यहाँ “गांधी पाश्चात् अहिंसक आंदोलन” (Non-Violent Movements after Gandhi) विषय पर सभी प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दिए गए हैं — UPSC मुख्य परीक्षा की शैली में:
1. भारत में शांति आंदोलन के लिए नेतृत्व की भूमिका की विवेचना कीजिए।
महात्मा गांधी के पश्चात भारत में शांति आंदोलन विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों के विरोध में उभरे। इन आंदोलनों में नेतृत्व की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है क्योंकि यह नेतृत्व ही आंदोलन को दिशा, नैतिक आधार और संगठनात्मक ताकत प्रदान करता है।
नेतृत्व की प्रमुख भूमिकाएँ:
- सत्याग्रह परंपरा का विस्तार: गांधी के विचारों को आत्मसात कर जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, सुंदरलाल बहुगुणा जैसे नेताओं ने आंदोलनों को नैतिकता और अहिंसा के आधार पर संचालित किया।
- जन-जागरण: नेताओं ने जन-जागरूकता फैलाकर शांति आंदोलन को नैतिक वैधता दिलाई। जैसे, चिपको आंदोलन में बहुगुणा ने लोगों को पर्यावरण के प्रति सजग किया।
- विकेन्द्रीकृत संगठन: नेतृत्व ने आंदोलनों को जनसहभागिता के साथ संचालित किया, जिससे सत्ता के विकेन्द्रीकरण की गांधीवादी अवधारणा को आगे बढ़ाया गया।
- राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना नैतिक आग्रह: अधिकतर आंदोलनों ने सरकार से संवाद करते हुए गैर-राजनीतिक और सिविल सोसाइटी आधारित नेतृत्व को महत्व दिया।
प्रमुख आंदोलन और नेतृत्व:
- विनोबा भावे – भूदान आंदोलन
- सुंदरलाल बहुगुणा – चिपको आंदोलन
- मेधा पाटकर – नर्मदा बचाओ आंदोलन
- अन्ना हज़ारे – लोकपाल आंदोलन
इन सभी नेताओं ने अपने-अपने आंदोलन में नैतिक आग्रह, अहिंसा और जनभागीदारी को मुख्य साधन बनाया।
✅ निष्कर्षतः, गांधी के बाद भारतीय शांति आंदोलनों में नेतृत्व की भूमिका केवल रणनीति निर्धारण तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह नैतिक दिशा और वैचारिक चेतना का वाहक बना। नेतृत्व ने संघर्ष को अहिंसक, रचनात्मक और परिवर्तनकारी स्वरूप प्रदान किया।
2. अहिंसक आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?
गांधीजी की प्रेरणा से पनपे अहिंसक आंदोलनों की नैतिक और व्यवहारिक विशेषताएँ इन्हें हिंसक आंदोलनों से अलग करती हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
- अहिंसा का अनुकरण: शारीरिक या मानसिक हिंसा से परहेज करते हुए सत्य, करुणा और प्रेम का प्रयोग किया जाता है।
- नैतिक बल पर आधारित: जन चेतना, नैतिक आग्रह और आत्मबल पर भरोसा किया जाता है।
- जनसहभागिता: समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी से आंदोलन को वैधता मिलती है।
- संगठित असहमति: कानूनों और नीतियों के विरुद्ध शांतिपूर्ण विरोध जैसे सत्याग्रह, उपवास, जुलूस आदि का प्रयोग होता है।
- रचनात्मक कार्यक्रम: जैसे ग्राम विकास, पर्यावरण संरक्षण, शराबबंदी – केवल विरोध नहीं बल्कि समाधान प्रस्तुत करना भी लक्ष्य होता है।
- संवाद की संभावना खुली रहती है: शत्रुता के बजाय बातचीत और सुधार की गुंजाइश बनी रहती है।
✅ निष्कर्षतः, अहिंसक आंदोलन एक मूल्य-आधारित संघर्ष प्रणाली है, जो राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक बदलाव के लिए सत्य, सेवा और सहिष्णुता को साधन बनाता है।
3. भूमि दान आंदोलन अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सफल रहा? क्या आप सहमत हैं?
