1. भारत की विश्व दृष्टि की व्याख्या करें
भारत की विश्व दृष्टि शांति, सह-अस्तित्व, बहुपक्षवाद, समावेशिता और वैश्विक न्याय पर आधारित रही है। यह दृष्टिकोण न केवल उसके ऐतिहासिक अनुभवों से उपजा है, बल्कि आधुनिक वैश्विक परिवेश में भी इसका विशेष महत्व है।
प्राचीन भारत में “वसुधैव कुटुम्बकम्” की अवधारणा रही है, जो यह दर्शाती है कि भारत समस्त विश्व को एक परिवार मानता है। इसी दर्शन से प्रेरित होकर भारत की विदेश नीति में परस्पर सम्मान, गैर-हस्तक्षेप, और समावेशी विकास के सिद्धांत विकसित हुए हैं।
भारत की विश्व दृष्टि में गुटनिरपेक्षता एक प्रमुख स्तंभ रहा है। शीतयुद्ध के दौरान भारत ने किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होकर, स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण किया। आज भी भारत इस दृष्टिकोण को “रणनीतिक स्वायत्तता” के रूप में आगे बढ़ा रहा है।
समकालीन परिप्रेक्ष्य में, भारत बहुपक्षीय संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र, WTO, WHO, और BRICS में सक्रिय भागीदारी करता है। उसका उद्देश्य वैश्विक शासन प्रणाली को अधिक न्यायपूर्ण और उत्तरदायी बनाना है। भारत ने COVID-19 महामारी के दौरान वैक्सीन मैत्री अभियान के जरिए ‘विश्व कल्याण’ की भावना को मूर्त रूप दिया।
जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत की दृष्टि संतुलित रही है—विकसित और विकासशील देशों के उत्तरदायित्वों को अलग-अलग मानते हुए, वह जलवायु न्याय की मांग करता है।
भारत की विश्व दृष्टि वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में उभर रही है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, और एशिया के विकासशील देशों के साथ तकनीकी, आर्थिक और मानवीय सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत वैश्विक दक्षिण की आवाज बनकर उभर रहा है।
आर्थिक दृष्टि से, भारत वैश्विक व्यापार में समानता, न्याय और पारदर्शिता की वकालत करता है। आत्मनिर्भर भारत अभियान, ‘मेक इन इंडिया’, और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को वैश्विक स्तर पर साझा करने की उसकी मंशा, उसकी विश्व दृष्टि को और व्यापक बनाती है।
निष्कर्षतः, भारत की विश्व दृष्टि न केवल भौगोलिक सीमाओं से परे सोचती है, बल्कि एक ऐसे वैश्विक समाज की कल्पना करती है जो शांति, सहयोग, और साझा विकास पर आधारित हो। वर्तमान में G20 अध्यक्षता, ISA, और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जैसे प्रयास इस दृष्टि को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिला रहे हैं।
2. भारतीय विदेश नीति को समझने के लिए दृष्टिकोणों की चर्चा करें
भारतीय विदेश नीति को समझने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों को अपनाया जाता है:
- यथार्थवादी दृष्टिकोण (Realism) – यह शक्ति, सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिक मानता है। परमाणु परीक्षण, रक्षा सौदे, और रणनीतिक साझेदारी इसकी मिसालें हैं।
- आदर्शवादी दृष्टिकोण (Idealism) – गांधी और नेहरू की नीतियों से प्रेरित होकर भारत ने नैतिक मूल्यों, गुटनिरपेक्षता और विश्व शांति को बढ़ावा दिया।
- नव-यथार्थवादी दृष्टिकोण (Neo-Realism) – वैश्विक सत्ता-संरचना को ध्यान में रखकर नीति बनाई जाती है। उदाहरण: अमेरिका और चीन के बीच संतुलन साधने की भारत की नीति।
- सम्प्रेषणवादी दृष्टिकोण – यह कूटनीति में जनता, मीडिया और प्रवासी भारतीयों की भूमिका को महत्व देता है।
- व्यवहारवादी दृष्टिकोण – आर्थिक, तकनीकी और व्यापारिक हितों को केंद्र में रखकर विदेश नीति बनती है, जैसे: ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’।
इन दृष्टिकोणों के समन्वय से ही भारत की विदेश नीति की समग्रता समझी जा सकती है।
3. भारतीय विदेश नीति निर्माण में विभिन्न संस्थाओं की भूमिका का मूल्यांकन करें
भारतीय विदेश नीति निर्माण में कई संस्थाएं योगदान करती हैं:
- प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) – विदेश नीति के मूल स्वरूप और दिशा निर्धारण में प्रधानमंत्री की प्रमुख भूमिका होती है।
- विदेश मंत्रालय (MEA) – नीतियों का कार्यान्वयन, राजनयिक संवाद, और द्विपक्षीय/बहुपक्षीय संबंधों को संभालता है।
- रक्षा मंत्रालय – सामरिक दृष्टि से रणनीतिक साझेदारियों और सैन्य सहयोग का निर्धारण करता है।
- वाणिज्य मंत्रालय – व्यापारिक समझौते और आर्थिक कूटनीति में सक्रिय भूमिका निभाता है।
- राष्ट्रपति एवं संसद – अंतरराष्ट्रीय संधियों की पुष्टि और विदेश नीति पर चर्चा संसद में होती है।
- मीडिया और थिंक टैंक – नीति विश्लेषण, जनमत निर्माण, और वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
- प्रवासी भारतीय और निजी क्षेत्र – वैश्विक छवि निर्माण और आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस प्रकार, विदेश नीति निर्माण एक बहुस्तरीय और सहयोगात्मक प्रक्रिया है।
4. भारत की आर्थिक वृद्धि में यू.पी.ए. के योगदान का मूल्यांकन करें
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने 2004–2014 के दौरान आर्थिक विकास को गति दी। इस दौरान GDP वृद्धि दर औसतन 7–8% रही।
प्रमुख योगदान:
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA): ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन।
- कृषि ऋण माफी योजना: किसानों को राहत।
- FDI में विस्तार: खुदरा, बीमा व नागरिक विमानन क्षेत्रों में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन।
- आईटी और सेवा क्षेत्र: निर्यात और रोजगार में वृद्धि।
- राष्ट्रीय राजमार्ग विकास: आधारभूत संरचना को गति।
हालांकि, इस दौरान कुछ चुनौतियां भी सामने आईं:
- नीति स्थिरता की कमी (Policy Paralysis)
- घोटाले (2G, कोलगेट) ने निवेशकों के विश्वास को कम किया।
- महंगाई और राजकोषीय घाटा भी चिंता का विषय रहे।
फिर भी, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और समावेशी विकास की दृष्टि से UPA काल का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा।
5. अपने बिल्कुल नजदीकी पड़ोसियों के साथ संबंध निभाने में भारत कहां तक सफल रहा है?
