लामा इसके आध्यात्मिक और राजनीतिक प्रमुख थे।


सामाजिक लक्षण:


  • धर्मप्रधान समाज – बौद्ध धर्म की गहरी पैठ।
  • जातिगत श्रेणियां – अभिजात्य लामाओं, किसानों और यायावरों में वर्ग विभाजन।
  • शिक्षा – धार्मिक शिक्षा प्रमुख, लौकिक ज्ञान की उपेक्षा।



राजनीतिक लक्षण:


  • धर्मराज्य – दलाई लामा का अधिनायकात्मक शासन।
  • लोकतंत्र का अभाव – नागरिक स्वतंत्रताओं की सीमित उपस्थिति।
  • चीन का हस्तक्षेप – 1950 के बाद चीनी कम्युनिस्ट शासन ने तिब्बत की स्वायत्तता को समाप्त कर दिया।



निष्कर्षतः, तिब्बत में सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर धार्मिक सत्ता का प्रभाव अधिक रहा। गांधीवादी दृष्टिकोण से, तिब्बत की समस्या अहिंसक प्रतिरोध और अंतर्राष्ट्रीय संवाद के माध्यम से ही सुलझाई जा सकती है।





7. गांधी के सिविलियन डिफेंस की अवधारणा पर एक लेख लिखें



गांधी का सिविलियन डिफेंस (नागरिक रक्षा) शांति और अहिंसा पर आधारित था। उन्होंने यह विचार दिया कि किसी भी विदेशी आक्रमण या आंतरिक उत्पीड़न के विरुद्ध आम जनता अहिंसा और नैतिक बल से आत्मरक्षा कर सकती है।


मुख्य तत्व:


  • नैतिक शक्ति – हिंसा का प्रतिकार नैतिक दृढ़ता से किया जाए।
  • जन भागीदारी – हर नागरिक सत्याग्रह और अहिंसक असहयोग में भाग ले।
  • संघटन और प्रशिक्षण – नागरिकों को आत्मबल, अनुशासन और सेवा के लिए तैयार किया जाए।



दृष्टांत:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांधी ने अंग्रेजों के युद्ध प्रयासों में भाग लेने से इंकार किया और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू किया। यह भी एक प्रकार की नागरिक रक्षा ही थी।


निष्कर्ष:

गांधी का सिविलियन डिफेंस सैन्य उपायों की जगह नैतिक और जनबल की अवधारणा पर आधारित था। यह आज भी शांति रक्षा के लिए प्रासंगिक है।





8. शांति बनाए रखने में सत्य और अहिंसा की भूमिका का वर्णन करें



गांधी के अनुसार, शांति का आधार सत्य और अहिंसा हैं। सत्य आत्मा की खोज है और अहिंसा उस सत्य की अभिव्यक्ति का साधन।


सत्य की भूमिका:


  • सत्य जीवन का मूल है। यह व्यक्ति को नैतिक और जिम्मेदार बनाता है।
  • सत्य ही संवाद और समझौते का आधार बनता है।



अहिंसा की भूमिका:


  • अहिंसा द्वेष, हिंसा और घृणा को रोकती है।
  • यह विरोध का नैतिक और रचनात्मक तरीका प्रस्तुत करती है।



गांधी का प्रयोग:

चम्पारण, खेड़ा और दांडी सत्याग्रह—इन सभी आंदोलनों में गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपने संघर्ष के केंद्रीय तत्व बनाए रखा। परिणामस्वरूप इन आंदोलनों ने बिना रक्तपात के सामूहिक जन चेतना को उत्पन्न किया।


निष्कर्ष:

शांति एक प्रक्रिया है, न कि एक स्थिति। गांधी का दर्शन यह सिखाता है कि सत्य और अहिंसा को आत्मसात करके ही स्थायी शांति संभव है।





9. शांति सेवा पर गांधी के विचारों का आलोचनात्मक आकलन करें



गांधी की शांति सेवा की अवधारणा ‘लोकसेवा ही राष्ट्रसेवा’ के सिद्धांत पर आधारित थी। वे मानते थे कि शांति केवल युद्ध न होने से नहीं आती, बल्कि अन्याय, भेदभाव, शोषण और असमानता की समाप्ति से आती है।


सकारात्मक पक्ष:


  • सेवा के माध्यम से पुनर्निर्माण – ग्रामीण विकास, स्वच्छता, साक्षरता, और आर्थिक स्वावलंबन।
  • समाज में करुणा और सह-अस्तित्व – सेवा के माध्यम से सामाजिक समरसता की स्थापना।
  • युवाओं की भागीदारी – उन्होंने शांति सेना की कल्पना की जो सेवा को अपना धर्म माने।



आलोचना:


  • शांति सेवा को कभी-कभी यथास्थिति बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा गया।
  • शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में इसका प्रभाव सीमित रहा।
  • वैश्विक स्तर पर संगठित संघर्षों के संदर्भ में इसकी सीमा दिखती है।



निष्कर्ष:

गांधी की शांति सेवा आज भी समाज निर्माण का आधार बन सकती है, यदि उसे आधुनिक संदर्भ में पुनः परिभाषित किया जाए।





10. संक्षिप्त लेख:



(क) भूटान में नृजातीय द्वंद:

भूटान में मुख्यतः लोत्सम्पा समुदाय (नेपाली मूल के भूटानी) और शाही नीतियों के बीच तनाव रहा है। 1990 के दशक में भूटान सरकार की ‘एक राष्ट्र, एक संस्कृति’ नीति के खिलाफ लोत्सम्पा समुदाय ने विरोध किया। परिणामस्वरूप हजारों नेपाली मूल के नागरिकों को देश से निष्कासित कर दिया गया। यह नृजातीय द्वंद्व आज भी शरणार्थी संकट के रूप में मौजूद है।


(ख) वार्ता के लाभ:

वार्ता (Dialogue) किसी भी संघर्ष समाधान की पहली और सर्वोत्तम सीढ़ी है। इसके लाभ:


  • अहिंसक समाधान का मार्ग प्रदान करती है।
  • विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा देती है।
  • दीर्घकालीन समाधान की संभावना बढ़ती है।
  • विरोधी पक्षों में समझ और सहयोग को जन्म देती है।


