1. महात्मा गांधी का दृष्टिकोण भारत को लेकर जवाहरलाल नेहरू के दृष्टिकोण से कैसे भिन्न था?
महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू दोनों भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे, परंतु उनके भारत के भविष्य को लेकर दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण अंतर थे।
गांधीजी का दृष्टिकोण:
- ग्राम स्वराज: गांधीजी का मानना था कि भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है। वे विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली के समर्थक थे, जहाँ प्रत्येक गांव आत्मनिर्भर हो।
- आत्मनिर्भरता: वे विदेशी वस्त्रों और मशीनों के विरोधी थे और खादी व हस्तशिल्प को प्रोत्साहित करते थे।
- नैतिकता और आध्यात्मिकता: गांधीजी राजनीति में नैतिकता और आध्यात्मिकता के समावेश के पक्षधर थे।
नेहरू का दृष्टिकोण:
- औद्योगीकरण: नेहरू आधुनिक विज्ञान और तकनीक के माध्यम से भारत के औद्योगीकरण के समर्थक थे।
- केंद्रीकृत योजना: उन्होंने योजना आयोग की स्थापना की और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास को दिशा दी।
- धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद: नेहरू धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी भारत की कल्पना करते थे।
भिन्नता का सार:
गांधीजी का दृष्टिकोण पारंपरिक, नैतिक और विकेंद्रीकृत था, जबकि नेहरू का दृष्टिकोण आधुनिक, वैज्ञानिक और केंद्रीकृत था। दोनों के दृष्टिकोणों का समावेश स्वतंत्र भारत की नीतियों में देखा जा सकता है।
2. भारत में शांति आंदोलन का संगठनात्मक स्वरूपों का परीक्षण कीजिए
भारत में शांति आंदोलन गांधीजी के सिद्धांतों पर आधारित रहे हैं, जिनका उद्देश्य सामाजिक न्याय, अहिंसा और समानता को बढ़ावा देना रहा है।
मुख्य संगठनात्मक स्वरूप:
- गांधी आश्रम: गांधीजी के अनुयायियों द्वारा स्थापित आश्रम शांति और सेवा के केंद्र बने।
- अखिल भारतीय शांति और एकता संगठन (AIPSO): 1951 में स्थापित यह संगठन अंतरराष्ट्रीय शांति और एकता को बढ़ावा देता है।
- एनजीओ और नागरिक समाज: विभिन्न गैर-सरकारी संगठन और नागरिक समाज के समूह शांति और सामाजिक न्याय के लिए कार्यरत हैं।
विशेषताएँ:
- अहिंसक प्रतिरोध: सभी आंदोलनों में अहिंसा को प्रमुख हथियार के रूप में अपनाया गया।
- जनभागीदारी: आम जनता की सक्रिय भागीदारी ने आंदोलनों को बल दिया।
- शिक्षा और जागरूकता: शांति के संदेश को फैलाने के लिए शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए।
इन आंदोलनों ने भारत में सामाजिक समरसता और अहिंसा की भावना को मजबूत किया है।
3. क्या आपको लगता है कि भू-दान आंदोलन अपने लक्ष्यों को पाने में असफल रहा? अपने उत्तर के समर्थन में तर्कों को दीजिए।
भू-दान आंदोलन, जिसे विनोबा भावे ने 1951 में शुरू किया था, का उद्देश्य भूमिहीन किसानों को भूमि प्रदान करना था। हालांकि प्रारंभ में इसे व्यापक समर्थन मिला, परंतु यह अपने लक्ष्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सका।
असफलता के कारण:
- भूमि का वितरण: दान में मिली भूमि का वितरण प्रभावी ढंग से नहीं हो सका।
- कानूनी अड़चनें: भूमि के स्वामित्व और पंजीकरण में कानूनी समस्याएँ आईं।
- सामाजिक संरचना: जाति और वर्ग आधारित भेदभाव ने आंदोलन की सफलता में बाधा डाली।
निष्कर्ष:
भू-दान आंदोलन ने सामाजिक चेतना को जागृत किया, परंतु संरचनात्मक और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण यह अपने मूल उद्देश्य को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सका।
4. राष्ट्रवादी संघर्ष के दौरान श्रमिक आंदोलनों की चर्चा कीजिए।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में श्रमिक आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख श्रमिक आंदोलन:
- मद्रास लेबर यूनियन (1918): भारत की पहली ट्रेड यूनियन, जिसने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) (1920): राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों को संगठित करने वाला पहला संगठन।
- बॉम्बे टेक्सटाइल स्ट्राइक (1928): मजदूरी और कार्य स्थितियों में सुधार के लिए प्रमुख हड़ताल।
विशेषताएँ:
- राजनीतिक जुड़ाव: कई श्रमिक आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे।
- संगठनात्मक ढांचा: ट्रेड यूनियनों के माध्यम से श्रमिकों को संगठित किया गया।