भूदान आंदोलन की शुरुआत विनोबा भावे ने 1951 में की थी। इसका उद्देश्य था – स्वैच्छिक रूप से जमीनदारों से ज़मीन लेकर भूमिहीनों को देना।
सफलता के पक्ष में:
- 6.5 लाख एकड़ भूमि का संकलन: यह एक नैतिक क्रांति थी, जहां बिना हिंसा के सामाजिक पुनर्वितरण की कोशिश हुई।
- गांव-स्तर पर जागरूकता: इसने वर्ग-संघर्ष के बजाय वर्ग-सहयोग को बढ़ावा दिया।
- राज्य पर निर्भरता नहीं: जनता से सीधा संवाद किया गया।
विफलता के कारण:
- कानूनी मान्यता का अभाव: दान की गई भूमि कानूनी विवादों में फँसी रही।
- स्वेच्छा आधारित दान सीमित: प्रभावी भूमि सुधार के लिए केवल नैतिक आग्रह पर्याप्त नहीं था।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: सरकार ने इसे संस्थागत रूप नहीं दिया।
✅ निष्कर्ष: भूदान आंदोलन नैतिक दृष्टि से ऐतिहासिक, परंतु व्यवहारिक रूप से सीमित सफलता वाला रहा। सामाजिक चेतना बढ़ी, पर संरचनात्मक बदलाव अधूरा रह गया।
4. चिपको आंदोलन पर निबंध लिखिए।
चिपको आंदोलन भारत में पर्यावरण संरक्षण का एक ऐतिहासिक अहिंसक आंदोलन था, जो 1973 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के चमोली जिले में शुरू हुआ।
प्रसंग और कारण:
- वन विभाग ने स्थानीय लोगों की ज़रूरतें अनदेखी कर ठेकेदारों को वनों की कटाई की अनुमति दी।
- इससे जल-स्रोत, कृषि और स्थानीय जीवन पर संकट उत्पन्न हुआ।
नेतृत्व:
- सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट और गौरा देवी इसके प्रमुख नेता रहे।
रणनीति:
- ग्रामीण महिलाएं पेड़ों से “चिपक” गईं ताकि उन्हें काटा न जा सके।
- यह शारीरिक अवरोध और नैतिक आग्रह का अनूठा प्रयोग था।
परिणाम:
- कई क्षेत्रों में वृक्ष कटाई पर रोक लगी।
- पर्यावरणीय नीति में जनभागीदारी की मांग को स्वीकृति मिली।
- 1980 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश में वृक्ष कटाई पर 15 साल का प्रतिबंध लगाया।
✅ निष्कर्ष: चिपको आंदोलन एक सफल अहिंसक जन-आंदोलन था, जिसने भारत में पर्यावरणीय लोकतंत्र और महिला नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त किया।
5. मद्य-निषेध पर गांधी और कुमारप्पा के विचारों की तुलना कीजिए।
मद्य निषेध (Prohibition) गांधीवादी चिंतन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। महात्मा गांधी और उनके अनुयायी जे.सी. कुमारप्पा दोनों ने शराब और नशीले पदार्थों के विरुद्ध नैतिक और सामाजिक चेतना पर बल दिया, परंतु उनके दृष्टिकोण में कुछ विशिष्ट अंतर भी देखने को मिलते हैं।
गांधी के विचार:
- गांधी शराब को मानव आत्मा का अपमान मानते थे।
- उन्होंने शराब को गरीबी, हिंसा, और पारिवारिक विघटन का कारण कहा।
- उनके लिए मद्य निषेध व्यक्तिगत आत्मशुद्धि और सामाजिक नैतिकता का हिस्सा था।
- गांधी के अनुसार, स्वतंत्र भारत में सरकार का कर्तव्य है कि वह शराबबंदी को लागू करे।
- उन्होंने इसे सत्याग्रह के स्तर तक लाकर देखा – “नशे के खिलाफ संघर्ष एक राष्ट्रीय कर्तव्य है।”
कुमारप्पा के विचार:
- कुमारप्पा का दृष्टिकोण अधिक आर्थिक और सामाजिक प्रभावों पर केंद्रित था।
- उन्होंने शराब को आर्थिक शोषण का साधन कहा, जो औद्योगिक पूंजीवाद और उपभोग संस्कृति से जुड़ा है।
- उनके अनुसार, शराब उद्योग गांवों के आत्मनिर्भर अर्थतंत्र को नष्ट करता है।
- उन्होंने शराबबंदी को सामुदायिक पुनर्निर्माण और ग्राम स्वराज के लिए अनिवार्य बताया।
समानताएं:
- दोनों शराब को व्यक्तिगत पतन और सामाजिक संकट का कारक मानते हैं।
- दोनों का जोर अहिंसा और नैतिकता आधारित जीवनशैली पर है।
अंतर:
✅ निष्कर्ष: गांधी और कुमारप्पा दोनों ने मद्य निषेध को भारत के नैतिक और आर्थिक पुनर्निर्माण से जोड़ा, पर गांधी का दृष्टिकोण अधिक व्यक्तिनिष्ठ और आध्यात्मिक था जबकि कुमारप्पा ने इसे सामाजिक न्याय और ग्राम अर्थव्यवस्था से जोड़ा।
6. परमाणु विरोधी आंदोलन में ग्रीनपीस ने किस तरह योगदान दिया है?