11. समकालीन विश्व में द्वंद्व के तीन प्रमुख कारणों की चर्चा कीजिए



समकालीन विश्व में द्वंद्व अनेक कारणों से उत्पन्न होते हैं, जिनमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तत्व प्रमुख हैं। इन द्वंद्वों के मूल में असमानता, पहचान संकट और संसाधनों पर नियंत्रण जैसी समस्याएँ निहित होती हैं।


1. पहचान आधारित द्वंद्व:

जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के आधार पर उत्पन्न द्वंद्व वर्तमान युग की एक बड़ी समस्या है। जैसे म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों का उत्पीड़न, या भारत में कश्मीर मुद्दा। जब कोई समुदाय अपने अस्तित्व और संस्कृति को खतरे में देखता है, तब वह संघर्ष की ओर अग्रसर होता है।


2. आर्थिक असमानता:

विकास की असमान गति और संसाधनों के असमान वितरण के कारण गरीब और अमीर देशों, तथा समाज के वर्गों के बीच तनाव उत्पन्न होता है। अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में गरीबी, बेरोजगारी और संसाधन दोहन के कारण विद्रोह उत्पन्न हुए हैं।


3. राजनीतिक दमन और लोकतंत्र का अभाव:

जहां राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं होती या अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश होता है, वहां जनता विद्रोह पर उतर आती है। अरब वसंत इसका एक उदाहरण है, जिसमें ट्यूनिशिया, मिस्र और लीबिया जैसे देशों में तानाशाही के विरुद्ध जनांदोलन हुए।


निष्कर्ष:

गांधीवादी दृष्टिकोण के अनुसार, इन द्वंद्वों का समाधान केवल शक्ति से नहीं, बल्कि अहिंसा, संवाद और न्यायपूर्ण समाज निर्माण से संभव है।





12. क्या आपको लगता है कि द्वंद समाधान के लिए उपवास एक प्रभावशाली साधक है



गांधीजी के अनुसार उपवास केवल आत्मसंयम का साधन नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है, जो विरोधी के अंतःकरण को स्पर्श करने की क्षमता रखता है। यह साधन न केवल नैतिक शक्ति को दर्शाता है, बल्कि संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करता है।


प्रभावशीलता के कारण:


  1. नैतिक दबाव: उपवास प्रतिद्वंद्वी को भावनात्मक और नैतिक रूप से सोचने को मजबूर करता है।
  2. जनचेतना का माध्यम: यह आम जनता को संघर्ष के नैतिक पक्ष से जोड़ता है।
  3. आत्मशुद्धि: उपवासकर्ता के भीतर आत्मबल और सत्य की खोज की भावना पैदा होती है।



गांधीजी के प्रयोग:

पुणे समझौते (1932) के समय अंबेडकर और गांधी के बीच मतभेद को सुलझाने हेतु गांधी ने उपवास का सहारा लिया, जिससे सामाजिक समाधान निकला।


सीमाएं:


  • यदि उपवास केवल दबाव की रणनीति बन जाए तो यह नैतिकता खो सकता है।
  • सभी संदर्भों में यह काम नहीं करता, विशेषकर हिंसक या असंवेदनशील शासकों के सामने।



निष्कर्ष:

उपवास एक प्रभावशाली साधन हो सकता है यदि वह आत्मबल, नैतिकता और सार्वजनिक हित से प्रेरित हो।





13. समकालीन विश्व में द्वंद समाधान के लिए संवाद और समझौता वार्ता की प्रासंगिकता को समझाइए



आज के वैश्विक संदर्भ में जब युद्ध और हिंसा के दुष्परिणाम स्पष्ट हैं, संवाद और समझौता वार्ता संघर्ष समाधान के प्रभावी उपकरण बन गए हैं।


प्रासंगिकता:


  1. अहिंसक समाधान: संवाद शांति से समाधान खोजने का माध्यम है, जो गांधीजी की शिक्षाओं से मेल खाता है।
  2. विश्वास निर्माण: निरंतर वार्ता से दोनों पक्षों के बीच पारदर्शिता और समझ का विकास होता है।
  3. लंबी अवधि का समाधान: समझौते स्थायी शांति की ओर ले जाते हैं, जैसे दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद समाप्ति।



उदाहरण:


  • कोलंबिया और FARC विद्रोहियों के बीच वार्ता से शांति समझौता हुआ।
  • भारत और नागा नेताओं के बीच जारी शांति वार्ता ने हिंसा को कम किया है।



निष्कर्ष:

गांधी के संवाद और करुणा के सिद्धांत आज के संघर्ष समाधान प्रयासों में मार्गदर्शक बन सकते हैं। वार्ता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि नैतिक साहस का प्रतीक है।





14. नागा द्वंद्व के समाधान के लिए शांति मिशन की भूमिका की विवेचना कीजिए



नागा आंदोलन 1950 के दशक से भारत के लिए एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती रहा है। इस समस्या का अहिंसक समाधान ढूंढ़ने के प्रयास में ‘शांति मिशन’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


शांति मिशन की स्थापना:

भारत सरकार ने 1964 में जयप्रकाश नारायण, माओ-निंग और बीजी वर्गीज़ को मिलाकर एक शांति मिशन गठित किया।


भूमिका:


  1. संवाद प्रारंभ करना: शांति मिशन ने नागा नेताओं और भारत सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई।
  2. संघर्ष विराम समझौता: 1964 में संघर्ष विराम की घोषणा शांति मिशन के प्रयासों से ही संभव हुई।
  3. विश्वास निर्माण: मिशन ने नागा जनता में विश्वास उत्पन्न किया कि सरकार सैन्य समाधान के बजाय संवाद चाहती है।



सीमाएं:


  • कुछ चरमपंथी गुटों ने हिंसा जारी रखी।
  • मिशन की सिफारिशों को पर्याप्त राजनीतिक समर्थन नहीं मिला।



निष्कर्ष:

शांति मिशन गांधीवादी दृष्टिकोण की एक प्रयोगात्मक सफलता थी, जिसने अहिंसक समाधान की संभावनाओं को दर्शाया।





15. क्या आपको लगता है कि गांधी का अहिंसा आत्मक तरीका फिलिस्तीन संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान निकाल सकता है?