भारत के ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के तहत पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने के प्रयास हुए हैं, परंतु इसमें मिश्रित सफलता मिली है।
सफलता के उदाहरण:
- भूटान: गहरे रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंध।
- बांग्लादेश: भूमि सीमा समझौता, सीमावर्ती शांति, व्यापार और जल प्रबंधन में सहयोग।
- नेपाल: लोगों से लोगों के संबंध, बिजली परियोजनाओं में सहयोग।
चुनौतियाँ:
- पाकिस्तान: आतंकवाद, कश्मीर और सीमा संघर्ष समस्याएं बनी रहीं।
- चीन: सीमा विवाद (डोकलाम, गलवान), व्यापार असंतुलन।
- श्रीलंका: तमिल मुद्दा, चीन की उपस्थिति।
- म्यांमार: रोहिंग्या और सैन्य शासन को लेकर अस्थिरता।
निष्कर्षतः, भारत ने पड़ोसी देशों से संबंधों को प्राथमिकता दी है, लेकिन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के चलते पूर्ण सफलता नहीं मिल पाई है।
6. संक्षेप में लेख:
(क) भारत-चीन सीमा समस्या
भारत-चीन सीमा विवाद 1962 के युद्ध के बाद से unresolved है। तीन मुख्य क्षेत्रों में विवाद है: अक्साई चिन, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के आसपास। हाल के वर्षों में डोकलाम (2017) और गलवान (2020) जैसी घटनाएं तनाव को दर्शाती हैं। दोनों देश LAC (Line of Actual Control) पर सैनिक तैनात किए हुए हैं। वार्ता और disengagement की कोशिशें जारी हैं, पर पूर्ण समाधान अभी बाकी है।
(ख) भारत-रूस संबंध
भारत-रूस संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं। रूस भारत का रक्षा, अंतरिक्ष और ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख सहयोगी है। ब्रिक्स और SCO जैसे मंचों पर दोनों देश साथ हैं। हाल ही में रूस-चीन निकटता और रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत की कूटनीति को जटिल बनाया है, परंतु भारत तटस्थता अपनाकर संतुलन बनाए रखने में सफल रहा है।
7. ASEAN की संरचना और कार्यों का वर्णन कीजिए
ASEAN (Association of Southeast Asian Nations) 1967 में स्थापित एक क्षेत्रीय संगठन है। इसके 10 सदस्य हैं: इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, ब्रुनेई, और कंबोडिया।
संरचना:
- ASEAN शिखर सम्मेलन
- ASEAN सचिवालय (जकार्ता)
- आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक परिषदें
कार्य:
- क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा।
- आर्थिक एकीकरण और व्यापार सहयोग।
- आपसी निवेश, पर्यटन और शिक्षा में सहयोग।
- चीन और अमेरिका के बीच शक्ति संतुलन बनाना।
भारत भी ASEAN के साथ व्यापक रणनीतिक साझेदार है और ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत सहयोग बढ़ा रहा है।
8. भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंधों का आकलन करें
भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से गहरे हैं। गांधीजी की दक्षिण अफ्रीका से ही सार्वजनिक जीवन की शुरुआत हुई थी।
प्रमुख क्षेत्र:
- राजनीतिक सहयोग: दोनों देश G-20, BRICS, IBSA में साझेदार।
- आर्थिक संबंध: खनिज, रक्षा और कृषि उत्पादों का व्यापार।
- शैक्षिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: ICCR और शिक्षा मिशनों के माध्यम से।
चुनौतियाँ:
- चीन की बढ़ती उपस्थिति।
- कुछ व्यापारिक अवरोध।
फिर भी, दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल की बड़ी आबादी और साझा लोकतांत्रिक मूल्य, इन संबंधों को मजबूती प्रदान करते हैं।
9. भारत अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से कैसे निपटता है? विस्तार से बताइए
भारत आतंकवाद के खिलाफ बहु-आयामी रणनीति अपनाता है:
- कानूनी ढांचा: UAPA, NIA, POTA (पूर्व में) जैसे कानूनों के माध्यम से कार्रवाई।
- संस्थागत उपाय: NIA, RAW, IB जैसी एजेंसियां आतंकवाद पर निगरानी रखती हैं।
- सैन्य प्रतिक्रिया: सर्जिकल स्ट्राइक (2016), एयर स्ट्राइक (2019) जैसे कदम।
- कूटनीतिक प्रयास: FATF में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने का समर्थन, संयुक्त राष्ट्र में आतंकी सूचीकरण।
- प्रौद्योगिकी और साइबर निगरानी: डिजिटल नेटवर्क और सोशल मीडिया की निगरानी।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अमेरिका, इजरायल, फ्रांस जैसे देशों के साथ खुफिया सहयोग।
भारत की नीति आतंकवाद के प्रति “zero tolerance” की रही है।
10. संक्षेप में लेख:
(क) गुटनिरपेक्ष आंदोलन
NAM (Non-Aligned Movement) 1961 में शुरू हुआ था, जिसमें भारत प्रमुख संस्थापक था। इसका उद्देश्य था कि विकासशील देश शीत युद्ध की ध्रुवीयता से अलग रहें। आज NAM की प्रासंगिकता नई चुनौतियों जैसे वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल असमानता के संदर्भ में बनी हुई है।
(ख) क्षेत्रीय सहयोग
क्षेत्रीय सहयोग जैसे SAARC, BIMSTEC, और ASEAN भारत की विदेश नीति में महत्त्वपूर्ण हैं। इनका उद्देश्य व्यापार, कनेक्टिविटी, आतंकवाद विरोध, और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना है। भारत इन संगठनों के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देता है।
11. भारत विश्व मामलों को लेकर कैसे प्रतिक्रिया करता है? समुचित उदाहरणों के साथ समझाइए।
भारत की प्रतिक्रिया विश्व मामलों में संतुलन, रणनीतिक स्वायत्तता और नैतिक मूल्यों पर आधारित होती है। भारत न तो पूर्णतः यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाता है और न ही केवल आदर्शवादी; वह परिस्थिति-सापेक्ष संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है।
मुख्य पहलू:
- रणनीतिक स्वायत्तता: रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस की निंदा नहीं की, बल्कि तटस्थ रुख अपनाया और दोनों पक्षों से वार्ता का आह्वान किया।
- मानवीय दायित्व: भारत ने COVID-19 महामारी में वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत 90+ देशों को वैक्सीन भेजी, जो उसकी वैश्विक उत्तरदायित्व भावना को दर्शाता है।
- आतंकवाद विरोधी रुख: पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक कर यह स्पष्ट किया कि वह आतंकवाद पर कठोर रुख अपनाएगा।
- संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग: भारत UNSC की स्थायी सदस्यता की मांग करता रहा है, जिससे वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व हो सके।
- जलवायु परिवर्तन पर सक्रियता: भारत ‘पेरिस समझौते’ और ‘इंटरनेशनल सोलर एलायंस’ के माध्यम से स्थायी विकास और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में सक्रिय है।
निष्कर्षतः, भारत विश्व मामलों में संतुलन, बहुपक्षीयता और मानवतावादी मूल्यों पर आधारित नीतिगत प्रतिक्रिया करता है।
12. प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की शक्तियां और कार्य क्या हैं, वर्णन कीजिए।
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) भारत सरकार का एक महत्वपूर्ण संस्थागत अंग है, जो प्रधानमंत्री के प्रशासनिक, नीतिगत और रणनीतिक निर्णयों में सहायता करता है।
मुख्य शक्तियाँ व कार्य:
- नीति निर्माण में सहयोग: PMO विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से समन्वय स्थापित कर नीतिगत निर्णयों को गति देता है।