- अहिंसक प्रतिरोध: अधिकांश आंदोलनों ने अहिंसा के मार्ग का अनुसरण किया।
इन आंदोलनों ने न केवल श्रमिकों के अधिकारों को मजबूत किया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम को भी बल प्रदान किया।
5. साइलेंट वैली मूवमेंट पर एक निबंध लिखिए
साइलेंट वैली आंदोलन 1970 के दशक में केरल के पलक्कड़ जिले में एक प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना के विरोध में शुरू हुआ था। यह आंदोलन भारत के पर्यावरण संरक्षण के इतिहास में एक मील का पत्थर है।
पृष्ठभूमि:
केरल सरकार ने साइलेंट वैली में एक जलविद्युत परियोजना की योजना बनाई, जिससे वहाँ की जैव विविधता को खतरा था।
आंदोलन की शुरुआत:
- केरल शास्त्र साहित्य परिषद (KSSP): इस संगठन ने आंदोलन की अगुवाई की।
- वैज्ञानिक और पर्यावरणविद्: कई वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने परियोजना के विरोध में आवाज उठाई।
परिणाम:
- परियोजना का रद्द होना: 1980 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परियोजना को रद्द कर दिया।
- राष्ट्रीय उद्यान की घोषणा: 1984 में साइलेंट वैली को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
महत्व:
यह आंदोलन भारत में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने जनता को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक किया।
6. भारत में बांध निर्माण के सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक प्रभावों का अनुरेख कीजिए।
भारत में बड़े बांधों का निर्माण विकास के प्रतीक के रूप में देखा गया है, परंतु इसके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी महत्वपूर्ण हैं।
सामाजिक प्रभाव:
- विस्थापन: लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हुए हैं।
- सांस्कृतिक नुकसान: कई सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुँचा है।
आर्थिक प्रभाव:
- कृषि में सुधार: सिंचाई सुविधाओं के माध्यम से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
- ऊर्जा उत्पादन: जलविद्युत परियोजनाओं से ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ी है।
पारिस्थितिक प्रभाव:
- जैव विविधता का नुकसान: कई वन्यजीवों और पौधों की प्रजातियाँ प्रभावित हुई हैं।
- जलवायु परिवर्तन: स्थानीय जलवायु पर प्रभाव पड़ा है।
निष्कर्ष:
बांध निर्माण से विकास के अवसर मिले हैं, परंतु इसके दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए सतत विकास की रणनीति अपनाना आवश्यक है।
7. निम्नलिखित पर लघु लेख लिखिए
अ) नई सामाजिक आंदोलन:
नई सामाजिक आंदोलनों का उद्भव 1970 के दशक में हुआ, जो पारंपरिक आंदोलनों से भिन्न थे। ये आंदोलन पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर केंद्रित थे। इनका नेतृत्व प्रायः युवा, महिलाएँ और शिक्षित वर्ग ने किया। ये आंदोलन गैर-राजनीतिक थे और अहिंसक तरीकों से सामाजिक परिवर्तन की मांग करते थे।
ब) प्रतिष्ठा हत्याएँ:
प्रतिष्ठा हत्याएँ वे हत्याएँ हैं जो परिवार या समुदाय की ‘इज्जत’ बचाने के नाम पर की जाती हैं, विशेषकर जब कोई महिला अपनी मर्जी से विवाह करती है या सामाजिक मान्यताओं का उल्लंघन करती है। यह सामाजिक बुराई भारत के कई हिस्सों में प्रचलित है और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है। इसे रोकने के लिए सख्त कानून और सामाजिक जागरूकता आवश्यक है।
8. पोलैंड में एकजुटता (एकता) आंदोलन को प्रभावित करने में चर्च की भूमिका की विवेचना कीजिए
पोलैंड में 1980 के दशक में ‘सॉलिडेरिटी’ आंदोलन एक प्रमुख श्रमिक आंदोलन था, जिसने कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ आवाज उठाई। इस आंदोलन में कैथोलिक चर्च की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
चर्च की भूमिका:
- नैतिक समर्थन: चर्च ने आंदोलन को नैतिक समर्थन प्रदान किया।
- संगठनात्मक सहायता: चर्च ने आंदोलन के लिए स्थान और संसाधन उपलब्ध कराए।
- अंतरराष्ट्रीय समर्थन: पोप जॉन पॉल द्वितीय ने आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन दिलाया।
निष्कर्ष:
चर्च ने पोलैंड में लोकतंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे सॉलिडेरिटी आंदोलन को सफलता मिली।
9. क्या आपको लगता है कि जल अधिकार एक मौलिक अधिकार है? भारत में जल संरक्षण आंदोलन के संदर्भ में अपने उत्तर की विवेचना कीजिए।