फिलिस्तीन संघर्ष, जिसमें इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच दशकों से हिंसा जारी है, एक अत्यंत जटिल और भावनात्मक द्वंद्व है। गांधी का अहिंसात्मक मार्ग इस संघर्ष में मार्गदर्शक बन सकता है, किंतु इसके लिए दोनों पक्षों की तैयारी आवश्यक है।


अहिंसा के संभावित लाभ:


  1. मानवाधिकारों का सम्मान: गांधी का मार्ग हिंसा के शिकार लोगों को आत्म-सम्मान और न्याय की भावना देता है।
  2. वैश्विक समर्थन: अहिंसक प्रतिरोध को विश्व समुदाय अधिक नैतिक समर्थन देता है।
  3. स्थायी समाधान की संभावना: सैन्य विजय के बजाय आपसी समझ से टिकाऊ समाधान संभव है।



चुनौतियां:


  • दोनों पक्षों में चरमपंथ और अविश्वास गहरा है।
  • राजनीतिक नेतृत्वों की इच्छा शक्ति का अभाव।



निष्कर्ष:

यदि दोनों पक्ष अहिंसा और संवाद को प्राथमिकता दें, तो गांधी का तरीका फिलिस्तीन संघर्ष में शांति का आधार बन सकता है। लेकिन इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और दृढ़ इच्छाशक्ति आवश्यक है।





16. मुख्य विशेषताओं का विश्लेषण कीजिए:



(क) शांति के लिए नारीवादी दृष्टिकोण:

नारीवादी दृष्टिकोण के अनुसार युद्ध और हिंसा पितृसत्तात्मक सोच की उपज हैं। महिलाएं सहानुभूति, संवाद और देखभाल की भावना को बढ़ावा देती हैं। इसलिए नारीवादी दृष्टिकोण शांति प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी, लैंगिक समानता, और सामाजिक न्याय पर बल देता है।


(ख) शांति के लिए पर्यावरणीय दृष्टिकोण:

यह दृष्टिकोण मानता है कि प्राकृतिक संसाधनों की लूट और पर्यावरण विनाश संघर्ष को जन्म देता है। जैसे जल, भूमि और वनों के लिए संघर्ष। पर्यावरणीय न्याय, सतत विकास और पारिस्थितिकीय संतुलन को शांति का आधार माना जाता है।





17. “अहिंसा और क्षमा सामुदायिक शांति के लिए आवश्यक है” – इस कथन की महत्ता समझाइए



यह कथन गांधी के सिद्धांतों की आत्मा को दर्शाता है। उनके अनुसार, समाज में द्वेष, हिंसा और असहिष्णुता को समाप्त करने के लिए अहिंसा और क्षमा अनिवार्य हैं।


अहिंसा की भूमिका:


  • यह दूसरों को शत्रु नहीं, मानव समझती है।
  • संवाद और सहयोग को जन्म देती है।



क्षमा की भूमिका:


  • अतीत के घावों को भूलकर भविष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा।
  • समाज में सह-अस्तित्व की भावना का विकास।



गांधीजी का दृष्टांत:

हिंदू-मुस्लिम दंगे (नोआखली) में उन्होंने क्षमा और अहिंसा के माध्यम से शांति स्थापित करने का प्रयास किया।


निष्कर्ष:

सामुदायिक शांति के लिए मात्र कानून नहीं, बल्कि मानव मूल्यों—अहिंसा और क्षमा—की आवश्यकता है।





18. संक्षिप्त टिप्पणियां:



(क) सेवा (SEWA):

सेवा एक महिला सशक्तिकरण संगठन है, जिसकी स्थापना 1972 में ऐला भट्ट ने की। इसका उद्देश्य गरीब, असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता प्रदान करना है।


(ख) अहिंसा:

अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा का विरोध नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म में भी हिंसा के परित्याग का नाम है। यह गांधी का केंद्रीय सिद्धांत था।


(ग) सत्याग्रह:

सत्याग्रह का अर्थ है – सत्य के लिए आग्रह। यह एक नैतिक संघर्ष है जो सत्य, अहिंसा और आत्मबल पर आधारित होता है।


(घ) असहयोग:

यह गांधीजी की रणनीति थी जिसमें अन्यायपूर्ण शासन से सहयोग बंद करके नैतिक दबाव डाला जाता है। यह स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख हथियार बना।





19. समरस समाज के निर्माण में सहिष्णुता की भूमिका का उल्लेख कीजिए



सहिष्णुता का अर्थ है – मतभेदों को स्वीकार करना और दूसरे की आस्था, संस्कृति और विचारों का सम्मान करना। समरस समाज के निर्माण के लिए सहिष्णुता आधारशिला है।


भूमिका:


  1. सांस्कृतिक विविधता को संरक्षण: सहिष्णुता विभिन्न समुदायों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देती है।
  2. हिंसा की रोकथाम: सहिष्णुता द्वेष और पूर्वाग्रह को दूर करती है।
  3. लोकतंत्र की मजबूती: विचारों की स्वतंत्रता और बहुलवाद को बढ़ावा मिलता है।



गांधीजी का योगदान:

उन्होंने हरिजनों, मुसलमानों और महिलाओं के साथ सहिष्णु व्यवहार अपनाकर समरसता की मिसाल पेश की।


निष्कर्ष:

समरस समाज सहिष्णुता से ही संभव है जहां विविधता में एकता को सम्मान मिलता है।





20. शासन से क्या अभिप्राय है? यह किस प्रकार संघर्ष का स्रोत बन जाता है



शासन का तात्पर्य है – किसी समाज या राष्ट्र में सत्ता का प्रयोग, नीतियों का निर्माण और क्रियान्वयन। यह एक संगठनात्मक व्यवस्था है जो कानून, सुरक्षा और न्याय को लागू करती है।


संघर्ष का स्रोत:


  1. दमनात्मक शासन: जब शासन जनता की आकांक्षाओं को कुचलता है, तब विद्रोह होता है।
  2. भ्रष्टाचार और भेदभाव: संसाधनों का अनुचित वितरण सामाजिक असंतोष पैदा करता है।
  3. जन सहभागिता की कमी: यदि शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व न हो, तो जनता असंतुष्ट हो जाती है।



उदाहरण:


  • अरब वसंत में जन विद्रोह तानाशाही शासन के खिलाफ हुआ।
  • भारत में आपातकाल के दौरान शासन के दमनकारी स्वरूप ने संघर्ष को जन्म दिया।



निष्कर्ष:

शासन जब जनहित, न्याय और सहभागिता पर आधारित हो, तब शांति स्थायी होती है। अन्यथा, वह संघर्ष का स्रोत बन सकता है।


21. संघर्ष समाधान के कुछ गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण की संक्षिप्त में चर्चा कीजिए