- गुप्त और सामरिक सूचना प्रबंधन: RAW और अन्य खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी प्रधानमंत्री को सीधे PMO के माध्यम से पहुंचती है।
- राजनयिक संबंधों में भूमिका: विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर विदेश यात्राओं, द्विपक्षीय वार्ताओं आदि का समन्वय करता है।
- जनहित याचिकाओं की समीक्षा: नागरिकों द्वारा भेजी गई याचिकाओं और शिकायतों का समाधान करने में सहयोग करता है।
- प्रशासनिक नियंत्रण: कैबिनेट सचिवालय, नीति आयोग, और प्रमुख विभागों से समन्वय बनाए रखता है।
निष्कर्ष: PMO एक शक्तिशाली संस्था है जो नीति, सुरक्षा और प्रशासनिक समन्वय में प्रधानमंत्री को पूर्ण सहयोग प्रदान करता है।
13. भारत के आर्थिक उदारीकरण और निजीकरण के कार्यक्रम का आकलन कीजिए।
1991 में भारत ने गंभीर आर्थिक संकट के चलते आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG reforms) की नीति अपनाई। इसका उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप बनाना था।
मुख्य पहलू:
- उदारीकरण (Liberalization): लाइसेंस राज की समाप्ति, व्यापारिक नियंत्रण में कमी, और निजी उद्यमों को अधिक स्वतंत्रता।
- निजीकरण (Privatization): सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को देना; उदाहरण: एयर इंडिया का निजीकरण।
- वैश्वीकरण (Globalization): विदेशी निवेश को प्रोत्साहन, विदेशी कंपनियों के लिए प्रवेश आसान करना।
प्रभाव:
- GDP में वृद्धि, विदेशी निवेश में तेजी।
- सेवा क्षेत्र (आईटी, बीपीओ) में बड़ा विस्तार।
- बेरोजगारी, असमानता और कृषि क्षेत्र की उपेक्षा जैसे मुद्दे भी उभरे।
निष्कर्ष: आर्थिक उदारीकरण ने भारत को वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में प्रतिस्पर्धी बनाया, परंतु समावेशी विकास के लिए सुधारों की निरंतरता आवश्यक है।
14. भारत और अमेरिका के राजनीतिक और आर्थिक संबंधों की चर्चा कीजिए।
भारत-अमेरिका संबंध वर्तमान में एक रणनीतिक साझेदारी के रूप में विकसित हो चुके हैं।
राजनीतिक संबंध:
- रणनीतिक वार्ताएं (2+2 डायलॉग), QUAD, I2U2 जैसे मंचों पर सहयोग।
- रक्षा सौदे: COMCASA, LEMOA जैसे समझौते।
- Indo-Pacific क्षेत्र में साझा दृष्टिकोण।
आर्थिक संबंध:
- अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार।
- तकनीकी निवेश, डिजिटल सहयोग, और ऊर्जा व्यापार में वृद्धि।
- सेवा क्षेत्र (IT, फार्मा) में भारतीय कंपनियों की मज़बूत उपस्थिति।
चुनौतियाँ:
- वीज़ा नीति, व्यापार में संरक्षणवाद, भारत के रूस से संबंध।
निष्कर्ष: भारत और अमेरिका के संबंध बहुआयामी हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और साझा रणनीतिक हितों पर आधारित हैं।
15. संक्षेप में लेख:
(क) भारत के नागरिक परमाणु समझौते
2008 में अमेरिका और भारत के बीच हुआ 123 समझौता भारत के नागरिक परमाणु कार्यक्रम की वैश्विक स्वीकृति का प्रतीक है। इसके तहत भारत को IAEA सुरक्षा मानकों के अंतर्गत परमाणु ईंधन और तकनीक उपलब्ध कराई गई। इससे भारत को ऊर्जा सुरक्षा में सहायता मिली और वह वैश्विक असैनिक परमाणु तंत्र का हिस्सा बना।
(ख) भारत और पूर्व एशियाई समुदाय
पूर्व एशियाई समुदाय (East Asia Summit) में भारत एक सक्रिय भागीदार है। यह मंच राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है। ‘लुक ईस्ट’ से ‘एक्ट ईस्ट’ नीति में बदलाव भारत की पूर्वी नीति की सक्रियता को दर्शाता है।
16. संक्षेप में लेख:
(क) BRICS के उद्देश्य और गतिविधियां
BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) का उद्देश्य बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना, वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनना और विकासशील देशों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। न्यू डेवलपमेंट बैंक और CRA जैसी पहलें इसकी प्रमुख गतिविधियाँ हैं।
(ख) मध्य एशिया में भारतीय हित
मध्य एशिया भारत के लिए ऊर्जा, सुरक्षा और भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। भारत ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी’ के तहत वहाँ रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बढ़ा रहा है। INSTC और चाबहार पोर्ट इस नीति के वाहक हैं।
17. भारत पश्चिम एशिया स्थिति को कैसे देखा है? और कैसे प्रतिक्रिया करता है?
भारत पश्चिम एशिया को ऊर्जा सुरक्षा, प्रवासी भारतीयों और भौगोलिक रणनीति की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानता है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- इजराइल और फिलिस्तीन दोनों के साथ संतुलन बनाए रखना।
- खाड़ी देशों से गहरे आर्थिक और सामरिक संबंध; जैसे: सऊदी अरब, UAE।
- ईरान के साथ चाबहार पोर्ट जैसे रणनीतिक परियोजनाएं।
- संकट की स्थिति में त्वरित निकासी (Vande Bharat, ऑपरेशन अजाय)।
निष्कर्ष: भारत की प्रतिक्रिया संतुलन, व्यावहारिकता और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है।
18. मानवाधिकारों के पालन में भारत के रिकॉर्ड का आकलन कीजिए।
भारत ने संविधान, विधायिका, और न्यायपालिका के माध्यम से मानवाधिकारों को सुनिश्चित किया है।
सकारात्मक पहलू:
- NHRC की स्थापना (1993), RTI कानून, POSCO, SC/ST Act आदि।
- महिलाओं, बच्चों, वृद्धों और ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को बढ़ावा।
- COVID-19 के दौरान राहत और पुनर्वास कार्य।
चुनौतियाँ:
- पुलिस हिंसा, हिरासत में मृत्यु, इंटरनेट बंदी जैसे मुद्दे।
- AFSPA जैसी विधियों की आलोचना।
- ट्रायल में देरी और कारागारों की स्थिति।
निष्कर्ष: भारत मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध है, परंतु उसे कार्यान्वयन में सुधार लाने की आवश्यकता है।
19. संक्षेप में लेख:
(क) भारत पर एफडीआई का प्रभाव
FDI ने भारत में बुनियादी ढांचे, तकनीकी प्रगति और रोजगार में वृद्धि की है। रीटेल, रक्षा, और दूरसंचार में निवेश आया है। हालांकि, इससे घरेलू उद्योग पर दबाव और असमानता भी बढ़ी है।
(ख) भारत और संयुक्त राष्ट्र
भारत UN का संस्थापक सदस्य है और शांति मिशनों में अग्रणी भूमिका निभाता है। भारत UNSC की स्थायी सदस्यता का दावेदार भी है। जलवायु, विकास और आतंकवाद पर भारत की नीति संयुक्त राष्ट्र मंच पर स्पष्ट और सक्रिय रही है।
20. भारत की विदेश नीति की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
भारत की विदेश नीति निम्न विशेषताओं पर आधारित है:
- गुटनिरपेक्षता – शक्ति गुटों से दूरी, रणनीतिक स्वायत्तता।
- शांति और सह-अस्तित्व – “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना।
- बहुपक्षीयता – UN, WTO, WHO में सक्रिय भागीदारी।
- विकास-उन्मुखता – आर्थिक सहयोग, व्यापार समझौते।
- डायस्पोरा नीति – प्रवासी भारतीयों के साथ गहरे संबंध।
- नवोन्मेष और प्रौद्योगिकी सहयोग – अंतरिक्ष, डिजिटल अवसंरचना, ऊर्जा क्षेत्र।
- संतुलित कूटनीति – अमेरिका, रूस, चीन आदि के साथ संतुलन।
निष्कर्ष: भारत की विदेश नीति का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक शांति, विकास और समावेशिता को बढ़ावा देना है।
21. भारत की विदेश नीति बनाने में राजनीतिक दल कैसे योगदान करते हैं?
