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Teaching Aptitude Notes (EMRS TGT/PGT के लिए)
1. शिक्षण का स्वरूप (Nature of Teaching)
- शिक्षण एक दो-तरफा प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी दोनों सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
- इसका उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि व्यवहार परिवर्तन, सोचने की क्षमता, और सामाजिक विकास करना भी है।
- शिक्षण का मूल स्वरूप – सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, और नैतिक प्रक्रिया है।
मुख्य बिंदु:
- शिक्षण केवल जानकारी देना नहीं बल्कि जीवन में उपयोगी बनाना है।
- यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित होता है।
- इसमें शिक्षक, छात्र, और शिक्षण वातावरण तीनों का योगदान होता है।
2. शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Teaching)
- उद्देश्यपूर्ण गतिविधि: शिक्षण का स्पष्ट लक्ष्य होता है।
- द्विपक्षीय प्रक्रिया: शिक्षक और विद्यार्थी दोनों सक्रिय होते हैं।
- परिवर्तनकारी प्रक्रिया: शिक्षण से व्यवहार में परिवर्तन होता है।
- सामाजिक प्रक्रिया: समाज की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षण बदलता है।
- निरंतर प्रक्रिया: सीखना और सिखाना जीवनभर चलता रहता है।
- मूल्य आधारित: शिक्षण में नैतिक मूल्यों का समावेश आवश्यक है।
3. उद्देश्य और मूल आवश्यकताएँ (Objectives and Basic Requirements)
मुख्य उद्देश्य:
- ज्ञानार्जन (Acquisition of Knowledge)
- कौशल विकास (Skill Development)
- दृष्टिकोण निर्माण (Attitude Formation)
- व्यवहार परिवर्तन (Behavioral Change)
- जीवन के लिए तैयारी (Preparation for Life)
मूल आवश्यकताएँ:
- योग्य शिक्षक
- उपयुक्त शिक्षण विधियाँ
- प्रेरक वातावरण
- शैक्षिक साधन (Teaching Aids)
- उपयुक्त मूल्यांकन प्रणाली
4. शिक्षार्थी की विशेषताएँ (Learner’s Characteristics)
- आयु (Age): मानसिक और शारीरिक स्तर पर फर्क पड़ता है।
- बुद्धि स्तर (Intelligence): उच्च, औसत, निम्न बुद्धि वाले शिक्षार्थियों की सीखने की गति अलग होती है।
- रुचि (Interest): रुचि के अनुसार सीखने की इच्छा बढ़ती है।
- पूर्व अनुभव (Previous Knowledge): पहले का ज्ञान नई सीख में मदद करता है।
- प्रेरणा (Motivation): आंतरिक या बाहरी प्रेरणा से सीखने की प्रभावशीलता बढ़ती है।
- भावनात्मक स्थिति: भावनाएं सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं।
5. शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Teaching)
- शिक्षक से संबंधित कारक: ज्ञान, व्यवहार, संप्रेषण कौशल, व्यक्तित्व।
- शिक्षार्थी से संबंधित कारक: रुचि, प्रेरणा, बुद्धि स्तर, पृष्ठभूमि।
- पर्यावरणीय कारक: कक्षा का वातावरण, संसाधन, प्रकाश, अनुशासन।
- शिक्षण विधियाँ: उपयुक्त विधि का चयन शिक्षण की प्रभावशीलता बढ़ाता है।
- संचार प्रक्रिया: स्पष्ट और प्रभावी संचार आवश्यक है।
- मूल्यांकन प्रणाली: शिक्षण की गुणवत्ता जांचने का माध्यम।
6. शिक्षण की विधियाँ (Methods of Teaching)
- व्याख्यान विधि (Lecture Method): सैद्धांतिक विषयों के लिए।
- प्रश्नोत्तर विधि (Question-Answer Method): विद्यार्थियों की सक्रियता के लिए।
- प्रदर्शन विधि (Demonstration Method): प्रयोगात्मक विषयों के लिए उपयुक्त।
- चर्चा विधि (Discussion Method): विचारों के आदान-प्रदान के लिए।
- समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method): तर्कशील सोच के लिए।
- प्रोजेक्ट विधि (Project Method): व्यवहारिक अनुभव हेतु।
- अवलोकन विधि (Observation Method): वास्तविक परिस्थितियों से सीखना।
7. शिक्षण सहायक साधन (Teaching Aids)
- शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले भौतिक या तकनीकी साधन।
प्रकार:
- श्रव्य साधन (Audio Aids): रेडियो, टेप रिकॉर्डर, पॉडकास्ट आदि।
- दृश्य साधन (Visual Aids): चार्ट, मानचित्र, चित्र, मॉडल आदि।
- श्रव्य-दृश्य साधन (Audio-Visual Aids): वीडियो, टेलीविजन, प्रोजेक्टर, स्मार्ट क्लास आदि।
महत्व:
- शिक्षण को रोचक बनाते हैं।
- अमूर्त अवधारणाओं को स्पष्ट करते हैं।
- ध्यान केंद्रित और स्मरणशक्ति बढ़ाते हैं।
8. मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation Systems)
अर्थ:
मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिससे विद्यार्थी की सीखने की उपलब्धि मापी जाती है।
प्रकार:
- पूर्व मूल्यांकन (Pre-assessment): प्रारंभिक स्तर पर।
- गठनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation): शिक्षण के दौरान निरंतर।
- सारांशात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation): अध्याय या सत्र के अंत में।
उद्देश्य:
- विद्यार्थी की प्रगति मापना।
- शिक्षण विधियों की प्रभावशीलता जानना।
- सुधारात्मक उपाय सुझाना।
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