गैर-पश्चिमी संघर्ष समाधान दृष्टिकोण उन सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं से उत्पन्न होते हैं, जो स्थानीय नैतिकता, आध्यात्मिकता और सामुदायिक जीवन पर आधारित होते हैं। पश्चिमी मॉडल जहां कानूनी और संस्थागत समाधान पर बल देते हैं, वहीं गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण संबंधों की पुनर्स्थापना और समुदाय-आधारित उपायों पर केंद्रित होते हैं।


प्रमुख गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण:


  1. गांधीवादी दृष्टिकोण:
    गांधी अहिंसा, सत्य, आत्मबल और संवाद पर आधारित समाधान में विश्वास करते थे। सत्याग्रह के माध्यम से उन्होंने दमनकारी सत्ता को नैतिक दबाव में लाने का कार्य किया।
  2. अफ्रीकी “Ubuntu” दर्शन:
    इसमें “मैं हूं क्योंकि हम हैं” की भावना है। यह समुदाय आधारित क्षमा, पुनर्संवाद और पुनर्स्थापन (Restorative Justice) पर केंद्रित है।
  3. बौद्ध दृष्टिकोण:
    बौद्ध चिंतन में करुणा, मध्य मार्ग और मानसिक शुद्धता के माध्यम से संघर्ष से मुक्ति की बात की जाती है।
  4. भारतीय पंचायत प्रणाली:
    भारतीय ग्राम समाज में पंचायतों ने लंबे समय से आपसी विवादों को सामूहिक रूप से हल करने की परंपरा निभाई है।



निष्कर्ष:

गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण संबंधों की मरम्मत और नैतिक चेतना के माध्यम से स्थायी शांति की संभावना प्रदान करते हैं।





22. संघर्ष समाधान की गांधीवादी दृष्टिकोण पर एक लेख लिखिए



गांधीवादी दृष्टिकोण संघर्ष समाधान को केवल राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक साधना मानता है। गांधीजी का मानना था कि प्रत्येक संघर्ष को अहिंसा, सत्य, करुणा और आत्मबल से सुलझाया जा सकता है।


मुख्य सिद्धांत:


  1. अहिंसा (Non-violence):
    गांधी के अनुसार हिंसा से संघर्ष और बढ़ता है; समाधान केवल प्रेम और सहिष्णुता से संभव है।
  2. सत्याग्रह:
    यह संघर्ष का नैतिक रूप है जो अन्याय के विरुद्ध आत्मबल से लड़ा जाता है।
  3. संवाद और सहमति:
    गांधी समझते थे कि विवाद का समाधान तभी होता है जब दोनों पक्ष संवाद के लिए तैयार हों।
  4. आत्मशुद्धि:
    संघर्ष समाधान के लिए पहले स्वयं की अंतरात्मा को निर्मल करना आवश्यक है।



उदाहरण:


  • नोआखली में सांप्रदायिक दंगों के समय गांधी ने हिंसा के विरुद्ध अकेले खड़े होकर शांति स्थापित की।
  • चंपारण सत्याग्रह ने किसानों के अधिकारों को अहिंसक ढंग से सुनिश्चित किया।



निष्कर्ष:

गांधीवादी दृष्टिकोण आज के विश्व में संघर्षों को मानवता और नैतिकता के माध्यम से सुलझाने की शक्ति प्रदान करता है।





23. सेवा (SEWA) ने किस प्रकार महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने का प्रबंध किया? (सेवा - महिला स्वरोजगार संघ)



SEWA (Self Employed Women’s Association) की स्थापना 1972 में ऐला भट्ट द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और कानूनी सशक्तिकरण प्रदान करना है।


महिला उत्पीड़न की रोकथाम में भूमिका:


  1. आर्थिक सशक्तिकरण:
    SEWA ने महिलाओं को प्रशिक्षण, ऋण सुविधा, बाज़ार तक पहुंच और उद्यमिता के अवसर प्रदान किए। इससे महिलाएं आत्मनिर्भर बनीं।
  2. कानूनी सहायता:
    SEWA ने महिलाओं को श्रम कानून, संपत्ति अधिकार और घरेलू हिंसा से संबंधित जानकारी दी और कानूनी मदद उपलब्ध कराई।
  3. स्वास्थ्य और शिक्षा:
    स्वास्थ्य सेवाओं और साक्षरता कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ।
  4. संगठनात्मक ताकत:
    महिलाओं को एकजुट कर संगठन शक्ति दी गई, जिससे वे उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठा सकें।



निष्कर्ष:

SEWA ने गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित महिला मुक्ति की मिसाल प्रस्तुत की और हजारों महिलाओं को गरिमापूर्ण जीवन दिलाया।





24. प्रथम इंतिफादा के अहिंसक संघटक क्या थे? क्या यह सफल रहा?



प्रथम इंतिफादा (1987-1993) फिलिस्तीनी जनता द्वारा इज़रायली कब्जे के विरुद्ध एक व्यापक आंदोलन था। यद्यपि इसे अक्सर हिंसक संघर्ष के रूप में देखा जाता है, इसमें कई अहिंसक संघटक भी शामिल थे।


अहिंसक संघटक:


  1. बहिष्कार अभियान:
    इज़रायली वस्तुओं और सेवाओं का बहिष्कार किया गया।
  2. सिविल अवज्ञा:
    टैक्स भुगतान से इनकार, स्कूलों का बहिष्कार और शांतिपूर्ण जुलूस।
  3. हड़ताल और बंद:
    फिलिस्तीनियों ने संगठित रूप से आर्थिक गतिविधियों को रोक दिया।
  4. स्थानीय समितियों की स्थापना:
    इन समितियों ने वैकल्पिक शासन संरचना तैयार की, जिससे इज़रायल के नियंत्रण से स्वतंत्रता बनी रही।



सफलता का मूल्यांकन:


  • इस आंदोलन ने विश्व समुदाय का ध्यान फिलिस्तीन समस्या की ओर खींचा।
  • अंततः ओस्लो समझौते (1993) का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसमें फिलिस्तीनी प्राधिकरण की स्थापना हुई।



निष्कर्ष:

यद्यपि पूरी तरह अहिंसक न था, फिर भी प्रथम इंतिफादा में गांधीवादी तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद थे और इसने संघर्ष समाधान की दिशा में मील का पत्थर रखा।





25. उपवास/भूख हड़ताल पर गांधी के विचारों का परीक्षण कीजिए। वर्तमान समय में इसकी क्या प्रासंगिकता है