भारतीय विदेश नीति का निर्माण मुख्य रूप से कार्यपालिका द्वारा किया जाता है, विशेष रूप से प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय द्वारा। परंतु राजनीतिक दलों की भूमिका भी अप्रत्यक्ष रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
मुख्य योगदान:
- विचारधारात्मक प्रभाव: विभिन्न दलों की वैचारिक पृष्ठभूमि विदेश नीति को प्रभावित करती है। जैसे, कांग्रेस के समय गुटनिरपेक्षता प्रमुख थी, जबकि NDA सरकार के दौरान रणनीतिक भागीदारी और सुरक्षा प्राथमिकता में आई।
- संसद में बहस: संसद में विदेश नीति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती है। विपक्षी दल सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाकर उसे उत्तरदायी बनाते हैं।
- जनमत निर्माण: राजनीतिक दल जनभावनाओं को व्यक्त करते हैं। जैसे, श्रीलंका में तमिल मुद्दे पर क्षेत्रीय दलों का दबाव विदेश नीति में बदलाव लाया।
- राज्य सरकारों का दबाव: पश्चिम बंगाल द्वारा तीस्ता जल समझौते पर आपत्ति और तमिलनाडु द्वारा श्रीलंका नीति पर असर उदाहरण हैं।
- सहयोग और विरोध: सरकार को किसी अंतरराष्ट्रीय संधि, समझौते या युद्ध नीति के लिए राजनीतिक समर्थन या विरोध का सामना करना पड़ता है। जैसे, भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर UPA सरकार को संसद में विश्वास मत का सामना करना पड़ा।
निष्कर्ष: विदेश नीति का निर्माण भले ही कार्यपालिका का कार्य हो, परंतु राजनीतिक दल उसकी दिशा और स्वरूप पर गहरा प्रभाव डालते हैं, विशेष रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत।
22. पश्चिम एशिया संकट के संदर्भ में भारत के पक्ष का उदाहरण सहित जवाब दीजिए।
पश्चिम एशिया एक संवेदनशील भू-राजनीतिक क्षेत्र है, जहाँ भारत की नीति संतुलन और शांतिपूर्ण समाधान पर आधारित रही है।
उदाहरण:
- ईरान-अमेरिका तनाव: भारत ने दोनों पक्षों के साथ संवाद बनाए रखा। ईरान से ऊर्जा साझेदारी और चाबहार पोर्ट, जबकि अमेरिका से रणनीतिक और रक्षा संबंध।
- सऊदी अरब और यमन युद्ध: भारत ने इस संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया और वहां फंसे नागरिकों को सुरक्षित निकाला (ऑपरेशन राहत)।
- इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष: भारत ने फिलिस्तीन के लिए समर्थन बनाए रखा लेकिन इजराइल के साथ भी रक्षा और कृषि में सहयोग बढ़ाया। यह संतुलन विदेश नीति की कुशलता दर्शाता है।
- 2023-24 में गाज़ा संकट: भारत ने नागरिकों की सुरक्षा पर जोर दिया, दोनों पक्षों से संयम की अपील की और UN में संतुलित भूमिका निभाई।
निष्कर्ष: भारत ने पश्चिम एशिया में संकट की स्थिति में संतुलित, तटस्थ और मानवीय दृष्टिकोण अपनाया, जिससे उसके रणनीतिक हित सुरक्षित रहे।
23. संकट प्रबंधन क्या है?
संकट प्रबंधन (Crisis Management) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी आपातकालीन या अवांछित स्थिति को प्रभावी ढंग से नियंत्रित और हल किया जाता है।
मुख्य घटक:
- पूर्वानुमान: संभावित संकट की पहचान और जोखिम का मूल्यांकन।
- तैयारी: पूर्व-नियोजन, संसाधनों का प्रबंधन, प्रशिक्षण।
- प्रतिक्रिया: संकट के समय त्वरित निर्णय लेना और हानि को सीमित करना।
- पुनर्प्राप्ति: सामान्य स्थिति की ओर लौटना और भविष्य के लिए सुधार।
उदाहरण:
- COVID-19 महामारी: भारत ने लॉकडाउन, वैक्सीन निर्माण और वितरण, वंदे भारत मिशन जैसे उपाय किए।
- बालाकोट स्ट्राइक के बाद तनाव: सरकार ने कूटनीतिक और सैन्य संतुलन से स्थिति को नियंत्रित किया।
निष्कर्ष: संकट प्रबंधन कुशल नेतृत्व, संसाधन नियोजन और सामूहिक प्रतिक्रिया का समन्वय है जो देश की सुरक्षा और स्थायित्व सुनिश्चित करता है।
24. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और इससे जूझने के लिए भारत की तैयारी को समझाइए।
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। भारत भी लंबे समय से आतंकवाद का शिकार रहा है।
भारत की तैयारियाँ:
- कानूनी ढांचा: UAPA, NIA एक्ट, POTA जैसे कड़े कानून बनाए गए।
- संस्थागत ढांचा: NIA, NSG, IB और RAW जैसी एजेंसियाँ।
- तकनीकी उपाय: आतंकवादियों की गतिविधियों पर निगरानी, साइबर इंटेलिजेंस का प्रयोग।
- कूटनीतिक प्रयास: FATF में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में लाना, UN में आतंकवादी संगठनों को सूचीबद्ध कराना।
- सैन्य उपाय: सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे सक्रिय कदम।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अमेरिका, इजराइल, रूस आदि के साथ आतंकवाद रोधी समझौते।
चुनौतियाँ:
- सीमा पार आतंकवाद, फंडिंग नेटवर्क, स्थानीय कट्टरता।
निष्कर्ष: भारत आतंकवाद से लड़ने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रहा है, जिसमें सुरक्षा, कूटनीति और तकनीक का समन्वय है।
25. मानवीय हस्तक्षेप क्या है?