(पूर्ण उत्तर)
जल जीवन का मूल स्रोत है, और इसकी उपलब्धता मानव अस्तित्व की बुनियादी आवश्यकता है। भारत में अनेक जल संरक्षण आंदोलनों ने जल को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करने की दिशा में कार्य किया है।
संवैधानिक परिप्रेक्ष्य:
भारतीय संविधान में जल को विशेष रूप से मौलिक अधिकार नहीं कहा गया है, परंतु अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत भारतीय न्यायपालिका ने जल को जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना है। सुप्रीम कोर्ट ने अनेक निर्णयों में कहा है कि स्वच्छ पानी तक पहुँच मानव का बुनियादी अधिकार है।
भारत में जल संरक्षण आंदोलन:
- चिपको आंदोलन (1973): मूलतः वनों की रक्षा के लिए आरंभ हुआ, पर जल स्रोतों की रक्षा से भी जुड़ा था, क्योंकि वनों की कटाई से जलस्तर गिरता है।
- नर्मदा बचाओ आंदोलन: बड़े बांधों से जल स्रोतों और समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव के खिलाफ यह आंदोलन पानी को एक सामुदायिक अधिकार मानता है।
- राजेन्द्र सिंह का तरुण भारत संघ: इस संगठन ने पारंपरिक जल संरचनाओं के माध्यम से राजस्थान में जल संरक्षण को पुनर्जीवित किया।
- जल बिरादरी आंदोलन: जल विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् राजेन्द्र सिंह ने इसके माध्यम से जल को सामुदायिक जिम्मेदारी बनाने का अभियान चलाया।
क्यों जल अधिकार मौलिक होना चाहिए?
- मानव गरिमा का प्रश्न: जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
- समानता और सामाजिक न्याय: गरीब और हाशिये पर खड़े लोगों को जल से वंचित करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
- पर्यावरणीय सुरक्षा: जल संसाधनों का संरक्षण न केवल मानव बल्कि पारिस्थितिकी के लिए भी आवश्यक है।
निष्कर्ष:
भारत में जल संरक्षण आंदोलनों ने यह स्पष्ट किया है कि जल अधिकार को केवल नीति तक सीमित न रखकर संवैधानिक संरक्षण देना आवश्यक है। जल तक समान, सुरक्षित और सुलभ पहुँच को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना सामाजिक न्याय और सतत विकास के लिए अनिवार्य है।
10. सन् 1960 में संयुक्त राज्य अमेरिका में काले नागरिक अधिकार आंदोलन के बारे में संक्षिप्त में व्याख्या कीजिए।
काले नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement) अमेरिका में 1950 के दशक से 1960 के दशक तक चला एक व्यापक अहिंसक आंदोलन था, जिसका उद्देश्य अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों को समान अधिकार दिलाना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह की प्रेरणा से संचालित हुआ।
पृष्ठभूमि:
- अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ भेदभाव आम था—चाहे वह स्कूल, परिवहन, आवास या नौकरी में हो।
- नस्लीय विभाजन (Segregation) और जिम क्रो कानूनों ने उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बना रखा था।
प्रमुख नेता और योगदान:
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर: उन्होंने गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध की रणनीति को अपनाया और आंदोलनों का नेतृत्व किया।
- उनका प्रसिद्ध भाषण “I Have a Dream” आज भी अमेरिका के नागरिक अधिकारों का प्रतीक है।
- 1964 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ।
- रोजा पार्क्स: 1955 में बस में सीट न छोड़ने के विरोध से आंदोलन को गति मिली (Montgomery Bus Boycott)।
- सिट-इन आंदोलन (1960): छात्रों द्वारा भोजनालयों में बैठकर अहिंसक प्रतिरोध किया गया।
प्रमुख उपलब्धियाँ:
- सिविल राइट्स एक्ट (1964): जातीय, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक।
- वोटिंग राइट्स एक्ट (1965): अश्वेतों को मतदान का अधिकार सुनिश्चित हुआ।
गांधीजी की प्रेरणा:
मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने स्वयं कहा कि “गांधी अहिंसा के महानतम शिक्षक थे” और अमेरिका में आंदोलन में उनका दर्शन ही मुख्य प्रेरणा था।
निष्कर्ष:
1960 के दशक का काले नागरिक अधिकार आंदोलन एक सफल अहिंसक संघर्ष था, जिसने अमेरिकी समाज में गहरी परिवर्तनकारी भूमिका निभाई। यह इस बात का प्रमाण है कि गांधी के बाद भी उनकी अहिंसक रणनीति वैश्विक आंदोलनों को प्रेरणा देती रही है।
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