गांधी के लिए उपवास आत्मशुद्धि और नैतिक दबाव का साधन था। वह इसे संघर्ष का अंतिम उपाय मानते थे, जब सभी संवाद के मार्ग विफल हो जाते थे।


गांधी के विचार:


  1. आत्मबल का प्रतीक:
    उपवास आंतरिक शुद्धि और अहिंसक संकल्प को दर्शाता है।
  2. सार्वजनिक चेतना का जागरण:
    यह समाज और विरोधियों को अंतरात्मा से सोचने को प्रेरित करता है।
  3. राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का साधन:
    गांधी ने अछूतों के अधिकार, सांप्रदायिक एकता और स्वतंत्रता संग्राम में उपवास का प्रयोग किया।



वर्तमान में प्रासंगिकता:


  • अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ उपवास का उपयोग कर व्यापक जनसमर्थन जुटाया।
  • उपवास आज भी नैतिक प्रतिरोध और लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग के लिए एक प्रभावी तरीका है।



सीमाएं:


  • यदि इसका दुरुपयोग हो तो नैतिकता कमजोर पड़ सकती है।
  • अनैतिक मांगों के लिए उपवास को हथियार बनाया जाए तो यह अनुचित होगा।



निष्कर्ष:

गांधी का उपवास आज भी नैतिक और लोकतांत्रिक संघर्षों में एक प्रभावी हथियार बना हुआ है, यदि इसका उपयोग संयम और उद्देश्य की पवित्रता के साथ किया जाए।





26. म्यांमार में लोकतांत्रिक आंदोलन पर गांधी की प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए



म्यांमार में दशकों से सैन्य शासन और लोकतंत्र समर्थकों के बीच संघर्ष जारी है। 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद लोकतंत्र की मांग फिर से तेज हुई है।


गांधीवादी सिद्धांतों की प्रासंगिकता:


  1. अहिंसक प्रतिरोध:
    म्यांमार की जनता, विशेषकर युवाओं ने शांतिपूर्ण विरोध, सिट-इन, और नागरिक अवज्ञा अपनाई – यह गांधीवादी शैली की झलक है।
  2. नैतिक नेतृत्व की आवश्यकता:
    गांधी जैसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो संघर्ष को नैतिक दिशा दे सके।
  3. जन जागरूकता:
    गांधीजी की तरह व्यापक जनचेतना जागृत कर लोकतांत्रिक परिवर्तन संभव है।



चुनौतियां:


  • म्यांमार की सेना अत्यंत हिंसक और असंवेदनशील है, जिससे अहिंसा को अपनाना कठिन है।
  • राजनीतिक दलों में एकता और नैतिकता की कमी।



निष्कर्ष:

हालांकि परिस्थिति कठिन है, परंतु यदि गांधीवादी अहिंसा, आत्मबल और व्यापक जनांदोलन को अपनाया जाए, तो म्यांमार में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना संभव है।





27. श्रीलंका नृजातीय संघर्ष में भारत की भूमिका का उल्लेख कीजिए



श्रीलंका में तमिल और सिंहली समुदायों के बीच का संघर्ष 1980 के दशक में तीव्र हो गया था। भारत ने इसमें कई स्तरों पर हस्तक्षेप किया।


भारत की भूमिका:


  1. राजनयिक प्रयास:
    भारत ने शांतिपूर्ण समाधान के लिए श्रीलंका सरकार और तमिल प्रतिनिधियों के बीच संवाद की पहल की।
  2. भारत-श्रीलंका समझौता (1987):
    इस समझौते के तहत तमिलों को स्वायत्तता देने की बात कही गई और भारत ने IPKF (Indian Peace Keeping Force) भेजी।
  3. IPKF की भूमिका:
    शांति स्थापना के उद्देश्य से भेजी गई IPKF को बाद में एलटीटीई से संघर्ष करना पड़ा, जिससे विरोध पैदा हुआ।
  4. राजीव गांधी की हत्या:
    LTTE द्वारा भारत की भूमिका से असंतोष ने 1991 में उनकी हत्या के रूप में भयावह परिणाम दिए।



निष्कर्ष:

भारत की भूमिका मिश्रित रही – एक ओर शांति प्रयास, दूसरी ओर सैन्य हस्तक्षेप की आलोचना। गांधीवादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो संवाद और मध्यस्थता अधिक प्रभावी हो सकते थे।





28. संक्षिप्त टिप्पणियां:



(क) मध्यस्थ:

मध्यस्थ वह व्यक्ति होता है जो दो पक्षों के बीच विवाद को शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए संवाद का पुल बनता है। गांधीजी स्वयं कई बार मध्यस्थ बने – जैसे नोआखली और हिंदू-मुस्लिम विवादों में।


(ख) समझौता:

यह द्वंद्व समाधान की प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है, जिसमें दोनों पक्ष कुछ रियायतें देकर परस्पर सहमति से समाधान पर पहुंचते हैं। गांधी के अनुसार, “सच्चा समझौता वह होता है जिसमें कोई हारता नहीं।”





29. मध्यस्थता और अधिनिर्णयन के पश्चिमी दृष्टिकोण का वर्णन कीजिए



पश्चिमी दृष्टिकोण में संघर्ष समाधान को कानूनी, संस्थागत और औपचारिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।


मध्यस्थता (Mediation):


  • इसमें एक निष्पक्ष तीसरा पक्ष दोनों पक्षों के बीच संवाद को सुविधाजनक बनाता है।
  • निर्णय पक्षों पर बाध्यकारी नहीं होता।
  • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता प्रयास।



अधिनिर्णयन (Arbitration):


  • इसमें विवाद का निर्णय एक तटस्थ पंच या संस्था द्वारा लिया जाता है।
  • निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है।
  • यह आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार विवादों में उपयोग होता है।



विशेषताएँ:


  • औपचारिक प्रक्रिया।
  • कानूनी प्रतिनिधित्व।
  • निष्पक्षता और तटस्थता पर जोर।



निष्कर्ष:

जहां पश्चिमी दृष्टिकोण संरचित और प्रभावी होता है, वहीं यह व्यक्तिगत भावनाओं और सांस्कृतिक संवेदनाओं से दूर हो सकता है, जो गांधीवादी दृष्टिकोण में शामिल होती हैं।





30. कौन से मौलिक सिद्धांत समाधान के गांधीवादी दृष्टिकोण को परिभाषित और उसकी व्याख्या करते हैं? समझाइए