मानवीय हस्तक्षेप (Humanitarian Intervention) वह कार्रवाई है जिसमें किसी देश में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन को रोकने हेतु बाह्य शक्तियाँ सैन्य या गैर-सैन्य हस्तक्षेप करती हैं।
मुख्य उद्देश्य:
- नरसंहार, जातीय संहार, मानवाधिकार हनन को रोकना।
उदाहरण:
- 1999 में कोसोवो में नाटो द्वारा हस्तक्षेप।
- 2011 में लीबिया में UN के समर्थन से सैन्य हस्तक्षेप।
भारत की दृष्टि:
- भारत मानवीय हस्तक्षेप के प्रति सतर्क है। वह इसे देशों की संप्रभुता के विरुद्ध मानता है यदि यह UN चार्टर के अंतर्गत न हो।
संतुलन की नीति: भारत ‘दखलअंदाजी नहीं, सहयोग’ की नीति अपनाता है। जैसे, नेपाल, श्रीलंका में मानवीय सहायता।
निष्कर्ष: मानवीय हस्तक्षेप जटिल और संवेदनशील विषय है, जहाँ नैतिकता, संप्रभुता और वैश्विक राजनीति के बीच संतुलन आवश्यक है।
26. जलवायु परिवर्तन पर क्योटो बैठक की महत्ता की व्याख्या कीजिए।
क्योटो बैठक 1997 में आयोजित UNFCCC का एक महत्वपूर्ण सम्मेलन था, जिसमें क्योटो प्रोटोकॉल पर सहमति बनी।
प्रमुख बिंदु:
- विकसित देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कानूनी रूप से बाध्य लक्ष्य निर्धारित किए गए।
- 2008–2012 की अवधि को लक्ष्य काल घोषित किया गया।
- भारत और अन्य विकासशील देशों को बाध्यकारी लक्ष्य नहीं दिए गए, जिससे उनके विकास हित सुरक्षित रहे।
भारत की भूमिका:
- भारत ने “साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारी” (CBDR) की नीति को आगे बढ़ाया।
- भारत का रुख यह था कि प्रदूषण के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार विकसित देश अधिक जिम्मेदारियाँ उठाएं।
महत्त्व:
- पहली बार वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को कानूनी रूप में मान्यता मिली।
- यह समझौता 2015 के पेरिस समझौते की नींव बना।
निष्कर्ष: क्योटो बैठक जलवायु न्याय और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में एक मील का पत्थर थी, जिसमें भारत की भूमिका संतुलित और रचनात्मक रही।
27. साम्यवादी उपरांत समाज पर टिप्पणी कीजिए।
साम्यवादी उपरांत समाज उस सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था को दर्शाता है जो शीत युद्ध के बाद साम्यवादी देशों में बनी, विशेषकर पूर्व सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में।
मुख्य विशेषताएँ:
- राजनीतिक संक्रमण: एकदलीय तंत्र से बहुदलीय लोकतंत्र की ओर बढ़ाव।
- आर्थिक परिवर्तन: योजना आधारित अर्थव्यवस्था से बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर।
- सामाजिक प्रभाव: निजी संपत्ति, उपभोक्तावाद और असमानता में वृद्धि।
- राष्ट्रवाद का उदय: यूक्रेन, बेलारूस, बाल्टिक राष्ट्रों में राष्ट्रवादी आंदोलनों की वृद्धि।
- रूढ़िवाद और सत्ता केंद्रीकरण: कुछ देशों (जैसे रूस) में राष्ट्रपति प्रणाली में अधिनायकवाद की प्रवृत्ति।
निष्कर्ष: साम्यवादी उपरांत समाजों ने लोकतंत्र, पूंजीवाद और वैश्वीकरण को अपनाया, परंतु उनके सामने सामाजिक असमानता, राजनीतिक अस्थिरता और पहचान संकट जैसी नई चुनौतियाँ भी उभरीं।
28. संयुक्त राष्ट्र में गैर सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका और योगदान को समझाइए।
गैर-सरकारी संगठन (NGOs) संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में सहयोगी भूमिका निभाते हैं। इन्हें ECOSOC के तहत सलाहकार दर्जा प्राप्त है।
मुख्य भूमिकाएं:
- नीति-निर्माण में योगदान: मानवाधिकार, पर्यावरण, लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र को सलाह।
- सूचना और शोध: जमीनी स्तर की समस्याओं पर रिपोर्ट और डेटा उपलब्ध कराना।
- लाभार्थी तक सेवाएं: विकास, राहत और पुनर्वास कार्यों को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करना।
- अधिकारों की रक्षा: मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्टिंग और जनमत निर्माण।
उदाहरण:
- Amnesty International, Greenpeace, Human Rights Watch जैसी संस्थाएं।
भारत में: NGOs की रिपोर्टें UN में दलित अधिकार, महिला हिंसा, पर्यावरणीय खतरे जैसे मुद्दों पर भारत की नीतियों को प्रभावित करती रही हैं।
निष्कर्ष: NGOs संयुक्त राष्ट्र की नीति और कार्यक्रमों में जमीनी दृष्टिकोण लाते हैं और वैश्विक शासन में लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा देते हैं।
29. संक्षेप में लेख:
(क) यूरोपीय संघ
EU एक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें 27 देश शामिल हैं। यह आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग के लिए कार्य करता है। इसका अपना संसद, मुद्रा (यूरो) और विदेश नीति तंत्र है। भारत के लिए यह प्रमुख व्यापारिक भागीदार और कूटनीतिक सहयोगी है।
(ख) भारत-लातिनी अमेरिकी संबंध
भारत ने लातिनी अमेरिका के साथ व्यापार, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग बढ़ाया है। ब्राज़ील, अर्जेंटीना जैसे देशों से कृषि, दवा, और आईटी सेक्टर में साझेदारी बढ़ रही है। हाल के वर्षों में द्विपक्षीय यात्राओं और निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
30. भारत की विदेश नीति पर नेहरूवादी सर्वसम्मति (आम सहमति) को समझाइए।
नेहरूवादी सर्वसम्मति से तात्पर्य उस वैचारिक दृष्टिकोण से है, जिसे जवाहरलाल नेहरू ने भारत की विदेश नीति के आधार के रूप में स्थापित किया।
मुख्य तत्व:
- गुटनिरपेक्षता: किसी भी शक्ति गुट से दूरी, स्वायत्त नीति।
- पंचशील और शांति: समानता, अहस्तक्षेप और सह-अस्तित्व।
- संयुक्त राष्ट्र में आस्था: बहुपक्षीय व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय न्याय में विश्वास।
- औपनिवेशिक-विरोध: स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन।
- आर्थिक दृष्टिकोण: दक्षिण-दक्षिण सहयोग, स्वदेशी विकास मॉडल।
आज की स्थिति:
- शीत युद्ध के बाद, भारत की नीति व्यावहारिक और बहुआयामी हो गई है, परंतु नेहरूवादी मूल तत्व जैसे शांति, स्वतंत्रता और नैतिकता आज भी विद्यमान हैं।
निष्कर्ष: नेहरूवादी सर्वसम्मति ने भारत की विदेश नीति को एक नैतिक और रणनीतिक दिशा दी, जिसे आज भी विभिन्न रूपों में स्वीकारा जाता है।
31. भारतीय विदेश नीति को बनाने में विदेश मंत्रालय की क्या भूमिका है?