ग्रीनपीस (Greenpeace) एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन है, जिसने 1970 के दशक से परमाणु ऊर्जा और हथियारों के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध और जन-जागरूकता का अभियान चलाया।
मुख्य योगदान:
- शुरुआत (1971): अमेरिका के अलास्का में परमाणु परीक्षण के विरोध में पहली बार ग्रीनपीस ने नौका द्वारा प्रतिरोध किया। यह उनकी पहली परमाणु विरोधी कार्रवाई थी।
- फ्रांस के खिलाफ विरोध: फ्रांसीसी सरकार द्वारा प्रशांत महासागर में परमाणु परीक्षणों के खिलाफ ग्रीनपीस ने व्यापक अभियान चलाया, जिसके चलते उनकी नौका Rainbow Warrior को फ्रांस की खुफिया एजेंसी ने 1985 में नष्ट कर दिया।
- शांतिपूर्ण प्रतिरोध: ग्रीनपीस ने सीधी कार्रवाई (Direct Action) का प्रयोग किया, जैसे – परमाणु संयंत्रों के बाहर प्रदर्शन, जल-मार्गों पर घेराव आदि।
- वैश्विक जनमत तैयार करना: उन्होंने मीडिया, रिपोर्ट्स और वैज्ञानिक डेटा के माध्यम से परमाणु ऊर्जा की पर्यावरणीय और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरों को उजागर किया।
- राजनीतिक दबाव: G8, UN और IAEA जैसी संस्थाओं पर दबाव डालने के लिए ग्रीनपीस ने लाखों लोगों की भागीदारी से पेटिशन, मुहिम और कैंपेन चलाए।
प्रभाव:
- कई देशों ने परमाणु परीक्षण रोक दिए या संयंत्रों की सुरक्षा नीतियाँ कड़ी कीं।
- ग्रीनपीस ने परमाणु मुद्दे को वैश्विक मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
✅ निष्कर्ष: ग्रीनपीस ने परमाणु विरोधी आंदोलन को गांधीवादी अहिंसा, रचनात्मक संवाद और जन भागीदारी से एक वैश्विक अभियान का रूप दिया, जिसने शांति और स्थिरता की दिशा में सकारात्मक योगदान दिया।
7. लघु लेख: कन्या भ्रूण हत्याएं
कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide) भारतीय समाज की सबसे क्रूर वास्तविकताओं में से एक है, जहाँ जन्म से पहले ही कन्या शिशु को मार दिया जाता है।
कारण:
- पितृसत्तात्मक मानसिकता: पुत्र को वंश चलाने वाला, उत्तराधिकारी मानने की परंपरा।
- दहेज प्रथा: बेटियों को आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है।
- अल्ट्रासाउंड तकनीक का दुरुपयोग: चिकित्सा तकनीक का उपयोग गर्भ में लिंग निर्धारण के लिए किया जाता है।
परिणाम:
- लिंग अनुपात का असंतुलन: कई राज्यों में लिंग अनुपात 900 से भी नीचे चला गया है।
- महिला विरोधी समाज का निर्माण: जिससे लैंगिक हिंसा, बाल विवाह, तस्करी बढ़ती है।
- मानवाधिकार का उल्लंघन: यह जीवन के अधिकार और समानता के सिद्धांत का हनन है।
सरकारी प्रयास:
- PCPNDT अधिनियम (1994): लिंग परीक्षण पर प्रतिबंध।
- ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना: सामाजिक मानसिकता बदलने का प्रयास।
- NGO व महिला आंदोलन: जैसे- MASUM, Chetna, Action Aid द्वारा जागरूकता अभियान।
✅ निष्कर्ष: कन्या भ्रूण हत्या केवल एक अपराध नहीं, बल्कि संस्कृति और सोच का संकट है। इसके विरुद्ध गांधीवादी मार्ग – नैतिक शिक्षा, सामाजिक सुधार और अहिंसक चेतना की आज अत्यंत आवश्यकता है।
8. केरल के पालाचीमाडा अभियान पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
पालाचीमाडा आंदोलन केरल के पलक्कड़ जिले के पालाचीमाडा गांव में 2000 के दशक में कोका-कोला फैक्ट्री के खिलाफ एक पर्यावरणीय और जन-आधारित अहिंसक आंदोलन था।
पृष्ठभूमि:
- कोका-कोला कंपनी ने गांव के जल-स्रोतों से अत्यधिक भूजल निकालना शुरू किया।
- इससे पानी की भारी कमी, जलवायु असंतुलन और भूमि प्रदूषण उत्पन्न हुआ।
आंदोलन की शुरुआत:
- स्थानीय आदिवासी महिलाएं इस आंदोलन की प्रमुख नेता थीं।
- उन्होंने गांव में धरना, जनसभा, पैदल यात्रा आदि शांतिपूर्ण तरीकों से विरोध जताया।
मुख्य विशेषताएं:
- गांधीवादी शैली में प्रतिरोध: सत्याग्रह, भूख हड़ताल और सामुदायिक एकता।
- पर्यावरणीय न्याय: पानी को ‘जन अधिकार’ के रूप में परिभाषित किया गया।
- सामाजिक चेतना: जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा के लिए शिक्षा, महिलाओं की भागीदारी और मीडिया जागरूकता।
परिणाम:
- 2004 में फैक्ट्री बंद हुई – केरल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद।
- यह आंदोलन भारत में कॉर्पोरेट के खिलाफ ग्रामीण प्रतिरोध का प्रतीक बना।
✅ निष्कर्ष: पालाचीमाडा आंदोलन ने गांधीवादी अहिंसक संघर्ष को जल अधिकार, पारिस्थितिकी और कॉर्पोरेट जवाबदेही के नए संदर्भ में स्थापित किया।
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