गांधीवादी संघर्ष समाधान चार प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है:


  1. सत्य (Truth):
    गांधी के अनुसार सत्य ईश्वर है। संघर्ष समाधान की प्रक्रिया सत्य की खोज होनी चाहिए, न कि जीत-हार का खेल।
  2. अहिंसा (Non-violence):
    यह केवल हिंसा से दूर रहना नहीं, बल्कि प्रेम, सहिष्णुता और करुणा के साथ विरोध करना है।
  3. सत्याग्रह:
    यह सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आधारित संघर्ष है, जिसमें आत्मबल, उपवास, सविनय अवज्ञा जैसे साधनों का प्रयोग होता है।
  4. समझौता और संवाद:
    गांधी मानते थे कि द्वंद्व का स्थायी समाधान केवल संवाद और पारस्परिक सम्मान से संभव है।



निष्कर्ष:

गांधीवादी दृष्टिकोण केवल तकनीकी नहीं, बल्कि नैतिक, आत्मिक और मानवीय मूल्य आधारित प्रक्रिया है जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।



31. शांति के अध्ययन के लिए किन्ही तीन दृष्टिकोणों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए



1. यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realist Approach):

यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति, राष्ट्रीय हितों और सैन्य क्षमताओं पर आधारित होता है। यथार्थवादी मानते हैं कि संघर्ष अनिवार्य है, और शांति केवल शक्ति-संतुलन से संभव है।


आलोचना:


  • यह दृष्टिकोण शांति को अस्थायी मानता है।
  • नैतिकता, मानवाधिकार और जनभावनाओं को महत्व नहीं देता।



2. उदारवादी दृष्टिकोण (Liberal Approach):

इसमें लोकतंत्र, आर्थिक परस्पर निर्भरता और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को शांति बनाए रखने का माध्यम माना गया है।


आलोचना:


  • यह दृष्टिकोण अमीर देशों के हितों की रक्षा करता है।
  • युद्ध की जड़ें सामाजिक विषमता और सांस्कृतिक तनाव में नजरअंदाज की जाती हैं।



3. गांधीवादी दृष्टिकोण:

यह अहिंसा, सत्य, संवाद और आत्मबल पर आधारित है। संघर्ष समाधान नैतिक और मानवीय प्रक्रिया मानी जाती है।


आलोचना:


  • व्यावहारिक राजनीति में इसे आदर्शवादी समझा जाता है।
  • अत्याचारी शासन या उग्रवाद के सामने इसकी प्रभावशीलता पर प्रश्न उठते हैं।



निष्कर्ष:

यद्यपि सभी दृष्टिकोणों में उपयोगिता है, परंतु शांति का स्थायी मार्ग गांधीवादी दृष्टिकोण द्वारा ही सुसंगत रूप में प्रस्तुत किया गया है।





32. गांधी की शांति सेवा के सिद्धांत पर एक आलोचनात्मक लेख लिखिए



गांधीजी की शांति सेवा का सिद्धांत आत्मबल, सेवा और सामुदायिक सहयोग पर आधारित था। वे मानते थे कि प्रत्येक व्यक्ति शांति के निर्माण में भूमिका निभा सकता है।


मुख्य सिद्धांत:


  • अहिंसा: संघर्ष की स्थिति में भी हिंसा का सहारा न लेना।
  • सेवा भावना: पीड़ितों और समाज के अंतिम व्यक्ति की सेवा करना ही शांति स्थापना का आधार है।
  • सच्चाई: सत्य को केंद्र में रखकर संवाद और समर्पण।



उदाहरण:


  • नोआखली में गांधीजी ने अकेले जाकर दंगों को शांत करने का प्रयास किया।
  • हरिजन सेवा के माध्यम से उन्होंने सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया।



आलोचना:


  • व्यावहारिक राजनीति में यह सिद्धांत कभी-कभी कमजोर प्रतीत होता है।
  • आधुनिक युद्धों और आतंकवाद के युग में इसकी सीमाएं स्पष्ट होती हैं।



निष्कर्ष:

गांधी की शांति सेवा का सिद्धांत मानवीय गरिमा, अहिंसा और नैतिकता पर आधारित है। यह आदर्शवादी होने के बावजूद आज की दुनिया को नैतिक दिशा प्रदान करता है।





33. निर्भयता और साहस पर गांधी के विचारों का विश्लेषण कीजिए



गांधीजी के अनुसार अहिंसा का पालन निर्भयता और साहस के बिना असंभव है। वे मानते थे कि कायर व्यक्ति कभी भी अहिंसा का मार्ग नहीं चुन सकता।


निर्भयता के मूल तत्व:


  • सत्य पर विश्वास।
  • आत्मा की शक्ति में आस्था।
  • अन्याय के विरुद्ध डटकर खड़ा होना।



साहस का अर्थ:


  • गांधी के अनुसार साहस का अर्थ केवल शारीरिक नहीं, बल्कि नैतिक और आत्मिक साहस होता है।
  • असहयोग, सत्याग्रह और उपवास के माध्यम से उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया।



उदाहरण:


  • चंपारण में किसानों के पक्ष में अकेले खड़ा होना।
  • जेल जाने से डरना नहीं, बल्कि उसे सम्मान मानना।



निष्कर्ष:

गांधीजी का निर्भयता और साहस का दृष्टिकोण शांति और संघर्ष समाधान की मूलभूत शर्त है। यह केवल व्यक्तित्व निर्माण नहीं, समाज के नैतिक उत्थान की दिशा है।





34. सुलह की परिभाषा दीजिए और इसकी सफलता में इसकी विशेषताओं के योगदान की व्याख्या कीजिए



सुलह (Reconciliation) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो या अधिक विरोधी पक्ष अपने मतभेद सुलझाकर शांति और सहयोग की ओर बढ़ते हैं।


मुख्य विशेषताएँ:


  1. सत्य की स्वीकृति:
    दोनों पक्ष अतीत की गलतियों को स्वीकार करते हैं।
  2. क्षमा और पुनर्निर्माण:
    पीड़ित और अपराधी दोनों क्षमा भाव रखते हैं और भविष्य के लिए पुनर्निर्माण करते हैं।
  3. संवाद और विश्वास निर्माण:
    खुले संवाद से विश्वास की नींव रखी जाती है।
  4. साझा भविष्य की योजना:
    सुलह तभी संभव है जब दोनों पक्ष मिलकर भविष्य की दिशा तय करें।