भारतीय विदेश नीति का निर्माण केंद्र सरकार के अंतर्गत मुख्यतः विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा किया जाता है। यह नीति निर्माण, कार्यान्वयन और वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
मुख्य भूमिकाएँ:
- नीति निर्माण: विदेश मंत्रालय, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के सहयोग से विदेश नीति का खाका तैयार करता है। विदेश सचिव और राजदूतों की रिपोर्ट भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण होती है।
- राजनयिक संबंध: भारत के 190+ दूतावासों और मिशनों के माध्यम से भारत अपने राजनयिक लक्ष्य साधता है। MEA इन सभी का संचालन करता है।
- व्यापार और रणनीति: विदेश मंत्रालय व्यापार समझौते, रणनीतिक साझेदारी और रक्षा सहयोग जैसे मामलों पर कार्य करता है।
- समन्वय: अन्य मंत्रालयों जैसे रक्षा, वाणिज्य, पर्यावरण आदि के साथ विदेश नीति के विभिन्न पहलुओं पर समन्वय बनाता है।
- जनसंपर्क और प्रवासी भारतीय: विदेश मंत्रालय “प्रवासी भारतीय दिवस” जैसे कार्यक्रमों और आपदा में विदेशों में फंसे नागरिकों की मदद के लिए कार्य करता है (जैसे वंदे भारत मिशन)।
- ग्लोबल मंचों पर भारत की भागीदारी: संयुक्त राष्ट्र, WTO, BRICS, G20 आदि संगठनों में भारत की भागीदारी सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष: विदेश मंत्रालय भारत की विदेश नीति का प्रमुख स्तंभ है, जो नीति निर्माण से लेकर क्रियान्वयन तक सभी पहलुओं पर काम करता है। यह भारत की वैश्विक पहचान और हितों को संरक्षित रखने में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
32. शीत युद्ध के बाद के दौर में भारत और रूसी संबंध किस प्रकार परिवर्तित हुए?
शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के बीच घनिष्ठ संबंध थे। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत-रूस संबंधों में बदलाव आया।
परिवर्तन के प्रमुख पहलु:
- रणनीतिक साझेदारी: 2000 में ‘भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी’ की घोषणा हुई। इससे रक्षा, ऊर्जा, विज्ञान, और आतंकवाद विरोध में सहयोग बढ़ा।
- रक्षा सहयोग: भारत आज भी रूस से S-400, ब्रह्मोस, सुखोई-30 जैसे हथियार प्राप्त करता है। लेकिन अब भारत ने अमेरिका, फ्रांस से भी रक्षा खरीदारी शुरू की है, जिससे रूस पर निर्भरता थोड़ी घटी है।
- ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग: रूस से तेल और गैस, परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम परियोजना) में सहयोग जारी है।
- भू-राजनीतिक समन्वय: BRICS, SCO जैसे मंचों पर सहयोग जारी है। यूक्रेन संकट पर भारत ने रूस के खिलाफ वोट नहीं दिया, संतुलित रुख अपनाया।
- विविधीकरण: भारत ने अपनी विदेश नीति को संतुलित बनाया है — रूस के साथ संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका, जापान, और यूरोप से भी घनिष्ठता बढ़ाई।
निष्कर्ष: शीत युद्ध के बाद भारत-रूस संबंधों में ‘घनिष्ठता से संतुलन’ की ओर संक्रमण हुआ है, परंतु यह साझेदारी अब भी भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा है।
33. सार्क (SAARC) पर एक लेख लिखिए
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) की स्थापना 1985 में हुई थी, जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान शामिल हैं।
उद्देश्य:
- क्षेत्रीय सहयोग और विकास
- गरीबी उन्मूलन
- शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण में साझा प्रगति
सफलताएँ:
- SAFTA (South Asian Free Trade Area)
- SAARC विश्वविद्यालय, आपदा प्रबंधन केंद्र की स्थापना
- SAARC फूड बैंक, सांस्कृतिक आदान-प्रदान
चुनौतियाँ:
- भारत-पाक तनाव के कारण शिखर सम्मेलन रुकना
- प्रभावहीन कार्यनीतिक संरचना
- निर्णय प्रक्रिया में सर्वसम्मति की बाध्यता
भारत की भूमिका:
- सबसे बड़ा सदस्य और योगदानकर्ता
- SAARC Satellite, आपदा सहायता में प्रमुख भागीदारी
वर्तमान स्थिति: 2016 के उरी हमले के बाद SAARC शिखर सम्मेलन स्थगित है। भारत अब BIMSTEC जैसे विकल्पों की ओर झुक रहा है।
निष्कर्ष: SAARC का भविष्य भारत-पाक संबंधों की स्थिति पर निर्भर करता है। इसमें अपार संभावनाएँ हैं, परंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
34. संक्षेप में लेख लिखिए:
(क) पोखरण 2
1998 में भारत ने पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए, जिससे भारत एक घोषित परमाणु शक्ति बना। यह ‘Operation Shakti’ के तहत हुआ। इसके बाद भारत ने ‘नो फर्स्ट यूज़’ और ‘विश्व शांति’ की नीति अपनाई।
(ख) भारतीय प्रवासी (Diaspora)
भारतीय प्रवासी समुदाय आज लगभग 3 करोड़ है। वे भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। विदेश नीति में प्रवासियों के लिए OCI कार्ड, सहायता तंत्र जैसे कदम अहम रहे हैं।
35. संक्षेप में लेख लिखिए:
(क) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC)
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए सर्वोच्च सलाहकारी निकाय है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और NSA इसका सचिव होता है। यह नीति निर्माण, आतंकवाद, रणनीतिक मामलों में निर्णय लेती है।
(ख) मीडिया और विदेश नीति
मीडिया आज विदेश नीति को प्रभावित करने वाला अहम कारक बन गया है। यह जनमत निर्माण, सरकार की छवि और कूटनीतिक संदेश को प्रभावित करता है। गलवान झड़प, बालाकोट स्ट्राइक जैसे मामलों में मीडिया की भूमिका बड़ी रही।
36. NPT पर भारत की स्थिति/स्थान का परीक्षण कीजिए
NPT (Non-Proliferation Treaty) 1970 में अस्तित्व में आया था, जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना है।
भारत की स्थिति:
- भारत इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करता क्योंकि यह असमान और पक्षपाती है।
- यह केवल पांच देशों को परमाणु हथियार रखने की वैधता देता है।
- भारत का मानना है कि यह विकासशील देशों के अधिकारों को सीमित करता है।
विकल्प के रूप में भारत की नीति:
- ‘No First Use’ और ‘Minimum Deterrence’
- NSG में प्रवेश की कोशिश
- नागरिक परमाणु समझौते के माध्यम से वैश्विक सहयोग
निष्कर्ष: भारत NPT को असंतुलित मानता है और वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण की पक्षधरता करता है, लेकिन अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करता।
37. शीत युद्ध के बाद भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिए।
शीत युद्ध के समय भारत और अमेरिका के संबंध सीमित थे। लेकिन 1991 के बाद दोनों देशों के संबंधों में ऐतिहासिक परिवर्तन आया।
मुख्य बिंदु:
- रणनीतिक सहयोग: 2005 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, 2+2 वार्ता, क्वाड समूह में साझेदारी।
- रक्षा: LEMOA, COMCASA जैसे समझौते हुए। अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है।
- व्यापार: द्विपक्षीय व्यापार $180 बिलियन से अधिक। भारत IT और फार्मा क्षेत्र में लाभ उठाता है।