सफलता का आधार:


  • सुलह तब सफल होती है जब दोनों पक्ष समान रूप से संवाद और समझ के लिए तैयार हों।
  • इसमें नेतृत्व, समाज की भागीदारी और समय की आवश्यकता होती है।



निष्कर्ष:

सुलह संघर्ष समाधान की सर्वोत्तम प्रक्रिया है जो शांति की स्थायित्व की गारंटी देती है।





35. दो मामलों का उदाहरण लेकर जो हड़ताल को द्वंद्व समाधान की एक विधि के रूप में दर्शाता है वर्णन कीजिए



1. अहमदाबाद मिल मजदूर हड़ताल (1918):

गांधीजी ने मजदूरों और मालिकों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई। मजदूरों ने अपने अधिकारों की मांग के लिए अहिंसक हड़ताल की। गांधीजी के सत्याग्रह और उपवास से मालिकों ने वेतन वृद्धि स्वीकार की।


2. सॉल्ट सत्याग्रह (1930):

ब्रिटिश सरकार के नमक कानून के खिलाफ गांधीजी ने डांडी मार्च का नेतृत्व किया। यह एक प्रतीकात्मक और अहिंसक हड़ताल थी जिसने ब्रिटिश शासन को नैतिक रूप से कठघरे में खड़ा कर दिया।


विश्लेषण:


  • हड़ताल ने दोनों मामलों में शांतिपूर्ण दबाव बनाया।
  • जनता की भागीदारी और नैतिकता इसके प्रभाव को बढ़ाती है।



निष्कर्ष:

गांधीवादी ढंग की हड़ताल संघर्ष समाधान का प्रभावी और नैतिक तरीका बन सकती है।





36. गांधी की भूमिका एक शांति के राजदूत की तरह पर निबंध लिखिए



गांधीजी केवल भारत के नहीं, बल्कि विश्व के शांति के सबसे बड़े राजदूतों में से एक थे। उनका जीवन, विचार और कार्यप्रणाली पूरी तरह अहिंसा और सत्य पर आधारित थी।


प्रमुख भूमिकाएँ:


  1. दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष समाधान:
    गांधी ने रंगभेद के विरुद्ध सत्याग्रह द्वारा संघर्ष का शांतिपूर्ण हल प्रस्तुत किया।
  2. भारत में स्वतंत्रता संग्राम:
    उन्होंने हिंसक आंदोलन की बजाय शांतिपूर्ण असहयोग, सविनय अवज्ञा और उपवास के माध्यम से स्वतंत्रता पाई।
  3. नोआखली दौरा:
    सांप्रदायिक दंगों के बीच अकेले जाकर शांति स्थापना का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  4. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:
    मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और डेसमंड टूटू जैसे नेताओं ने गांधी के विचारों से प्रेरणा ली।



निष्कर्ष:

गांधी एक ऐसे शांति राजदूत थे जिन्होंने बिना किसी पद या शक्ति के संपूर्ण विश्व को शांति, करुणा और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया।





37. असहिष्णुता से लड़ने के लिए गांधी द्वारा बताए गए विभिन्न समाधानों का विश्लेषण कीजिए



1. सत्य और संवाद:

गांधी मानते थे कि असहिष्णुता का समाधान संवाद और सत्य की खोज में है।


2. आत्मानुशासन:

व्यक्ति को पहले अपने अंदर के पूर्वाग्रहों को त्यागना चाहिए।


3. उपवास और आत्मबल:

गांधी ने उपवास को आत्मशुद्धि और सामाजिक चेतना का साधन बताया।


4. शिक्षा और करुणा:

उन्होंने नैतिक शिक्षा और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।


उदाहरण:


  • नोआखली में साम्प्रदायिक तनाव को अहिंसा और आत्मबल से नियंत्रित किया।
  • हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए उपवास रखे।



निष्कर्ष:

गांधी का समाधान केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आत्मिक और नैतिक पुनरुत्थान से जुड़ा था जो आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।





39. संक्षिप्त टिप्पणियां:



(क) संवाद के लाभ:

संवाद से दोनों पक्षों के दृष्टिकोण समझे जा सकते हैं। यह विश्वास निर्माण, द्वेष घटाने और स्थायी समाधान की नींव रखता है। गांधी ने हर संघर्ष में संवाद को प्राथमिकता दी।


(ख) गांधी और फिलिस्तीन मुद्दा:

गांधी फिलिस्तीन मुद्दे पर न्यायपूर्ण हल के पक्षधर थे। वे यहूदियों के प्रति सहानुभूति रखते थे, परंतु उन्हें फिलिस्तीन में राष्ट्र के रूप में स्थापित करना गलत मानते थे। उन्होंने दोनों पक्षों को अहिंसा और सह-अस्तित्व की सलाह दी।





40. रोलेट सत्याग्रह पर एक आलेख लिखिए



1919 में ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट पारित किया, जिससे बिना मुकदमा चलाए किसी को भी गिरफ़्तार किया जा सकता था। यह कानून भारतीयों की स्वतंत्रता पर गंभीर आघात था।


गांधी की प्रतिक्रिया:


  • उन्होंने इसे “काला कानून” कहा।
  • पहली बार राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की।
  • 6 अप्रैल 1919 को देशभर में हड़ताल, उपवास और प्रार्थना की गई।



परिणाम:


  • जनता में जागरूकता फैली।
  • जलियांवाला बाग हत्याकांड ने आंदोलन को और उग्र बना दिया।
  • गांधीजी को पहली बार लगा कि जनता अब आंदोलन के लिए तैयार है।



निष्कर्ष:

रोलेट सत्याग्रह गांधी के नेतृत्व में अहिंसक जनआंदोलन की पहली बड़ी सफलता थी जिसने अंग्रेजों को भारतीय जनभावना का अनुमान कराया।


**41. “कलह व्यक्ति का अंतर्निहित गुण नहीं है, इसकी अभिव्यक्ति बाहरी कारणों से निर्धारित होती है” — व्याख्या कीजिए।



इस कथन का आशय यह है कि मनुष्य स्वभावतः संघर्षशील नहीं होता, बल्कि उसका व्यवहार और कलह की प्रवृत्ति बाहरी परिस्थितियों के प्रभाव में आकार लेती है। गांधीजी का मानना था कि मनुष्य की आत्मा मूलतः शुद्ध, सत्यनिष्ठ और शांतिप्रिय होती है।