- प्रवासी संबंध: अमेरिका में 40 लाख से अधिक प्रवासी भारतीयों ने भारत की छवि को सशक्त बनाया।
- चुनौतियाँ: वीज़ा नीतियाँ, रूस से भारत की रक्षा खरीद, मानवाधिकार मुद्दों पर मतभेद।
निष्कर्ष: भारत-अमेरिका संबंध अब ‘स्वाभाविक साझेदारी’ की ओर बढ़ रहे हैं, जो रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं।
38. संक्षेप में लेख लिखिए:
(क) BIMSTEC
BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) बंगाल की खाड़ी से सटे सात देशों का संगठन है। यह SAARC का वैकल्पिक मंच बन रहा है और भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ में सहायक है।
(ख) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
IMF एक वैश्विक वित्तीय संस्था है जो आर्थिक स्थायित्व और मुद्रा सहयोग हेतु कार्य करती है। भारत इसका संस्थापक सदस्य है और आर्थिक संकट में IMF सहायता उपलब्ध कराता है (जैसे श्रीलंका संकट 2022)।
39. चीन के प्रति भारत की विदेश नीति को समझाइए
भारत की चीन नीति संतुलन, रणनीति और सतर्कता पर आधारित रही है।
मुख्य पहलु:
- सीमा विवाद: 1962 का युद्ध, डोकलाम (2017), गलवान (2020) जैसी घटनाओं ने संबंधों को प्रभावित किया।
- रणनीतिक प्रतिस्पर्धा: OBOR का विरोध, क्वाड में सक्रियता, इंडो-पैसिफिक रणनीति।
- आर्थिक संबंध: व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है, परंतु भारत ने हाल में चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध और निवेश पर नियंत्रण लगाया है।
- संवाद के प्रयास: BRICS, SCO, द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से संवाद कायम रखने की कोशिश।
निष्कर्ष: भारत की चीन नीति एक ओर आर्थिक यथार्थ है, दूसरी ओर रणनीतिक सावधानी। यह सहयोग और प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन की नीति है।
40. संक्षेप में लेख लिखिए:
(क) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
UNSC पाँच स्थायी और दस अस्थायी सदस्यों वाला संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख अंग है। भारत इसमें स्थायी सदस्यता का इच्छुक है और G4 देशों के साथ सुधार की माँग कर रहा है।
(ख) भारत और यूरोपीय आर्थिक समुदाय
यूरोपीय संघ और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार, तकनीकी सहयोग, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन आदि में सहयोग है। दोनों लोकतंत्र, बहुपक्षवाद और वैश्विक शांति के पक्षधर हैं।
41. भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव और इसके महत्व की व्याख्या कीजिए।
परिचय:
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) वे कंपनियाँ होती हैं जो एक से अधिक देशों में उत्पादन या व्यापार करती हैं। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत में MNCs की भूमिका तेजी से बढ़ी है।
सकारात्मक प्रभाव:
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): MNCs ने भारत में भारी निवेश किया है, जिससे औद्योगिक विकास और रोजगार में वृद्धि हुई है।
- तकनीकी उन्नयन: नई तकनीक, प्रबंधन कौशल और अनुसंधान भारत में आया है, जैसे—ऑटोमोबाइल (मारुति-सुजुकी), FMCG (नेस्ले, P&G)।
- रोजगार के अवसर: MNCs ने सेवा क्षेत्र (BPO, IT) में लाखों लोगों को रोजगार दिया है।
- उपभोक्ता विकल्प: भारतीय बाजार में गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं की उपलब्धता बढ़ी है।
- निर्यात में वृद्धि: MNCs ने भारत से निर्यात को बढ़ावा दिया है, विशेषकर IT और फार्मा क्षेत्र में।
नकारात्मक प्रभाव:
- स्थानीय उद्योगों पर दबाव: MNCs के कारण छोटे उद्योगों और कुटीर उद्योगों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा है।
- लाभ का विदेश स्थानांतरण: MNCs अपने मुनाफे को मूल देश में ले जाती हैं, जिससे भारत की विदेशी मुद्रा को नुकसान हो सकता है।
- संस्कृति पर प्रभाव: उपभोक्तावादी संस्कृति का विस्तार, पारंपरिक मूल्यों का क्षरण।
- श्रमिकों का शोषण: कुछ क्षेत्रों में मजदूरी, अनुबंध और कार्य सुरक्षा के उल्लंघन के मामले।
निष्कर्ष:
MNCs ने भारत की अर्थव्यवस्था में प्रगति लाई है लेकिन इसके साथ चुनौतियाँ भी आई हैं। सरकार को नीति निर्माण में संतुलन बनाए रखना चाहिए जिससे विकास और सामाजिक सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हो सकें।
42. भारत के अफ्रीका के साथ संबंध के क्या फायदे हैं?
परिचय:
भारत और अफ्रीका के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक आधारों पर आधारित हैं। 21वीं सदी में यह संबंध रणनीतिक और राजनीतिक रूप से और सशक्त हुए हैं।
मुख्य फायदे:
- प्राकृतिक संसाधन: अफ्रीका खनिज, तेल, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा में अफ्रीका का योगदान महत्वपूर्ण है।
- व्यापार और निवेश: भारत-अफ्रीका व्यापार $90 अरब से अधिक है। भारत ने अफ्रीका में टेलीमेडिसिन, कृषि, शिक्षा और निर्माण क्षेत्र में निवेश किया है।
- कूटनीतिक सहयोग: अफ्रीका संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन करता है, विशेषकर UNSC में स्थायी सदस्यता के प्रयास में।
- सामरिक साझेदारी: समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद विरोध, रक्षा प्रशिक्षण में सहयोग।
- मानव संसाधन विकास: ITEC और स्कॉलरशिप के माध्यम से भारत ने अफ्रीकी युवाओं को प्रशिक्षित किया है।
निष्कर्ष:
भारत-अफ्रीका संबंध ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। भविष्य में दोनों क्षेत्रों की साझेदारी वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती है।
43. गुटनिरपेक्ष आंदोलन और इसकी प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिए
परिचय:
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की शुरुआत 1961 में हुई थी, जिसमें भारत, यूगोस्लाविया, मिस्र, इंडोनेशिया और घाना ने नेतृत्व किया। इसका उद्देश्य किसी भी शक्ति गुट (अमेरिका या सोवियत संघ) का सदस्य न बनना था।
भारत की भूमिका:
- पं. नेहरू NAM के संस्थापक नेताओं में शामिल थे।
- भारत ने विश्व शांति, उपनिवेशवाद-विरोध, और विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिए NAM को मंच बनाया।
प्रासंगिकता:
- बहुपक्षीय विश्व: वर्तमान बहुध्रुवीय दुनिया में NAM एक संतुलित दृष्टिकोण देता है।
- नई चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा जैसी समस्याओं में NAM की भूमिका बढ़ सकती है।
- ग्लोबल साउथ की आवाज: NAM वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट कर नीति-निर्माण में प्रभावशाली बना सकता है।
आलोचना:
- NAM की निष्क्रियता, संस्थागत कमजोरी और स्पष्ट नेतृत्व का अभाव।
निष्कर्ष:
हालांकि शीत युद्ध समाप्त हो चुका है, फिर भी NAM की प्रासंगिकता बनी हुई है। इसे नई परिस्थितियों के अनुसार सक्रिय और संगठित रूप देना आवश्यक है।
44. लुक ईस्ट नीति क्या है तथा भारत और पूर्व एशियाई संबंधों पर इसका क्या प्रभाव है?