बाहरी कारणों की भूमिका:


  1. सामाजिक विषमता:
    जाति, वर्ग, भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव कलह को जन्म देता है।
  2. राजनीतिक उद्देश्यता:
    राजनीतिक हितों के लिए जनता को उकसाना कलह का एक बड़ा स्रोत होता है।
  3. शैक्षिक और सांस्कृतिक कारण:
    अज्ञान, रूढ़ियाँ और पूर्वग्रह भी लोगों को संघर्ष की ओर धकेलते हैं।
  4. आर्थिक असमानता:
    गरीबी, बेरोजगारी और संसाधनों पर असमान नियंत्रण संघर्ष को उत्पन्न करते हैं।



गांधी का दृष्टिकोण:

गांधीजी मानते थे कि यदि व्यक्ति को सही शिक्षा, नैतिक मूल्यों और अहिंसक वातावरण में पाला जाए तो वह कलह नहीं करेगा। उन्होंने कहा था – “मनुष्य को प्रेम और अहिंसा सिखाया जाए, तो वह कभी हिंसा नहीं करेगा।”


निष्कर्ष:

कलह व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्ति नहीं, बल्कि परिस्थिति-जन्य अभिव्यक्ति है। यदि समाज में समरसता, संवाद और सहिष्णुता हो, तो कलह की संभावना स्वतः समाप्त हो जाती है।





**42. क्षमा याचना के संदर्भ में गांधी के विचारों की व्याख्या कीजिए।



गांधीजी के विचारों में क्षमा केवल व्यक्तिगत सद्गुण नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और संघर्ष समाधान का सशक्त माध्यम है। वे मानते थे कि क्षमा में असीम शक्ति है और यह एक वीर का ही लक्षण होता है।


गांधी के अनुसार क्षमा याचना के तत्व:


  1. अहंकार का त्याग:
    क्षमा याचना व्यक्ति को अपने अहंकार से ऊपर उठाती है।
  2. सत्य की स्वीकृति:
    जब व्यक्ति अपने दोषों को स्वीकार करता है, तो सत्य और सुधार की प्रक्रिया आरंभ होती है।
  3. समाज में विश्वास बहाली:
    क्षमा याचना से आपसी रिश्तों में टूटन को जोड़ा जा सकता है।
  4. शांति और संवाद को बढ़ावा:
    क्षमा आग्रह की बजाय समझ का मार्ग प्रशस्त करती है।



उदाहरण:

गांधीजी ने हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान समुदायों से सार्वजनिक क्षमा याचना करने की अपील की थी। उन्होंने स्वयं भी कई बार सार्वजनिक रूप से अपनी भूलों को स्वीकार किया।


निष्कर्ष:

गांधीजी के लिए क्षमा याचना केवल व्यक्तिगत सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक मेल-मिलाप का माध्यम थी। यह संघर्ष को समाप्त कर सच्ची शांति का मार्ग खोलती है।





**43. संघर्ष के कारण और स्रोत क्या हैं?



संघर्ष एक सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक असहमति की स्थिति है, जो हिंसा या विरोध के रूप में प्रकट हो सकती है। गांधीवादी दृष्टिकोण से संघर्ष के मूल कारण बाह्य और मानव-निर्मित होते हैं, जिन्हें सही दृष्टिकोण से सुलझाया जा सकता है।


मुख्य कारण:


  1. आर्थिक असमानता:
    संसाधनों का असमान वितरण, गरीबी और बेरोजगारी संघर्ष को जन्म देते हैं।
  2. सामाजिक भेदभाव:
    जाति, धर्म, नस्ल और लिंग के आधार पर भेद संघर्ष को बढ़ावा देते हैं।
  3. राजनीतिक शोषण:
    जनता की भागीदारी से वंचित व्यवस्था में असंतोष उत्पन्न होता है।
  4. सांस्कृतिक असहिष्णुता:
    अल्पसंख्यकों की पहचान को नकारना भी संघर्ष को जन्म देता है।



स्रोत:


  • राज्य और शासन की विफलता
  • विकास की विषम प्रकृति
  • वैश्वीकरण की चुनौतियाँ
  • मानवाधिकारों का हनन



गांधी का समाधान:

गांधी मानते थे कि संघर्ष का हल संवाद, सेवा, सत्य और आत्मबल के माध्यम से संभव है।


निष्कर्ष:

संघर्ष के कारण विविध हो सकते हैं, परंतु सभी का समाधान मानवता, सह-अस्तित्व और नैतिकता के माध्यम से संभव है।





**44. असम विद्रोह पर लेख लिखिए



असम में विद्रोह की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक है। यह आंदोलन मुख्यतः असमिया पहचान, प्रवासन और संसाधनों के असमान वितरण से जुड़ा रहा है।


मुख्य कारण:


  1. बांग्लादेशी अप्रवासन:
    1971 के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम शरणार्थियों का आना स्थानीय असमिया जनसंख्या में चिंता और विरोध का कारण बना।
  2. सांस्कृतिक असुरक्षा:
    असमिया भाषा, संस्कृति और भूमि पर बाहरी प्रभाव से असमिया लोगों में असंतोष उत्पन्न हुआ।
  3. आर्थिक उपेक्षा:
    राज्य के संसाधनों का दोहन तो हुआ, परंतु स्थानीय युवाओं को रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं से वंचित रखा गया।



मुख्य घटनाएं:


  • 1979–1985 असम आंदोलन:
    ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) द्वारा नेतृत्वित आंदोलन के अंत में 1985 में असम समझौता हुआ।
  • ULFA का उदय:
    1980 के दशक में ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (ULFA) ने सशस्त्र विद्रोह छेड़ दिया।



सरकार की प्रतिक्रिया:

सैन्य कार्रवाई, AFSPA का प्रयोग और बाद में शांति वार्ताएं प्रमुख प्रतिक्रिया रहीं।


गांधीवादी दृष्टिकोण:


  • हिंसा समाधान नहीं है; संवाद, पहचान की स्वीकृति और न्यायपूर्ण विकास आवश्यक है।
  • गांधीजी होते तो सभी समुदायों के बीच विश्वास और संवाद से रास्ता निकालने का प्रयास करते।



निष्कर्ष:

असम विद्रोह एक जटिल संघर्ष है, जिसका समाधान केवल सैन्य नहीं, बल्कि न्याय, संवाद और समावेशी विकास में निहित है।


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