परिचय:
‘लुक ईस्ट नीति’ की शुरुआत 1991 में प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने की थी। इसका उद्देश्य पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों से रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना था।
मुख्य उद्देश्य:
- आर्थिक सहयोग बढ़ाना
- क्षेत्रीय स्थिरता में भूमिका निभाना
- चीन को संतुलित करना
मुख्य उपलब्धियाँ:
- ASEAN के साथ FTA
- भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग
- वियतनाम, जापान, सिंगापुर जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग
‘एक्ट ईस्ट नीति’ का विस्तार:
2014 में लुक ईस्ट नीति को ‘Act East Policy’ में परिवर्तित किया गया, जिसमें रक्षा और कूटनीति को अधिक महत्व मिला।
निष्कर्ष:
लुक ईस्ट नीति ने भारत को एशिया के उभरते शक्ति केंद्रों से जोड़ा है। यह भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करती है।
45. संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए
परिचय:
भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है और हमेशा से इसकी कार्यप्रणाली में सक्रिय भूमिका निभाता आया है।
मुख्य भूमिका:
- शांति स्थापना: भारत सबसे बड़ा शांति सेना योगदानकर्ता रहा है — कांगो, सूडान, लेबनान में भागीदारी।
- संयुक्त राष्ट्र सुधार: भारत UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग करता है और G4 के साथ मिलकर सुधारों का समर्थन करता है।
- मानवाधिकार: भारत मानवाधिकार परिषद का सदस्य रहा है और समानता तथा बहुपक्षवाद का समर्थन करता है।
- वैश्विक मुद्दों पर नेतृत्व: जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, वैश्विक स्वास्थ्य पर भारत की नीतियाँ प्रशंसनीय रही हैं।
चुनौतियाँ:
- UNSC में स्थायी सदस्यता का अभाव
- पाकिस्तानी प्रचार और चीन का विरोध
निष्कर्ष:
भारत संयुक्त राष्ट्र के आदर्शों का सशक्त समर्थक है। उसकी भूमिका भविष्य में और अधिक प्रभावशाली हो सकती है यदि संस्थागत सुधार हों।
46. इंदिरा गांधी के शासन के दौरान विदेश नीति की मुख्य उपलब्धियाँ
परिचय:
इंदिरा गांधी का कार्यकाल (1966-77, 1980-84) भारत की विदेश नीति में निर्णायक मोड़ लेकर आया। उन्होंने निर्णायक, स्वतंत्र और सक्रिय कूटनीति को अपनाया।
मुख्य उपलब्धियाँ:
- 1971 भारत-पाक युद्ध: बांग्लादेश निर्माण में निर्णायक भूमिका, शरणार्थी संकट का समाधान।
- सोवियत संघ के साथ संधि: भारत-यूएसएसआर मैत्री संधि (1971) से रणनीतिक गारंटी मिली।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन में नेतृत्व: NAM में भारत का नेतृत्व सशक्त बना।
- परमाणु परीक्षण: 1974 में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ परीक्षण से भारत परमाणु शक्ति बना।
- सार्क की पहल: क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए SAARC की नींव रखी गई।
निष्कर्ष:
इंदिरा गांधी की विदेश नीति ने भारत को वैश्विक मानचित्र पर आत्मनिर्भर, सशक्त और निर्णायक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
47. भारत की विदेश नीति के लिए यूरोपीय संघ के महत्व के बारे में वर्णन कीजिए
परिचय:
यूरोपीय संघ (EU) 27 देशों का संगठन है जो भारत का प्रमुख व्यापारिक, राजनीतिक और रणनीतिक साझेदार है।
मुख्य महत्व:
- व्यापार: EU भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
- FDI स्रोत: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक बड़ा हिस्सा EU से आता है।
- तकनीकी सहयोग: जलवायु परिवर्तन, स्मार्ट सिटी, ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाएं।
- शिक्षा और अनुसंधान: Erasmus+ और Horizon कार्यक्रमों के माध्यम से सहयोग।
- राजनयिक समर्थन: संयुक्त राष्ट्र सुधार, आतंकवाद विरोधी नीतियों में समर्थन।
निष्कर्ष:
भारत-यूरोपीय संघ संबंध वैश्विक शासन, जलवायु नीति और व्यापार में बहुपक्षीय भागीदारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दोनों साझेदार लोकतंत्र और सतत विकास जैसे मूल्यों में विश्वास करते हैं।
प्रश्न 48. भारत की विदेश नीति के लिए यूरोपीय संघ के महत्व के बारे में वर्णन कीजिए।
(उत्तर – लगभग 500 शब्दों में)
परिचय:
भारत और यूरोपीय संघ (EU) के संबंध ऐतिहासिक, आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर विस्तृत और गहरे हैं। यूरोपीय संघ 27 देशों का राजनीतिक एवं आर्थिक संगठन है जो वैश्विक राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में स्थापित है। भारत ने 1960 के दशक में यूरोपियन इकाईयों के साथ संपर्क आरंभ किया था, और 2004 में भारत और EU के बीच “रणनीतिक साझेदारी” स्थापित हुई।
भारत की विदेश नीति में यूरोपीय संघ का महत्व:
1.
आर्थिक साझेदारी:
- व्यापारिक संबंध: यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $120 बिलियन से अधिक का है।
- एफडीआई: भारत को मिलने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक बड़ा हिस्सा यूरोपीय संघ के देशों से आता है, विशेषतः जर्मनी, नीदरलैंड, फ्रांस और ब्रिटेन से।
2.
रणनीतिक व सुरक्षा सहयोग:
- यूरोपीय संघ आतंकवाद, समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा आदि मुद्दों पर भारत के साथ रणनीतिक संवाद करता है।
- यूरोपीय नौसेनाएं हिंद महासागर में भारत के साथ संयुक्त अभ्यास करती हैं, जो भारत की “सागर नीति” को समर्थन देता है।
3.
प्रौद्योगिकी और नवाचार:
- भारत और यूरोपीय संघ ने विज्ञान, तकनीक, अंतरिक्ष और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत किया है।
- Horizon Europe जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत भारतीय छात्रों और शोधकर्ताओं को अवसर मिलते हैं।
4.
जलवायु परिवर्तन और सतत विकास:
- भारत और EU दोनों पेरिस समझौते के प्रमुख समर्थक हैं।
- अक्षय ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा, और पर्यावरणीय सुरक्षा पर साझा परियोजनाएं चलाई जा रही हैं — जैसे सोलर एनर्जी मिशन।
5.
मानवाधिकार और लोकतंत्र का साझा दृष्टिकोण:
- भारत और यूरोपीय संघ दोनों लोकतंत्र, मानवाधिकार, बहुपक्षवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन में विश्वास रखते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी सदस्यता के समर्थन में कई EU देश सकारात्मक हैं।
चुनौतियाँ:
- एफटीए (FTA) वार्ता में रुकावटें: भारत-EU मुक्त व्यापार समझौते (BTIA) पर वर्षों से बातचीत चल रही है लेकिन कुछ मुद्दों (बौद्धिक संपदा, डेटा सुरक्षा, श्रम मानदंड) पर मतभेद बने हुए हैं।
- मानवाधिकार पर आलोचना: कुछ अवसरों पर यूरोपीय संसद भारत की नीतियों पर टिप्पणी करती है जिससे कूटनीतिक तनाव उत्पन्न होता है।
निष्कर्ष:
भारत की विदेश नीति में यूरोपीय संघ एक महत्वपूर्ण और विश्वसनीय साझेदार है। यह संबंध केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक, तकनीकी और वैश्विक मुद्दों पर सहभागिता का प्रतीक है। भविष्य में भारत और यूरोपीय संघ मिलकर वैश्विक व्यवस्था में एक स्थिर, न्यायसंगत और टिकाऊ दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकते हैं। अतः भारत को यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को और गहराई देने की दिशा में ठोस प्रयास करते रहना चाहिए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें